Friday 14 May 2021

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 29.

धर्म बड़ा या विज्ञान? राष्ट्र बड़ा या धर्म? ऐसे वाहियात सवाल गाहे-बगाहे दुनिया में उभरते रहते हैं। अमरीका जैसे देश में भी कुछ राज्य ऐसे रहे हैं, जो आज तक डार्विन के सिद्धांत को नहीं मानते। इसलिए नहीं कि वह अवैज्ञानिक है, बल्कि इसलिए कि वह धर्म के विपरीत है। 

ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो जैसे कम्युनिस्ट मिज़ाज़ के व्यक्ति जब धर्म के सामने झुके, तो पहले विज्ञान झुका, फिर राष्ट्र ही झुक गया। यह किसी मुहावरे के तौर पर नहीं, उदाहरण देकर कहता हूँ।

1971 युद्ध के बाद अगले ही महीने भुट्टो ने अपने देश के शीर्ष वैज्ञानिक अब्दुस सलाम को बुलाया और कहा, “हमें अब परमाणु बम बनाना ही होगा”

अब्दुस सलाम कई वर्षों से गुप्त रूप से इस दिशा में लगे थे। उन्होंने कई चीन की यात्राएँ की और 1970 में परमाणु बम प्रोजेक्ट शुरू हो गया।

अब्दुस सलाम इतने काबिल व्यक्ति थे कि मात्र सोलह वर्ष की अवस्था में उनका रामानुजम प्रॉब्लम पर किया हल इंग्लैंड की प्रतिष्ठित पत्रिका से छपा था। वह अहमदिया पंथ के थे, जिस पंथ की पाकिस्तान में कुछ-कुछ वही स्थिति थी जो यूरोप में यहूदियों की। बुद्धिजीवी वर्ग के लोग, तमाम प्रोफेसर, फौज के आला अधिकारी, और ब्यूरोक्रेसी के कई लोग इसी पंथ के थे। अब्दुस सलाम ने ही पाकिस्तान में विज्ञान के उच्च संस्थान की नींव रखी। 

मगर उनके पंथ को मुसलमान उलेमा अपना विरोधी तो क्या, मुसलमान ही नहीं मानते थे। 1974 में एक अहमदिया-बहुल इलाके राबवा से पेशावर की ओर ट्रेन में ‘जमात-ए-इस्लामी’ के छात्र-विंग का एक हजूम जा रहा था। वह उस स्टेशन पर रुके और अहमदिया पंथ के गुरू को खूब गालियाँ दी, उनके ख़िलाफ़ नारे लगाए। यह ट्रेन पेशावर से जब लौटने लगी, तो अहमदिया युवाओं ने हॉकी-स्टिक आदि लेकर ट्रेन पर हमला कर दिया। 

ऐसे दंगे पहले भी लाहौर में हुए थे, जब अब्दुस सलाम को भाग कर यूरोप जाना पड़ा था। लेकिन, इस बार बात बढ़ती चली गयी। धर्मगुरुओं ने भुट्टो पर दबाव डालना शुरू किया कि इन अहमदियों को बाहर निकालो। भुट्टो को प्रधानमंत्री बनाने में अहमदियों ने बड़ी भूमिका निभायी थी। वह पहले तो गोल-मटोल बातें करते रहे। उन्होंने कहा कि अहमदियों की वजह से पाकिस्तान तरक़्क़ी के रास्ते पर है। मगर उन्हें संविधान याद दिलाया गया जिसमें स्पष्ट लिखा था कि पाकिस्तान एक इस्लाम गणतंत्र है। इस कारण धर्म की बात तो माननी ही होगी। 

आखिर उन्हें अहमदियों को मुसलमान नहीं माने जाने का अध्यादेश लाना पड़ा। अहमदियों पर हमले पहले ही शुरू हो गए थे, और अब कई पलायित होने लगे। कुछ अफ़ग़ानिस्तान, कुछ सोवियत, कुछ यूरोप, कुछ अमेरिका। 

अब्दुस सलाम ने परमाणु बम प्रोजेक्ट से स्वयं को अलग कर लिया, हालांकि उनका राष्ट्र-प्रेम ऐसा था कि पाँच वर्ष बाद जब उन्हें नोबेल पुरस्कार मिला तो वह पाकिस्तानी परिधान में पगड़ी पहन कर गए। उनकी मृत्यु के बाद राबवा में उनकी कब्र पर अंकित था कि पहला मुसलमान जिसे नोबेल पुरस्कार मिला। मगर वहाँ उस कब्र से ‘मुसलमान’ शब्द खरोंच कर हटा दिया गया। 

उन पर बनी फ़िल्म का नाम इस विषय को स्पष्ट कहता है- Salam- The first ***** nobel laureate. 

जब तमाम अहमदिए पाकिस्तान छोड़ कर जा रहे थे, और अब्दुस सलाम बम प्रोजेक्ट से स्वयं को मुक्त कर रहे थे, पाकिस्तान के सिंध प्रांत में धरती हिली। भुट्टो को खबर मिली कि भारत ने अपने पहले परमाणु बम का परीक्षण कर लिया है जिसका कोड नाम है ‘स्माइलिंग बुद्ध’। 

भुट्टो जानते थे पाकिस्तान में धर्म तो जीत गया, मगर इसका ख़ामियाज़ा विज्ञान को भुगतना पड़ा। दशकों तक पाकिस्तान बम नहीं बना सका। 
(क्रमश:)

प्रवीण झा
(Praveen Jha)

पाकिस्तान का इतिहास - अध्याय - 28.
http://vssraghuvanshi.blogspot.com/2021/05/28.html
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