Friday 23 November 2018

फैक्स, भूख, विरोधाभासी विचारधारा, पाकिस्तान और जम्मू कश्मीर की भंग विधानसभा - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

जम्मू कश्मीर की विधानसभा 21 नवंबर 2018 को अचानक भंग कर दी गयी है। विधानसभा के भंग किये जाने के पीछे जो तर्क  वहां के राज्यपाल सत्यपाल मलिक द्वारा दिये गए हैं वे इस प्रकार हैं।
महबूबा मुफ्ती की तरफ से उन्हें सूचना नहीं मिली कि वे मिलना चाहती हैं और क्यों मिलना चाहती हैं, क्योंकि राजभवन मे ईद की छुट्टी होने के कारण फैक्स रिसीव करने वाला नहीं था और यहां तक कि उन्हें भोजन देने वाला भी कोई नहीं था। इसलिये उन्हें यह पता ही नहीं चल सका कि महबूबा कब और क्यों मिलना चाहती थीं। 
अगर उन्हें फैक्स मिल भी जाता और यह ज्ञात हो भी जाता कि पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस, और कांग्रेस साथ मिल कर सरकार बनाना चाहते हैं तो भी उनका निर्णय यही होता, यानी विधान सभा तब भी भंग की जाती।
यह गठबंधन अगर होता तो, अनैतिक और एक दूसरे से विपरीत विचारधाराओं का होता जो अनुचित था, इसलिए विधानसभा भंग की गयी।
उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त एक अन्य कारण राम माधव जो आरएसएस और भाजपा के पदाधिकारी हैं ने बताया है वह इस प्रकार है,
" यह गठबंधन पाकिस्तान के इशारे पर हो रहा था अतः देशविरोधी गठबंधन होता। "

विधानसभा भंग करने का कारण एक टेलीफोन अर्दली के अभाव, भोजन की अनुपलब्धता, विरोधाभासी राजनीतिक विचारधाराओं के मेल, और पाकिस्तान के इशारे पर जेके की राजनीति के संचालन की बात कही गयी ।

अगर फैक्स अर्दली और दिन भर राज्यपाल को भोजन नहीं मिला तो यह जम्मू कश्मीर की हालत तो फिलहाल छोड़ ही दीजिये, राजभवन के खस्ताहाल प्रबंधन की ही चिंता पहले की जानी चाहिये । अब भूख तो बडी विचित्र व्यथा है। जिसे भूख लगे और भोजन न मिले वही इस व्यथा को समझ सकता है। भूख दुनिया की एक शाश्वत समस्या है, सारी राजनीति ही इसके नाम पर और इसके समाधान के लिये की जाती है। भूखा व्यक्ति कौन सा पाप नहीं कर सकता है, यानी सारे पाप वह कर सकता है, यह मैं नहीं कह रहा हूँ पुरानी किताबों में लिखा है कि, बुभुक्षितं किम न करोति पापम ! सबसे पहले तो राज्यपाल को चाहिये कि राजभवन की आंतरिक प्रशासन व्यवस्था को दुरुस्त करें, ताकि अगली बार उनका फैक्स अर्दली बराबर मौजूद रहे और  उन्हें मनचाहा भोजन मिल जाय, क्योंकि वे जिस पद पर डल के किनारे शानदार और भव्य प्रासाद में हैं वहां मौसम भले ही शीत का हो पर सियासत हमेशा गर्म ही रहती है। राजभवन से थोड़ी ही दूर शंकराचार्य पहाड़ी पर विराजे शिव भी विचित्र खेल खेलते हैं, राज्यपाल तक को भूख का एहसास करा देते हैं !

दूसरा तर्क कि यह सरकार विपरीत विचारधारा के  मेल की होती,  अगर बनती  तो। हमारा संविधान सभी राजनीतिक विचारधाओं के प्रति समावेशी चरित्र का है। यह न फासिस्ट दक्षिणपंथी संविधान है जहां वामपंथ को हतोत्साहित किया जाय और न ही कम्युनिस्ट लोकतंत्र जहां सर्वहारा की तानाशाही ही लोकतंत्र का पर्याय बन जाती है। यह संविधान उदार अर्थव्यवस्था की पक्षधर, स्वतंत्र पार्टी से लेकर सीपीआईएमएल की राज्य नियंत्रित अर्थव्यवस्था की वकालत करने वाले दलों और विचारधाओं को समान रूप से अपनी गतिविधियों को चलाने का अवसर देती है। अगर यह विपरीत वैचारिकी तालमेल होता तो भी, यह कोई पहलीं बार नहीं होता। 1967 के गैर कांग्रेसवाद के दिनों से लेकर जम्मू कश्मीर में भाजपा पीडीपी गठबंधन तक विपरीत राजनैतिक दलों में वैचारिक विरोधाभास के बावजूद भी सरकारें बनी है और चली हैं और आगे भी बनेंगी। संविधान राज्यपाल को विचारधाओं के आधार पर गठबंधन के औचित्यता की परख और मूल्यांकन का आधार नहीं देता है। राज्यपाल को यह समाधान होना आवश्यक है कि बनने वाली सरकार चल पाएगी और संख्याबल में सरकार बनाने का दावा करने वाले नेता के पास बहुमत का है। यह फैसला भी अब सदन पर ही छोड़ गया है कि बहुमत का निर्णय वहीं होगा।  यह समाधान तभी सम्भव है जब राज्यपाल उन सभी दलों से बात करें जो सरकार में शामिल होना या बाहर से समर्थन देना चाहते हैं। पर इस मामले में ऐसा नहीं किया गया है। पीडीपी ने सरकार बनाने की पहल की और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने उसे बाहर से समर्थन देने की बात की, और कांग्रेस ने अभी विचार करने की सोची, और राज्यपाल ने बिना किसी से बात किये, बिना सरकार बहाली की संभावनाओं को तलाशे ही तत्काल विधानसभा को ही भंग कर दिया, यह एक अपरिपक्व निर्णय ही कहा जायेगा। निर्णय का खोखलापन राज्यपाल भी समझ रहे हैं तभी फैक्स मशीन और भोजन न मिलने की बात वे कह भी रहे हैं।

