अगर आप किसी भी अंतरराष्ट्रीय मैच में अपने देश के टीम के साथ प्राथमिकता के आधार पर खड़े नहीं हैं और प्रतिद्वंद्वी देश के खिलाड़ी की सराहना कर रहे हैं तो आप यह देश छोड़ दीजिए। यह कहा है विराट कोहली ने। यह खबर इंडियन एक्सप्रेस में छपी है।
संकीर्ण और मिथ्या राष्ट्रवाद का वायरस खेलों में भी आ गया है। अत्यधिक धन, ऐश्वर्य, और ख्याति का एक साइड इफेक्ट यह भी है कि वह उस व्यक्ति को मिथ्या अहंकार के पंक में अंदर तक गाड़ देता है। वह अपने प्रभा मंडल से निकलने वाले प्रकाश से इतना चुंधिया जाता है कि कुछ दूर के बाद कुछ देख ही नहीं पता। यह एक अलग प्रकार का दूरदृष्टि दोष है। इन विराट नामधारी मशहूर क्रिकेटर की इस क्षुद्र सोच और मानसिकटा पर बस तरस ही खाया जा सकता है।
राजनीति और देश की सीमाएं होती हैं। पर साहित्य, ललित कलाएं, और खेल कूद की कोई सीमा नहीं होती है। भौतिक रूप से महान क्रिकेटर, डॉन ब्रेडमेन भले ही ऑस्ट्रेलिया और महान फुटबाल खिलाड़ी पेले ब्राजील के हों पर वे दुनिया भर के उन खिलाड़ियों और खेल प्रेमी जन के लिए प्रेरणास्रोत रहे हैं। आज सचिन से पूछिये, उनके प्रेरणा स्रोत का नाम, वे ब्रेडमेन का नाम लेंगे। हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद न केवल भारतीय हॉकी बल्कि विश्व हॉकी की धरोहर हैं। यही बात साहित्य और ललित कलाओं के क्षेत्र में भी है। यहां तक कि राजनीति में भी, लेनिन, माओ, गांधी, नेल्सन मंडेला, फिडेल कास्त्रो, आदि ऐसी शख्सियत हैं जो अपने देश की सीमाएं लांघ कर विश्वव्यापी बन चके हैं। वे अखिल विश्व के हैं न कि केवल कागज़ पर पसरे रंग बिरंगे देशों के।
जब दो देशों के बीच खेल होता है और जब उस खेल में हमारा देश एक पक्ष रहता है तो हम सबका स्वाभाविक रुझान अपने ही देश के खिलाड़ियों की ओर रहता है। यह बात केवल देश के ही सम्बंध में नहीं बल्कि अत्यंत निचले स्तर पर स्कूली खेलों के लिये भी लागू है। बचपन मे या कॉलेज स्तर पर खेलकूद की प्रतियोगिताओं में अपने पक्ष की सराहना और प्रतिद्वंद्वी पक्ष की हूटिंग आम बात होती थी। कभी कभी आपस मे मारपीट भी हो जाती थी। पर प्रतिद्वंद्वी पक्ष के अच्छे खिलाड़ी या वह खिलाड़ी जो अच्छा प्रदर्शन करता है तो हमारी तालियां उसके लिये भी बजती थीं । हम आज भी इसी सोच के अनुसार प्रतिद्वंद्वी के भी अच्छे खेल प्रदर्शन की सराहना करते हैं। हम उसके भी ऑटोग्राफ लेते हैं। राष्ट्रवाद का अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि हम दुनिया के अन्य देशों के प्रति इतने उदासीन हो जाँय की अपनी खिड़कियां बंद कर के कूपमंडूकता के स्थायी भाव मे चले जाँय। राष्ट्रवाद देश के लिये स्वाभिमान का भाव रखना तो है ही पर अन्य देशों के प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना न रखना भी है। एक स्वाभिमानी व्यक्ति सबके स्वाभिमान के सम्मान का ध्यान रखता है। अगर ऐसा नहीं है तो यह स्वाभिमान नहीं अहंकार है। यह धन, वैभव, सामर्थ्य के साथ साथ लोकप्रियता का भी हो सकता है ।
प्रख्यात और सेलिब्रिटी होने का यह अर्थ नहीं है कि उनकी हर बात सराही ही जाय। उनकी हर बात अनुकरणीय हो। विराट कोहली के अनुसार जो उनकी टीम और भारतीय क्रिकेटर को न सराहे वह देश छोड़ कर चला जाय। जबरन जलावतनी कराने का यह रोग गिरिराज सिंह, सम्बित पात्रा, और साक्षी जैसे क्षुद्र बुद्धि के नेताओं तक ही सीमित रहे तो बेहतर है। राजनीति से इतर क्षेत्रों में इस रोग की पैठ हमे बीमार कर देगी। विराट एक अच्छे, प्रतिभावान और दमदार खिलाड़ी हैं। पर वे इस खेल और प्रतिभा के न तो आदि हैं और न ही अंत । उनका या तो हमे सराही या देश छोड़ो अभियान में शामिल होना दुःखद और दुर्भाग्यपूर्ण है।
जमाल एहसानी का एक बेहद खूबसूरत शेर एक मित्र ने भेजा है, जो इस संदर्भ में मौज़ू हैं भी पढ़ लीजिये,
इस सराए में न फैलाइए अज्जा-ए-हयात
जानें किस वक़्त ये सामान उठाना पड़ जाए !
इस क़दर ऐश-ए-मोहब्बत पे न ख़ुश हो कि तुझें,
दूसरे इश्क़ में नुक़सान उठाना पड़ जाए !!
© विजय शंकर सिंह
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