Sunday 26 August 2018

1984 के सिख विरोधी दंगे और राहुल गांधी का बयान - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का यह बयान कि 1984 में हुए सिख विरोधी ढंगों में कांग्रेस पार्टी की भूमिका नहीं थी, गलत और तथ्यों के विपरीत है। यह बयान उन्होंने विदेश में सन चौरासी के दंगे में कांग्रेस की भूमिका पर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में दिया था।

31 अक्टूबर को सुबह, इंदिरा गांधी की हत्या उनके दो सुरक्षा गार्द सतवंत सिंह और बेअंत सिंह द्वारा कर दी जाती है। सतवंत सिंह को एक तीसरे आदमी ने वहीं गोली मार दी। वह मौके पर ही खत्म हो जाता है। इंदिरा जी को एम्स ले जाया जाता है। इस अचानक घटी घटना ने सबको हक्का बक्का कर दिया। शाम को उनकी मृत्यु की घोषणा होती है, और राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह राजीव गांधी को शपथ दिला देते हैं।

1 अक्टूबर की शाम से सिखों के विरुद्ध माहौल बनने लगता है। फिर दंगे भड़क जाते हैं। यह न साम्प्रदायिक दंगा था न ही इसका कोई कारण धर्म था, यह दंगा एक प्रकार का एकतरफा सामूहिक हत्या, लूट आगजनी थी, और निशाने पर केवल सिख थे। दिल्ली, कानपुर, बोकारो ने जबरदस्त तबाही और जनधन की हानि हुई। इस दंगे को कांग्रेस ने एक दल के रूप में प्रायोजित किया था यह तो प्रमाणित नही है, पर दंगाई न केवल कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे बल्कि वे दल के पदाधिकारी और सांसद विधायक भी थे। बाद में जब राजीव गांधी से पत्रकारों ने इन दंगों के बारे में पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि, " जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती डोलती ही है। " डोलती हुयी धरती निर्दोष और मासूम परिवार को ही क्यों लीलती है, यह व्याकरण मैं आजतक नहीं समझ पाया हूँ।

इतने बड़े दंगे में बहुत कम लोग पकड़े गए, और सज़ायबी तो और भी कम हुयी। दंगे स्वयंस्फूर्त नहीं होते हैं। उन्हें हवा दी जाती है। कुछ को उकसाया और भड़काया जाता है। यहां भी यही हुआ। दंगे रोकने और न फैलने की जिम्मेदारी पुलिस और प्रशासन पर होती है। पर एक बात मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जब यह दंगा भड़का तो इसे रोकने में पुलिस और प्रशासन लगभग किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया था। दंगा इतना व्यापक था, एक दिन तो यह समझने में लगा कि किया क्या जाय। 1986 में जब मैं कानपुर आया तो सिख विरोधी दंगे की जांच चल रही थी। जस्टिस शाह कमीशन तो जांच करके चला गया था, पर जो मुक़दमे कायम थे, उनकी जांच के लिये जो दल गठित था उसका मैं प्रभारी था। जांच के सिलसिले में मुझे कानपुर के सिख परिवारो के बीच जाने और उनसे बात करने का बहुत अवसर मिला। आज भी मेरे सम्बंध कानपुर के कुछ सिख परिवारों से बहुत आत्मीय हैं। वहां जाकर उनसे बात कर, मुझे दंगे की भीषणता का एहसास हुआ और सरदारों की अदम्य जिजीविषा का भी मुझे भान हुआ। जांच के दौरान, उन दंगों में भी स्थानीय कांग्रेस के कुछ नेताओं कार्यकर्ताओं के नाम आये। उनके खिलाफ पुलिस ने चार्जशीट भी दायर की, मुक़दमे भी चले पर सज़ा एक भी नहीं हुयी। यह आपराधिक न्याय प्रणाली जिसका मैं एक लंबे समय तक पुर्जा रहा हूँ की घोर विफलता है।

हम एक या दो व्यक्ति या उनके कुछ गिरोह के ज़ुर्म की सज़ा पूरी कौम को नहीं दे सकते हैं। लेकिन हम देते हैं और यह मानसिकता गलत है। सतवंत और बेअंत ने अपनी धार्मिक भावनाओं से आहत हो कर इंदिरा गांधी की हत्या की या वे किसी बड़े षडयंत्र का भाग थे, यह बहस अलग है पर उनके किये के लिये पूरी सिख कौम को हम दोषी मान उन्हें मारने काटने निकल जांय यह पाशविकता और बर्बरता है। कांग्रेस के कुछ लोग उस बर्बरता में सक्रिय थे और सरकारें भी कांग्रेस की थी, एक दल के रूप में कांग्रेस की ऐसी बर्बरता में सहमति थी या नहीं, इस पर अंतहीन बहस चल सकती है, पर कांग्रेस सन चौरासी के भीषण सिख विरोधी दंगे के अपराध से अलग नहीं कर सकती है। उसे अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिये। राहुल गांधी का यह बयान सर्वथा अनुचित है। डॉ मनमोहन सिंह ने जब वे प्रधानमंत्री थे तो इस गलती के लिये वे देश से माफी मांग चुके हैं।

© विजय शंकर सिंह

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