Tuesday, 27 November 2018

अथ गोत्र कथा उर्फ कैमोफ़्लाज / विजय शंकर सिंह

राहुल गांधी का गोत्र पता चल गया यह सरकार की एक बड़ी उपलब्धि है। डॉ  सम्बित पात्रा का शुक्रिया कि अगर उन्होंने सही वक्त पर यह सवाल नहीं उठाया होता तो आज देश किस दशा में रहता यह कहा नहीं जा सकता है। उधर सम्बित का सवाल गूंजा जो पहले ही जनेउ धारण किये , कैलास रिटर्न राहुल गांधी के निरंतर मंदिर मंदिर भ्रमण पर असहज हो रहे थे, और इधर मनुस्मृति से लेकर गूगल के सच्चे झूठे लिंक तक लोग गोत्र पर शोध करने के लिये सक्रिय हो गए। मुझे भी यह जानने की जिज्ञासा हुयी कि आखिर गोत्र अचानक इतना महत्वपूर्ण कैसे हो गया और यह है क्या ? भारतरत्न पीवी कांडे की वृहदाकार पुस्तक धर्मशास्त्र का इतिहास मेरे पास है सोचा इसी में से गोत्र का संदर्भ ढूंढ कर कुछ अपना ज्ञान बढाऊँ और सोशल मीडिया पर हो रहे गोत्रचर्चा में एकाध अपनी पोस्ट भी डालूं पर तब तक इतनी अधिक सूचनाएं आ गयीं कि मैंने सोचा कांडे साहब का गरिष्ठ लेखन कौन पढें। अब जाकर राहुल गांधी के गोत्र का सामाधान पुष्कर तीर्थ के तीर्थ पुरोहित ने कर दिया है । उन्होंने कोई बही देखी और कुछ दहा कर कह दिया कि इनका गोत्र दत्रात्रेय है।

इस रहस्य के खुलते ही सभी आरगुमेन्टेटिव इंडियंस के भीतर की शास्त्रार्थ परम्परा जाग उठी और पितृसत्तात्मक समाज से लेकर मनुस्मृति से होते हुये सत्यकाम जाबालि तक के किस्से सोशल मीडिया पर अवतरित होने लगे। एक पक्ष इस पर बज़िद है कि उनका गोत्र है तो दूसरा यह मानने को तैयार ही नहीं है कि राहुल का गोत्र भी हो सकता है। है, और नहीं है। अस्ति और न अस्ति का विवाद सनातन है। आज तक यह जारी है। जब कि यदि ईश्वर है तो भी दुनिया ऐसी ही रहती और अगर नहीं है तो भी दुनिया ऐसी ही रहती। दुनिया बनती बिगड़ती है हमारे पुरुषार्थ और फितरत से। ईश्वर तो कभी हमारे पचड़े में नहीं पड़ता है, हमी हर समय उसके चक्कर मे मुब्तिला रहते हैं। तो गोत्र पर यह बहस भी वैसे ही हो गयी। अचानक याद आया दुनिया मे एक हमीं भाग्यशाली हैं जिनके पास एक अदद गोत्र है और दुनिया के सारे विकसित राष्ट्र इस दैवी कृपा से वंचित हैं। कमबख्त हैं सब, भले ही कितने भी विकसित और संपन्न हों ।  ऐसे विकास और संपन्नता का क्या कीजे जब कोई गोत्र ही नहीं है उनके पास !

चुनाव के दौरान जब ऐसी बहस जिसका सरकार के क्रियाकलाप से कुछ भी लेना देना न हो, छिड़ जाती है तो सबसे राहत की सांस सरकार ही लेती है। वह तब किसी के निशाने पर नहीं होती है। उसके क्रियाकलाप, उसकी कमियां, उपलब्धियां आदि पर कोई चर्चा नहीं करता है। बिल्कुल वह बिना तैयारी के क्लास में आये हुए उस विद्यार्थी की तरह राहत की सांस लेती हैं, जिसके क्लास का टेस्ट लेने की घोषणा कर के मास्टर साहब कक्षा में आएं और कक्षा में कोई और मसला जंग की सूरत लिये  छिड़ा हो। तो मित्रो, अब राहुल का गोत्र पता चल गया है । अब सरकार के कामकाज की खबर लें। यह गोत्र का सवाल भी जानबूझकर कर उठाया गया सवाल था। इसका उद्देश्य ही यह था कि कुछ ऐसे मुद्दे, जो सीधे सरकार के कामकाज और उपलब्धियों से जुड़े हों, थोड़ा नेपथ्य में ही रहें और हम खम्भे पर चढ़ते उतरते तर्कों का तमाशा देखते रहें। अब यह तमाशा भी खत्म हुआ और रहस्य भी। तो अब उम्मीद की जाय कि कुछ सार्थक और लोकहित से जुडा विमर्श होगा।

( विजय शंकर सिंह )

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