Thursday 16 August 2018

अटल बिहारी बाजपेेेयी नहीं रहे / विजय शंकर सिंह

अटल नहीं रहे। अटल मृत्यु ने उन्हें भी अपने दामन में समेट लिया। 93 साल की उम्र में उन्हें जाना पड़ा। जिस प्रकार का जीवन वह जी रहे थे, उसे देखते हुये मुझे उनके चले जाने पर कोई दुःख नहीं है। उन्हें कष्ट से मुक्ति मिली। फिर भी मौत किसी भी वय में आये, किसी भी प्रकार से आये,  यह दुःखद होती ही है।

अटल आज़ाद भारत के उन बिरले राजनेताओं में रहे हैं जो दल और विचारधारा की सीमा से बंधे नहीं। उनका सब सम्मान करते थे। जब भी वे बोलते थे तो सभी उनको सुनते थे। 1957 में जब वे पहली बार लोकसभा में पहुंचे तो उनके भाषण से प्रभावित हो कर नेहरू ने कहा था कि यह लड़का एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा। नेहरू की भविष्यवाणी सच साबित हुई। वे 1996 में देश के प्रधानमंत्री बने। पहले 13 दिन फिर 13 माह और फिर एक पूरे कार्यकाल तक देश का नेतृत्व करने का अवसर उन्हें मिला था ।

वे आरएसएस के स्वयंसेवक थे और संघ के राजनीतिक स्वरूप भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे हैं। जब जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ था तो वे देश के विदेश मंत्री बने। विदेश मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल सराहनीय रहा। संयुक्त राष्ट्र संघ में पहलीं बात हिंदी में व्याख्यान दे कर अंतराष्ट्रीय पटल पर हिंदी का मान बढ़ाया। बाद में जब दोहरी सदस्यता के मुद्दे पर पर जनता पार्टी टूटी तो उन्होंने भारतीय जनता पार्टी बनायी और वे उसके संस्थापक अध्यक्ष बने। फिर अनेक उतार चढ़ाव के बाद जब  1996 में भाजपा सरकार जो कुछ अन्य दलों के साथ एनडीए सरकार कही जाती थी, तो वे देश के प्रधानमंत्री बने।

अटल जी एक कवि भी थे। उन्होंने कुछ बेहद सुंदर कविताएं लिखी हैं। वे एक प्रखर वक्ता थे। 13 दिन के कार्यकाल के बाद विश्वास मत के समय संसद में दिया गया उनका भाषण एक यादगार भाषण है। यह भाषण यूट्यूब पर उपलब्ध है और अटल की अद्भुत वक्तृता शक्ति और शैली का दस्तावेज़ है। 10 बार सांसद रहे अटल जी का कानपुर से बहुत निकट लगाव  रहा है। वे डीएवी कानपुर के छात्र थे और उनके समय के लोग उनके बहुत से रोचक संस्मरण भी सुनाते हैं। कहते हैं उनके पिता भी उन्ही के साथ कानून की पढ़ाई करते थे। झाड़े रहो कलक्टरगंज के नाम से  कई उत्कृष्ट लतीफे उनके समकालीनों के मुंह से मैंने यहां सुने हैं। कलक्टरगंज कानपुर का एक क्षेत्र है । यह उनके परिहासपूर्ण पर शालीन व्यक्तित्व की पहचान है।

मूल रूप से आगरा के बटेश्वर नामक स्थान जो शिव के 108 मंदिरों के लिये प्रसिद्ध है, के वे रहने वाले थे पर बचपन मे ही वे ग्वालियर चले गए थे। ग्वालियर ही उनकी कर्मभूमि बनी। ग्वालियर से वे सांसद भी रहे हैं। ग्वालियर के अतिरिक्त वे बलरामपुर, नयी दिल्ली, और लखनऊ से भी लोकसभा के सदस्य रहे।

बात जब उनकी कविता की चली तो उनकी एक कविता बरबस याद आयी, ' मौत से ठन गयी ' । मृत्यु से तो वे लड़ते ही रहे। मौत से वे पिछ्ले कई साल से संघर्षरत है। कभी अवश बन, कभी परवश बन तो कभी मौन बन कर। पर मृत्यु से आप कितनी ही बार कह लें कि हार नहीं मानूंगा, पर हारना तो पड़ता ही है। अटल जी भी अपवाद नहीं रहे। जीवन भर अटल अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के प्रति ईर्ष्या और द्वेष मुक्त रहे । जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव की मृत्यु इनके सामने हुयी। नेहरू की मृत्यु पर अटल जी की सदन में श्रद्धांजलि एक स्तरीय साहित्यिक दस्तावेज है। बांग्लादेश युद्ध के समय इंदिरा जी की सराहना करने वाले अटल ने आपातकाल की जम कर भर्त्सना की। राजीव गांधी की हत्या पर उन्होंने राजीव के बारे में अपना एक मार्मिक संस्मरण सबको बता कर यह जता दिया कि वैचारिक मतभेद और निजी मतभेदों में बहुत अंतर होता है। तमाम असहमति के बीच भी एक कुशल राजनेता की तरह वे सहमति के विंदु खोज ही लेते थे।
उनकी यह कविता पढें।
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कदम मिलाकर चलना होगा.

बाधाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।

कुछ कांटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
क़दम मिलाकर चलना होगा।
( अटल बिहारी वाजपेयी )
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न जायते म्रियते वा कदाचि, नान्यम भूत्वा भविता वा न भूयः ।
अजो नित्य: शाश्वतोयम पुराणों, न हन्यते हन्यमाने शरीरे ।।
( भागवत गीता 2:20)
अटल जी के दुःखद निधन पर उनको विनम्र #श्रद्धांजलि और शत शत नमन !!
#vss

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