Saturday 25 August 2018

दिल्ली के रामलीला मैदान के नाम परिवर्तन का प्रस्ताव - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

खबर है कि दिल्ली के रामलीला मैदान का नाम अब अटल जी के नाम पर रखा जाएगा। एक मित्र ने बताया कि यह खबर पुष्ट नहीं है सोशल मीडिया में ही यह बात है। एक अन्य मित्र ने यह भी बताया कि नाम बदला नहीं जाएगा। इसका खंडन आ गया है। लेकिन इंडिया टीवी के अनुसार, बीजेपी के कुछ पार्षदों ने रामलीला मैदान का नाम बदलने का प्रस्ताव नगर निगम से किया है। रामलीला मैदान ही नहीं हिंदूराव अस्पताल का भी नाम बदलने का प्रस्ताव किया गया है। लेकिन अभी यह प्रस्ताव लंबित है, अंतिम निर्णय काउंसिल की बैठक में लिया जाएगा। एनडीएमसी के मेयर आदेश गुप्ता ने कहा है कि नाम बदलने की कार्यवाही 25 दिसम्बर, अटल जी के जन्मदिन के अवसर पर की जाएगी।

जो भी हो, रामलीला मैदान का इतिहास भी कम दिलचस्प नहीं है। उसे यहां पढ़ लीजिये।  यह मैदान इसलिए नहीं प्रसिद्ध है कि यहाँ कई बड़े आंदोलन हुये हैं बल्कि इसलिए प्रसिद्ध है कि यहां दिल्ली की प्रसिद्ध रामलीला होती है।

रामलीला मैदान नाम बहुत पुराना है। जिधऱ अब रामलीला मैदान है, वहां पर 1930 से पहले तालाब हुआ करता था। उसे भरकर इसे मैदान की शक्ल दे दी गई ताकि रामलीला का आयोजन सुगमता से हो सके। पहले रामलीला मैदान में होने वाली रामलीला लाल किले के पीछे यमुना के तट पर होती थी। पर बाढ़ आने के कारण, वहां कई बार रामलीला का आयोजन प्रभावित हो जाता था । इसी कारण से रामलीला आयोजन समिति ने स्थानीय प्रशासन से रामलीला के आयोजन के लिए अलग जगह देने का आग्रह किया।उसके बाद ही ब्रिटिश काल मे प्रशासन ने शहर के मध्य मौजूदा जगह का चयन किया और रामलीला के आयोजन के लिए तब यह मैदान नियत किया। 1932 में इस स्थान पर रामलीला प्रारंभ हुयी और वह क्रम आज भी जारी है। तब से इसका नाम रामलीला मैदान पड़ गया।

इसी रामलीला मैदान में गांधी जी और पंडित नेहरू ने कई बार सभाओं को संबोधित किया है । मोहम्मद अली जिन्ना की 1945 में हुई एक सभा का एक  किस्सा पढें। वे मुस्लिम लीग की एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उनके भाषण के दौरान उनके मंच के करीब बैठे कुछ लोगों ने नारे लगाने शुरू कर दिए- ' मौलाना जिन्ना जिंदाबाद...मौलाना जिन्ना जिंदाबाद'...। वे इस नारे को सुनकर भड़क गए। नारे लगाने वालों को लताड़ते हुए वे कहने लगे,'मैं आपका सियासी नेता हूं न कि मजहबी। इसलिए नारे लगाते हुए बेवकूफी न करें।‘

रामलीला मैदान में स्थायी मंच 1961 में ब्रिटेन की महारानी एलिजबेथ के भारत के दौरे पर आने के कारण उनके सम्मान में आयोजित एक सार्वजनिक सभा के लिये बनाया गया था। पहले यहां अस्थायी मंच ही बनता था। इसी रामलीला मैदान में, 1963 में आयोजित गणतंत्र दिवस के एक कार्यक्रम में लता मंगेशकर ने ऐ मेरे वतन के लोगों गीत तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में गाया था। प्रदीप का लिखा यह अमर गीत आज भी भावुक कर देता है।

पर,इस मैदान में सबसे बड़ी जनसभा लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 1975 में हुयी थी। एक  विशाल जनसमूह 25 जून,1975 को एकत्र हुआ था।  इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा गांधी के मुक़दमा हार जाने के कारण, उनके खिलाफ जन माहौल बनने लगा था। उन्हें चुनावी गड़बड़ियों के लिए दोषी ठहराया गया था और उनका चुनाव रद्द कर दिया गया था । जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में उन्हें सत्ता से बेदखल करने और सम्पूर्ण क्रांति के आह्वान पर एक व्यापक  आंदोलन चलाया जा रहा था। उसी क्रम में रामलीला मैदान में यह रैली आयोजित की गयी थी। रैली को जयप्रकाश नारायण के अलावा आचार्य कृपलानी, विजय लक्ष्मी पंडित, अटल बिहारी वाजपेयी,मोरारजी देसाई आदि ने भी संबोधित किया था । उस दिन जेपी ने भाषण का श्रीगणेश रामधारी सिंह दिनकर की उन अमर पंकि्तयों के साथ किया-- ' सिंहासन खाली करो कि जनता आती है...'। और उसी रात अचानक आपात काल की घोषणा सरकार ने कर दी ।

© विजय शंकर सिंह

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