मीडिया खबरों के अनुसार, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बुधवार को विधानसभा भंग कर दी। विधानसभा भंग होने से पहले करीब आधे घंटे के भीतर दो दलों ने राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था। पहले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की मुखिया महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को भेजी चिट्ठी में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के समर्थन की बात कही। उन्होंने कहा कि उनके साथ 56 विधायक हैं। महबूबा के दावे के 15 मिनट बाद ही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के लीडर सज्जाद लोन ने भी राज्यपाल को चिट्ठी भेजने की बात कही। सज्जाद ने कहा कि भाजपा के सभी विधायकों के अलावा 18 से ज्यादा अन्य विधायकों का समर्थन हमारे साथ है। ये संख्या बहुमत से ज्यादा है जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने बुधवार को विधानसभा भंग कर दी। विधानसभा भंग होने से पहले करीब आधे घंटे के भीतर दो दलों ने राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया था। पहले पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की मुखिया महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को भेजी चिट्ठी में कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के समर्थन की बात कही। उन्होंने कहा कि उनके साथ 56 विधायक हैं। महबूबा के दावे के 15 मिनट बाद ही पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के लीडर सज्जाद लोन ने भी राज्यपाल को चिट्ठी भेजने की बात कही।
जम्मू-कश्मीर में बुधवार को पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने गठबंधन सरकार बनाने के संकेत दिए। पीडीपी नेता अल्ताफ बुखारी ने कहा- हमें कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का समर्थन है। 60 विधायक हमारे साथ हैं। इससे पहले कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा- हमारा ये कहना था कि क्यों ना एक होकर सरकार बनाएं। इस सुझाव पर बातचीत चल रही है। जम्मू-कश्मीर में 16 साल बाद इस तरह के हालात बने थे। 2002 में भी पीडीपी-कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई थी और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने बाहर से समर्थन दिया था। यह सरकार पांच साल चली थी।
जम्मू कश्मीर की विधानसभा भंग के आदेश को जेके हाईकोर्ट में अगर चुनौती दी जाती है तो राज्यपाल के विधानसभा भंग के इस आदेश को अदालत द्वारा असंवैधानिक ठहराया जा सकता है। विशेषकर तब, जब राज्य में लोकप्रिय सरकार बनने की बात चल रही हो । राष्ट्रपति शासन एक असामान्य प्राविधान है। वह संविधान की मूल भावना के विपरीत है। राज्य में जनता द्वारा चुनी हुई सरकार ही रहनी चाहिये। जब लोकप्रिय सरकार बनने की कोई संभावना न हो तो विधानसभा भंग करके चुनाव कराना चाहिये। राज्यपाल का यह आदेश अपरिपक्व और पलायनवादी है। राज्यपाल को लोकप्रिय सरकार बनाने का अवसर सभी दलों को देना चाहिये था, नहीं बनने पर तो अंतिम विकल्प के रूप में विधानसभा भंग की ही जा सकती थी। इसके अतिरिक्त, तब भी विधानसभा भंग की जा सकती थी जब, सरकार गिरी थी। आज पीडीपी, कांग्रेस, एनसी की नयी सरकार बनाने के लिये राजनीतिक गतिविधियां चली थीं और यह खबर मीडिया में भी आयी। पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल से सरकार बनाने के इरादे से मिलने का समय भी मांगा है। राज्यपाल का यह कर्तव्य भी था, कि वह राज्य में लोकतांत्रिक सरकार के गठन की संभावना तलाश करे और जब सारे विकल्प समाप्त हो जाँय तो विधानसभा भंग कर दें। वह पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती से मिलते, और नेशनल कॉन्फ्रेंस तथा कांग्रेस का भी रुख देखते, और जब लगता कि लोकप्रिय सरकार का गठन संभव ही नहीं है तो विधानसभा के भंग करने के अतिरिक्त कोई विकल्प बचता भी नहीं। पर यहां जिस प्रकार से अचानक विधानसभा भंग की गयी है वह लोकप्रिय सरकार की स्थापना के समाधान के तलाश की बात तो छोड़ ही दीजिये, लोकप्रिय सरकार के गठन की कोशिश प्रारंभ होते ही राज्यपाल ने राज्य विधानसभा भंग कर दी। अब इस आदेश को अदालत में चुनौती दी जाती है या नही, यह देखने की बात है।
© विजय शंकर सिंह
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