Wednesday, 28 November 2018

इस राज में, चैंन न राम को है, न हनुमान को ! / विजय शंकर सिंह

सरकार को यह बात पता है कि नोटबंदी से देह व्यापार में उल्लेखनीय कमी आयी है।पर यह नहीं पता है कि व्यापार और रोज़गार पर क्या असर पड़ा है।  कमाल की सरकार निकली यह तो। इसके पास देह व्यापार के तो आंकड़े हैं पर 2016 के बाद न रोज़गार के आंकड़े हैं और न हीं किसानों की खुदकुशी के।

मंदिर तोड़ फिर मंदिर बनाने का आंदोलन करने वाले मंदिर वैसे भी नहीं बना पा रहे हैं और बनारस के पुराने मंदिर एक एक कर के तोड़ और दे रहे हैं। सरकार अब हनुमानजी को जाति प्रमाणपत्र दे रही है। बजरंगबली को चैंन न त्रेता में मिला, न द्वापर में और न अब कलियुग में सरकार चैंन लेने दे रही है।  त्रेता में राम ने मिशन सीता पर लगा रखा था। द्वापर में कृष्ण ने कह दिया रथ के ऊपर बैठे रहिये। भीम ने भी उन्हें चैंन से आराम नहीं करने दिया । वह भी एक बार उनसे कुश्ती लड़ने को भिड़ गए। अब कलिकाल मे उनकी जाति का खुलासा कर के सरकार ने उन्हें और असहज कर दिया। लोग जाति पर आंदोलित हैं। ब्राह्मण सभा ने योगी आदित्यनाथ को नोटिस जारी कर दिया कि कैसे उन्होंने एक ब्राह्मण को दलित के खाने में डाल दिया। उधर रावण भी डर गया कि कहीं पूंछ में आग लगाने के आरोप में कोई मुक़दमा न दर्ज करा दे। अब तो जमानत का भी जुगाड़ नहीं रहा।

राम को घरबार से बेदखल कर के हिंदुत्व वालों ने तंबू में रख ही दिया था, और अयोध्या के बंदर तो 1992 से ही अयोध्या में पुलिस पीएसी और सीआरपी के जमावड़े से इतना दुखी हैं कि वे दर्शनार्थियों के अभाव में भोजन पानी को तरस गये । बची खुची कसर सरकार ने हनुमानजी को विवादित कर के पूरा कर दिया। जब जब वे फेसबुक देखते होंगे वह क्या सोचते होंगे वही जानें।  अब राम अपनी समस्या हल करें कि हनुमान की। वह भी यही सोच रहे होंगे कि इस अयोध्या के जंजाल से तो चित्रकूट ही बेहतर था। चित्रकूट में जब तक राम रहे कोई विघ्न बाधा उन्हें वहां नहीं आयी। जब वे चित्रकूट छोड़ कर सघन वन प्रान्तर में दक्षिण की ओर बढ़े और पंचवटी में डेरा जमाए तभी मुसीबतों का पहाड़ उन पर टूट पड़ा।
रहीम ने चित्रकूट को ही विपदा स्थल का प्रवास स्थल माना है। उन्ही के शब्दों में पढें,
चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश,
जेहि पर विपदा पड़त है सोहि आवत एहि देस !!
रहीम भी एक संकट में जब पड़े थे तो यहां आये थे।

चित्रकूट में डॉ राममनोहर लोहिया ने पचास साल पहले रामायण मेला शुरू किया तो कोई विवाद नहीं खड़ा हुआ। यह उनकी अनोखी परिकल्पना थी। राम तुलसी के आराध्य हैं, कबीर के निर्गुण के आधार, इकबाल के इमाम ए हिन्द, गांधी के जीवन की प्रेरणा, और अब 1985 से सत्ता पाने और बचाने का एक हथियार बन गये हैं। डॉ लोहिया के रामायण मेला का सबने स्वागत किया। पर जब से संघ/ वीएचपी/भाजपा यानी संघ परिवार राम मंदिर के मामले में कूदा है तब से राम न घर के रहे न घाट के। कारण साफ है। उनका राम से कोई सरोकार ही नहीं है। राम जहां सबके लक्ष्य हैं वहीँ वह कुछ स्वार्थी राजनेताओं और दलों के लिये सत्ता तक पहुंचने की सीढ़ियां हैं, जहां पहुंच कर राम की सीढ़ी को वे तपेट कर रख देते हैं, ताकि वक़्त ज़रूरत वे फिर काम आएं। डॉ लोहिया राम को सियासत की नज़र से नहीं देश की आत्मा के रूप में देखते थे, पर संघ, वीएचपी, आदि आदि राम को केवल सियासत की नज़र से देखते हैं। जब ऐसा विकट  दृष्टिदोष हो तो क्या राम, और क्या हनुमान। जो विष्णु के ग्यारहवे अवतार, मिथ्यावतार कहें वही सही।

आरएसएस जो एक सांस्कृतिक संगठन के नाम पर देश की सियासत में जहर घोल रहा है, अपनी कुंठा और भड़ास सुप्रीम कोर्ट के ऊपर निकाल रहा है। उसके लिये धर्म केवल और केवल एक राजनीति का मामला है। वह न धर्म जानता है न दर्शन। वह बस एक दूसरे से लड़ाना जानता है और देश को बांटना चाहता है। झूठ तो लगता है कि प्रथम उपदेश की तरह घुट्टी में ही दे दी जाती है। अयोध्या में जमावड़ा हुआ और भीड़ नहीं जुटी तो, मुंबई की मराठा रैली की फ़ोटो छाप दी। झूठ और फरेब चाहे जितना फ़ैला लीजिये इनसे, पर  देश की आर्थिक उन्नति, विकास, वैज्ञानिक सोच और समतावादी समाज मे इनकी कोई रुचि नहीं है।

© विजय शंकर सिंह 

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