राज्यपाल ने हॉर्स ट्रेडिंग यानी विधायकों की खरीद फरोख्त की भी बात भी कही है। यह कोई अनोखा आरोप नहीं है। हॉर्स ट्रेडिंग और दलबदल की बीमारी पहले से ही है। हो सकता हो राज्यपाल को इसकी पुख्ता सूचना रही हो। अगर ऐसी बात है तो अलग बात है। उमर अब्दुल्ला ने राज्यपाल को इस आरोप पर कार्यवाही करने को कहा है।

राम माधव ने सरकार बहाली में पाकिस्तान का हांथ देख लिया है। आखिर राम माधव और उनके संघटन को हर बात में पाकिस्तान ही क्यों नज़र आता है ? पिछले सालों से देश की हर समस्या में पाकिस्तान का ही हाँथ इन्हें मिलता है। लगता है, राम माधव के पास पाकिस्तान से जुड़ी खबरें और गोपनीय सूचनाएं बड़ी सटीक रहती हैं। मोहन भागवत  भी ऐसे थोड़े ही कहते हैं कि पाकिस्तान हमारा छोटा भाई है। दरअसल पाकिस्तान बनना ही इनका आदर्श है।

पाकिस्तान से मेरा मतलब है 1937 के सावरकर के द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत पर आधारित एक धार्मिक राष्ट्र,  जिसे जिन्ना ने तो अपने ' स्टेनो और टाइपराइटर ' की मदद से प्राप्त कर लिया था, और सावरकर एंड कंपनी जो, गांधी, नेहरू, पटेल आदि धर्मनिरपेक्ष ताकतों के सामने कहीं स्टैंड नहीं करती थी, हिंदू राष्ट्र का अपना लक्ष्य पाने में असफल रही। 1947 में आज़ादी के बाद ही भारत एक धर्म आधारित राष्ट्र हो, का इच्छित लक्ष्य न पा सकने के कारण, संघ, हिन्दू महासभा आदि हिंदुत्व संगठन, कुंठा और खीज से भर उठे। परिणामस्वरूप गांधी की हत्या उन्होंने कर दी और उस अवसर के चूक जाने की दुश्मनी  वे, नेहरू से, उनके बारे में दुष्प्रचार करके, आज तक निकाल रहे हैं। नेहरू का यह खिजलाहट भरा विरोध, अब गोपन नहीँ रहा, इसे सभी देख रहे हैं। यह कुंठा भारत के धर्म आधारित राष्ट्र न बना पाने का एक प्रमुख कारण है। ये राष्ट्रवादी खुद को कहते हैं। पर जब देश आज़ादी के लिये लड़ रहा था तो ये जिन्ना और अंग्रेज़ो के साथ मिल कर देश को बांटने का षडयंत्र कर रहे थे। अब जाकर इनके दिन बहुरे हैं, तो अभी भी उसी उम्मीद में हैं कि 1937 से अपना अभियान 1937 की ही मानसिकता और सोच से शुरू करें।

घरवापसी, गौरक्षा के नाम पर गौंगुंडे, लव जिहाद, नाम परिवर्तन, इतिहास की गलत व्याख्या, पूरे मुस्लिम काल को ही खलकाल बताना यह सब वैसे ही है जैसे पाकिस्तान में जनरल जिया उल हक ने अपने समय मे किया था। जिया ने पाकिस्तान में सारे हिन्दू और साझे भारतीय प्रतीकों को बदलने का अभियान चलाया था। मक़सद धर्म की पिनक में सत्ता पर अपना कब्जा मज़बूत करना। यह भी उसी फौजी हुक्मरां के नक़्शे कदम पर चलना चाहते हैं। पर विवेकपूर्ण बहुसंख्यक आबादी के विरोध के कारण इनकी हिम्मत नहीं पड़ती है।  हैरानी की बात है कि, कभी अंग्रेज़ो के दमन, उनके काल मे ईसाई मिशनरियों द्वारा व्यापक धर्मांतरण की निंदा करते आपने इन्हें कम ही देखा होगा। यह बस पाकिस्तान जैसा धार्मिक कट्टर मुल्क बनना चाहते हैं और इनके अवचेतन में ही यह पैठ चुका है कि हम भी एक धर्म आधारित राष्ट्र बनें। इसी लिये जब भी साझी विरासत, रिवायत, साहित्य, संगीत, भाषा, सभ्यता, संस्कृति और इतिहास की बात आप शुरू करेंगे तो ये सिकुलर कह कर मज़ाक़ उड़ाते हैं। राम माधव से यह कोई पूछे कि क्या चार साल पहले पाकिस्तान के कहने पर बीजेपी ने पीडीपी का, जो अलगाववादी तत्वों के साथ सहानुभूति भी रखती है, मिल कर सरकार चलाई थी सभी पत्थरबाज़ों का मुक़दमा माफ कर दिया था ? तब मुस्कुरा कर कहेंगे कि हम तो राजनीति नहीं करते सांस्कृतिक संगठन हैं।

© विजय शंकर सिंह

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