8 नवंबर 2016 को रात 8 बजे जब टीवी ने बताया था कि प्रधानमंत्री एक ज़रूरी इत्तला देश को देने जा रहे हैं तो हम सब अपने अपने घरों में टीवी सेट्स की ओर ध्यानमग्न हो बैठ गए थे। तभी कुछ तस्वीरों में पीएम सेनाध्यक्षों के साथ नज़र आये। मेरा भी दिमाग सीमा और सीमापार से संचालित गतिविधियों की ओर चला गया। मैंने टीवी का वॉल्यूम थोड़ा और बढ़ा दिया।
पीएम नमूदार हुये। बोलना शुरू किया उन्होंने। अचानक उन्होंने कहा कि
" आज आधी रात से रात के बारह बजे से 500 और 1000 रुपये के नोट लीगल टेंडर नहीँ रहेंगे। "
यही वाक्य दुबारा दुहराया गया। हम सबने इसे गौर से सुना। और एक ही फरमान में देश की 77 % मुद्रा चलन से बाहर हो गयी ।
कितने हुलास से कहा था प्रधानमंत्री जी ने तब। थोड़ा याद कीजिए। कहा था, नोटबंदी से तीन काम सधेंगे।
* नक़ली मुद्रा समाप्त हो जाएगी।
* आतंकियों की फंडिंग रुक जाएगी।
* सारा कालाधन जो देश मे है वह सामने आ जायेगा ।
* भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगा।
पर हुआ क्या,
* 99 % से अधिक मुद्रा बैंकों में वापस आ गयी।
* कितनी नक़ली मुद्रा थी, उसका अनुमान भी सरकार नहीं लगा सकी।
* आतंकवाद पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ा। उल्टे इतनी अधिक आतंकी गतिविधियां बढ़ गयीं कि चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर के गवर्नर का शासन लागू करना पड़ा।
* सरकार यह तक बता नहीं पायी कि आतंकियों की फंडिंग पर क्या असर पड़ा।
* कालाधन गया कहाँ ? सोने में निवेश हो गया या स्विस बैंक में चला गया। क्योंकि सोने का आयात भी बढ़ा है और स्विस बैंक में जमा रकम भी।
* भ्रष्टाचार के बारे में पूंजीपतियों और व्यवसायियों से पूछ कर देख लें। वे सभी विभागों की रेट लिस्ट थमा देंगे और यह भी बता देंगे कि कितना किसका कब कब बढ़ा है।
* नोटों के बदलने में तो खुल कर रिजर्व बैंक और अन्य बैंकों ने भ्रष्टाचार किया। उनके तो रेट ही तय हो गए थे। यह रेट 30 % का लोग बता रहे थे।
मेरा खाता कानपुर एसबीआई की मोतीझील ब्रांच में है। मुझे याद है कैश निकालने के लिये गया था तो दो दो हजार के दो नोट देते हुए जब मैनेजर साहिबा ने एहसान चढ़ाती नज़रों से देखा तो लगा कि राष्ट्र निर्माण के इस महायज्ञ में हम भी कुछ आहुति दे रहे हैं। उस समय तो प्रधानमंत्री जी ने भी यही कहा था कि यह राष्ट्र निर्माण की बेला है। थोड़ा कष्ट सहिये। रुपया मेरा, बैंक मेरा, ब्रांच मेरी और खाता मेरा। एहसान सरकार का।
पर तब भी देश मे बहुत लोग समझदार भी थे, जो राष्ट्र निर्माण के इस खोखलेपन को समझ रहे थे। उन्ही में से एक है डॉ मनमोहन सिंह, जो पूर्व पीएम तो है ही एक बड़े अर्थशास्त्री भी है । अमूमन कम बोलने वाले डॉ सिंह ने नोटबंदी पर बहस के दौरान निम्न वाक्य सदन में कहा था ~
"A monumental management failure by the Central govt. In fact this is organised loot & legalised plunder."
