First they came for communists,
And I didn't speak out because I wasn't communist.
Then they came for trade unionists,
And I didn't speak out because I wasn't a trade unionist.
Then they came for Jews,
And I didn't speak out because I wasn't a Jew.
Then they came for me,
And there was no one left to speak out for me.
मार्टिन निमोलार की जर्मन में लिखी इस कविता का ब्रेख्त ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है। यह एक प्रसिद्ध कविता है जो समाज मे अन्याय और अपराध के प्रति व्याप्त बढ़ती उदासीनता के खतरे बताती है। अत्याचार, अन्याय और अपराध एक मनोवृत्ति होती है। जब यह अनियंत्रित होकर भड़कती है तो किसी को भी नहीं छोड़ती है। यह कविता नाज़ी जर्मनी में हिटलर की बढ़ती लोकप्रियता फिर लोकप्रियता जन्य फासिस्ट तानाशाही के कदम दर कदम बढ़ते आतंक और तत्कालीन जर्मनी में समय समय पर अलग अलग समाजों की उदासीनता की मानसिकता को खुल कर बताती है। यह कविता दुनिया भर के उद्धरणों के बीच सबसे अधिक उद्धरित की जाने वाली कविताओं में से एक है। पास्टर मार्टिन निमेलर ने, जैसे कोई अंधकार धीरे धीरे लीलता जाता है एक एक कर के समाज के विभिन्न वर्गों को और जब एक समाज अत्याचार और अन्याय के तले कराह रहा होता है तो उदासीन पड़ा दूसरा समाज जो मूकदर्शक बना यह तमाशा देख रहा होता है, और वह सोच बैठा होता है कि खतरा उस तक नहीं आएगा, लेकिन वह हतभाग्य अपने ककून में बैठा, कल आने वाली काल बैसाखी की तीव्रता का अनुमान नहीं लगा पाता है और वह भी अंततः उसी अत्याचार और अन्याय की गिरफ्त में आ ही जाता है, की मनोदशा और उसके दुष्परिणाम को बहुत ही सरल शब्दों में अभिव्यक्त किया है।
समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा, उनका भी अपराध।
दिनकर की यह कालजयी पंक्तियां पास्टर की कविता को बेहद खूबसूरती से अभिव्यक्त करती हैं।
पास्टर की कविता का अनुवाद मैं पस्तुत कर रहा हूँ।
पहले वे कम्युनिस्टों के लिए आए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था।
फिर वे आए ट्रेड यूनियन वालों के लिए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन में नहीं था।
फिर वे यहूदियों के लिए आए
और मैं कुछ नहीं बोला
क्योंकि मैं यहूदी नहीं था।
फिर वे मेरे लिए आए
और तब तक कोई बचा था
जो मेरे लिए बोलता।
सीधे शब्दों में बिना किसी काव्य लालित्य के लिखे गए ये शब्द तटस्थता और उदासीनता के खतरे बयां कर जा रहे हैं। यहां न छंद है न अलंकार, न कल्पना की अनन्त उड़ान और न ही इश्क़ की आहो फुगां, बस कुछ शब्द हैं जो हमे आगाह कह रहे हैं। इसे कविता कहिये, या एकालाप या आह्वान या चेतावनी, जो भी कहिये पर इन शब्दों ने हिटलर के समय जर्मनी के विभिन्न समाजों में जो उदासीनता और तटस्थता पसरी थी को बेहद मजबूती से अभिव्यक्त कर दी है।
मार्टिन नीमोलर, ( 14 जनवरी - 6 मार्च 1884 ) का पूरा नाम फ्रेडरिक गुस्ताव एमिल मार्टिन निलोमर Martin Niemöller (German: [ˈniːmœlɐ]; 14 January 1892 – 6 March 1984) है, जो एक जर्मन पास्टर था । हिटलर और नाज़ीवाद के सतत विरोध के कारण, वह सुर्खियों में रहा। 1930 में वह नाज़ीवाद के प्रबल विरोध में खड़ा हुआ। उसकी यह कविता, दुनिया भर के अनेक भाषाओं में अनूदित हो चुकी है। प्रारम्भिक जीवन में वह रूढ़िवादी और एडोल्फ हिटलर के समर्थन में था। लेकिन बाद में वह चर्च की उस विचारधारा का संस्थापक बन गया जो हिटलर और नाज़ीवाद के विरुद्ध थी। यह संगठन, प्रोटेस्टेंट चर्च के नाज़ीकारण के विरुद्ध था। यह हिटलर के शुद्ध आर्य रक्त के सिद्धांत के विरुद्ध था और यहूदियों के बारे में इसके विचारों का नाज़ीवादियों ने विरोध किया। इसे साचसेनाहुसें और दाचाऊ के यातना गृहों में 1938 से 45 रहना पड़ा। वहां यह किसी तरह से फांसी के दंड से बचा था। बाद में जब अपराधों की स्वीकारोक्ति के लिये स्टटगार्ड डिक्लेरेशन ऑफ गिल्ट ( Stuttgard Declaration of Guilt ) का गठन हुआ तो यह उसके संस्थापकों में से रहा। वह शांति का पैरोकार और युद्ध विरोधी एक्टिविस्ट था और 1966 से 72 तक वॉर रेसिस्टर इंटरनेशनल War Resister International का उपाध्यक्ष रहा। वियतनाम युद्ध के दौरान इसने होची मिन्ह से भी मुलाकात की थी। और उन्हें अपना समर्थन दिया था। परमाणु अस्त्रों का यह मुखर, मार्टिन ने अपने जीवन मे हिटलर की इतनी नृशंस हिंसक गतिविधियां देखी थी कि बाद में यह जीवन पर निःशस्त्रीकरण के लिये अपनी आवाज़ उठाता रहा।
© विजय शंकर सिंह
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