Thursday 16 August 2018

एक कविता - यम, थोड़ा धैर्य रखो / विजय शंकर सिंह

आ तो गये हो,
पर ले नहीं जा पाओगे यम,
वही दरवाज़े पर थोड़ी प्रतीक्षा करो।

महिष कहीं छोड़ दो,
श्रांत है,
थोड़ा चरे, और थकान मिटाए !

तुम्हारे आने की बात,
उसे बता तो दी गयी है,
पर जब तुम्हारे जाने की बात पूछी,
तो कहा कुछ नहीं तंत्र ने।

सन्नाटा पसरा है वहां,
कान लगा कर सुना तो,
कुछ फुसफुसाहट सी है,
और बंद है दरवाजे की अर्गला,
तंत्र लगता है,
पशोपेश में है कुछ ।

अतः हे यम,
थोड़ी प्रतीक्षा करो,
थोड़ा धैर्य रखो ।

तुम जिस जगत से आये हो,
उस संसार में
मृत्यु शायद, नहीं होती है,
अमरत्व है वहां,
पर इस दुनिया मे,
लोग जीयें या मरें,
तंत्र अपना हित ढूंढ ही लेता है !!

© विजय शंकर सिंह

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