Monday, 5 November 2018

धर्मादेश या सियासत की सीढ़ी - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

अयोध्या के संत समागम में जो धर्मादेश जारी किया गया है कि चुनाव के पहले मंदिर की घोषणा हो और बनना शुरू हो, यह न तो राम के प्रति आस्था भाव है न ही देश के प्रति अस्मिता बल्कि यह शुद्ध चुनावी राजनीति की एक रणनीति है। यह रणनीति पहले भी आजमायी जा चुकी है और गाहे बगाहे आगे भी आजमायी जाती रहेगी। मंदिर निर्माण की गतिविधियों का एक प्रमुख उद्देश्य है सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण। ध्रुवीकरण करना और उस कीचड़ में कमल खिलाना सत्तारूढ़ दल भाजपा और संघ की पुरानी रणनीति रही है। सरकार बनते ही, घर वापसी, लव जिहाद, गौरक्षा के नाम पर गौआतंक इन तीनों कार्यक्रमों का मूल उद्देश्य ही यह था कि हिन्दू और मुस्लिम एक दूसरे से उलझें और एक साम्रदायिक भेदभाव पैदा हो। यूपी के चुनाव में प्रधानमंत्री का श्मशान बनाम कब्रिस्तान की बात करना भी उसी ध्रुवीकरण के प्रयास का एक उपक्रम था। यह धर्मादेश, संतो की बढ़ती गतिविधियां, इस चुनावी वर्ष में केवल देश मे एक विभाजनकारी माहौल बनाने की ओर एक कदम है ताकि हिन्दू और मुस्लिम समाज के वोट धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत हों और इसका राजनीतिक लाभ लिया जा सके।

लेकिन इतने विभाजनकारी षडयंत्रों के बावजूद, देश के साम्रदायिक माहौल में शांति बनी रही, यह राहत की बात है। साम्प्रदायिक तनाव की घटनाएं भी हुयी हैं पर 1992 जैसा घृणित ध्रुवीकृत माहौल नहीं बन पा रहा है। वे वही माहौल चाहते हैं। उभय समुदायों  में कोई बहुत बड़ी तनातनी की खबरें नहीं आयीं है । यह खबर सुरक्षा बलों और सरकार के लिये प्रशंसा का बायस हो सकती है पर कट्टरपंथी तत्वों को रास नहीं आ रही है। दोनों ही समुदाय के लोग कट्टरपंथी तत्वों का गेम प्लान समझ गए हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं है ये कट्टरपंथी तत्व केवल मुस्लिमों के ही खिलाफ हैं, बल्कि वे उन बहुसंख्यक उदार हिंदुओं के अधिक खिलाफ हैं जो इनका गेम प्लान समझते हैं और उसे सफल नहीं होने देते। सौभाग्य से बहुसंखयक समाज मे ऐसे उदार मानसिकता के लोगों की बहुलता है जो धर्म और साम्प्रदायिक राजनीति को हतोत्साहित करते रहते  हैं।

मुस्लिम समाज में भी एक सुखद परिवर्तन दिख रहा है कि वे भी अब इन कट्टरपंथी तत्वों के  गेम प्लान को समझ गए हैं और अब वे इनके जाल में फंसना नहीं चाहते हैं। कुछ धर्मांध मौलाना जिनमे से कुछ चैनल प्रायोजित मुल्ले भी हैं जो इस ध्रुवीकरण बनाओ अभियान में हिन्दू कट्टरपंथी लोगो के हितसाधन में सायास और कुछ अनायास लगे रहते हैं, पर बहुसंख्यक मुस्लिम वर्ग में अब यह धारणा बन रही है कि साम्प्रदायिक कट्टरता का यह ज़हर न केवल देश बल्कि  समाज और परिवार के लिये भी घातक है। यह जहर जनता से जुड़े  असल मुद्दे से सरकार को छुपने के लिये एक आड़ या कैमोफ्लेज जैसी सुविधा प्रदान करता है। साढ़े चार साल में सरकार को जब लगा कि आर्थिक और प्रगति के क्षेत्र में उसकी कोई ऐसी  उपलब्धि नहीं जिसे प्रचारित कर के चुनाव में जाया जा सके, तो उसने राम का आड़ लेने की कोशिश की है। राम को एक बार और छलने की यह कोशिश है।

ऐसे मूर्खतापूर्ण धर्मादेशों का कोई शास्त्रीय प्राविधान नहीं है। इनका कोई मतलब नहीं है। यह इनकी छटपटाहट, खिसकती हुयी ज़मीन की दरदराहट और समय गंवा देने की खिजलाहट के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। समाज के सभी वर्गों को विशेषकर हिन्दू मुस्लिम समुदाय को चाहिये कि वे अब थोड़ा परिपक्व बनें इन मूर्खता पूर्ण प्रलाप से दूर रहे, शिक्षा, रोज़गार, महंगाई, जीवन से जुड़े मुद्दे रोटी कपड़ा मकान, बेहतर जीवन तथा वैज्ञानिक और प्रगतिशील सोच के साथ आगे बढ़े। यह सब ढकोसले एक प्रकार से बुद्ध का मार हैं। इन मार से हम सब विचलित न हों ये छली मार, स्वतः हतोत्साहित हो जाएंगे। यह न धर्म है, न आस्था और न राम के प्रति अनुराग का प्रदर्शन, बल्कि यह जर्जर पौरोहित्यवाद के कंधे पर चढ़ कर सियासत की सीढ़ी चढ़ने की एक शातिर चाल है। यह राजनीति की एक रणनीति है।

© विजय शंकर सिंह

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