इस वाक्य का एक एक शब्द आज सच साबित हुआ। आज जब आरबीआई की रिपोर्ट आयी तो देश के आर्थिक इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी गलती भी सामने आ गयी। सरकार को ऐसी सलाह देने वाले, बिना योजना के ऐसा एडवेंचर करने वाले अफसरों, सलाहकारों और मंत्रियों और प्रधानमंत्री के खिलाफ जिम्मेदारी तय करने के लिये एक न्यायिक जांच आयोग गठित कर के उनके विरुद्ध कार्यवाही की जानी चाहिये।
याद कीजिये, प्रधानमंत्री ने लाल किला से भाषण देते हुये 15 अगस्त 2017 को कहा था, कि " नोटबंदी से 3 लाख करोड़ कालाधन पकड़ा गया है, " और आरबीआई के गवर्नर अब कुछ और कह रहे हैं। फिर झूठ किसने बोला है। पीएम ने, या गवर्नर साहब ने ?
एक और भाषण याद कीजिये। यूट्यूब पर मिल जाएगा। जब उन्होंने हाँथ नचा नचा कर पता नहीं किसका मज़ाक़ उड़ाते हुए गंगा में नोटों के प्रवाहित करने का एक किस्सा सुना के तंज भरे शब्दों में कहा था कि घर मे शादी है और पैसे नहीं है...और फिर एक सैडिस्ट हंसी। वह मुद्रा औऱ वह हंसी किसी आम आदमी की तो हो सकती है पर देश के सबसे जिम्मेदार पद पर बैठने वाले की तो कदापि नहीं हों सकती है। पर है। यह भी सच है।
एक और भाषण याद कीजिए। कहा था उन्होंने कि
" बहुत बड़े बड़े लोग उनके पीछे पड़े हैं। वे लोग उन्हें मार देंगे। भाइयों और बहनों पचास दिन, बस पचास दिन हमें दे दो। "
वह सूरत भी याद कीजिए, मासूमियत और बेबसी का मुखौटा ओढ़े।
फिर उन्होंने कहा था, वे किसी चौराहे पर आ जाएंगे।
अब चौराहे पर वे आयें या न आयें, देश की अर्थव्यवस्था को ज़रूर उन्होंने एक ऐसे चौराहे पर खड़ा कर दिया है कि सही दिशा और सही वक्त चुनने में अब जो दिक्कत आएगी उसकी कल्पना अर्थशास्त्री ही कर सकते है।
150 लोग, लाइनों में लगे लगे दम तोड़ गये। लोगों के परिवार की शादियां टूट गई या टल गयीं, लोगों के ज़रूरी काम अटक गये, उद्योगों में जो मंदी आयी वह आज भी बरकरार है या यूं कहिये अभी भी बढ़ रही है। आखिर इस बेवक़ूफ़ी भरे निर्णय की जिम्मेदारी कौन लेगा ?
एक मित्र ने सीधे शब्दों में समझाया कि इस तमाशे से #जीडीपी का 1% नुकसान हुआ जिसकी राशि 2.25 लाख करोड़ की होती है। इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? नरेंद्र मोदी या अरुण जेटली या आरबीआई का कोई बेचारा अधिकारी ?
क्या प्रधानमंत्री, वित्तमंत्री और आरबीआई के गवर्नर पर नोटबंदी से हुये आर्थिक नुकसान तथा अव्यवस्था के लिये न्यायिक जांच गठित कर मुक़दमा नहीं चलाया जाना चाहिये ?
यह जानना बहुत ज़रूरी है कि आखिर यह नोटबंदी का फैसला किसे लाभ पहुंचाने के लिये, किसके इशारे पर, अचानक बिना पर्याप्त तैयारी के सरकार ने 8 नवम्बर 2016 को कर दिया था, जिससे देश के उद्योग धंधे, विशेषकर असंगठित क्षेत्र में मंदी के आसार आ गए । लाभ की तो बात ही छोड़ दीजिये, देश की जीडीपी, प्रगति, आयात निर्यात, मौद्रिक अनुशासन, बैंकों की व्यवस्था, आदि पर व्यापक नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। जानकारों का कहना है कि कम से कम 10 साल इस आघात को पूरा करने में लगेगा।
धुआँ जो कुछ घरों से उठ रहा है...
न पूरे शहर पर छाये तो कहना...
जावेद अख़्तर का यह शेर भी बरबस याद आ गया !
नोटबंदी की फिलहाल तो एक ही उपलब्धि दिख रही है, भाजपा का नया भव्य और कॉरपोरेट की स्टाइल पर बना मुख्यालय।
© विजय शंकर सिंह
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