स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर आज मेजर आदित्य और औरंगज़ेब को सरकार ने मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया है । सरकार का यह निर्णय सराहनीय है। यह दोनों ही सैनिक कश्मीर में शहीद हुए हैं।
मेजर आदित्य कुमार 10 गढ़वाल राइफल के थे और 27 जनवरी को शोपियां में वे जब गश्त पर थे तो उन्हें पत्थरबाजों ने घेर लिया और उन पर पत्थर बरसाए,, लेकिन पत्थर की चोटों से वे बुरी तरह घायल हो गए और बाद में वीरगति को प्राप्त हुई। इस पर यूनिट ने उनकी और अपनी आत्मरक्षा में फायरिंग की और 3 पत्थरबाज मौके पर ही मारे गए। इसकी प्रतिक्रिया में जब शोपियां में बवाल बढ़ा तो, जम्मू कश्मीर पर दबाव पड़ा और सरकार ने मेजर आदित्य और उनकी यूनिट के विरुद्ध धारा 302 ( हत्या ) और 307 ( हत्या का प्रयास ) रणबीर पेनल कोड के अंतर्गत कायम कर उन्हें भी उनकी यूनिट के साथ साथ अभियुक्त बना दिया।
मेजर आदित्य के पिता ले.कर्नल करमवीर सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में एफआईआर रद्द करने के लिये याचिका दायर की। कर्नल करमवीर सिंह ने अपनी याचिका में यह तर्क दिया कि यह फायरिंग कानून के पालन में और आत्मरक्षा में की गयी है। उनके अनुसार मेजर अदित्य कुमार और उनकी यूनिट गश्त पर थी कि पत्थरबाजों ने उन्हें घेर लिया और उन पर पथराव शुरू कर दिया। उन्होंने भीड़ को जो उपद्रव पर आमादा थी को वहां से तितर बितर हो जाने की चेतावनी दी पर भीड़ हटने के बजाय और बढ़ती चली गयी। ऐसी दशा में सैनिक टुकड़ी के पास भीड़ के बलपूर्वक तितर बितर कर देने के अलावा और कोई चारा नहीं था। तब आत्मरक्षार्थ मेजर आदित्य की यूनिट ने फायरिंग की और तीन उपद्रवी मारे गए और तब भीड़ तितर बितर हुयी। अगर यह फायरिंग नहीं की गयी होती तो सैनिक टुकड़ी और मेजर आदित्य के हथियार भी छीने जा सकते थे और उनकी जान भी जा सकती थी।
ले.के.करमवीर सिंह का अपनी याचिका में कहना था, कि अगर सुरक्षाबल ऐसी उपद्रवग्रस्त भीड़ के समक्ष आत्मरक्षा में चुप रहेंगे और उनके द्वारा निर्णायक कार्यवाही करने पर भी अगर राज्य सरकार हत्या और हत्या के प्रयास के मुकदमें दर्ज करेगी तो न केवल सुरक्षा बलों का मनोबल गिरेगा बल्कि वे अपने वैधानिक दायित्व से अन्यमनस्क हो जाएंगे। उनके पिता अगर व्यक्तिगत रूप से सुप्रीम कोर्ट नहीं गये होते तो उन्हें सरकार से संभवतः न्याय नहीं मिलता।
12 फरवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुये जम्मूकश्मीर सरकार को इस एफआईआर पर कोई भी कार्यवाही करने से मना कर दिया। बाद में जम्मूकश्मीर सरकार ने बताया कि जो एफआईआर शोपियां कस्बे के बारे में दर्ज की गयीं थी उसमें मेजर आदित्य नामजद नहीं है । फिर बाद में जांच के बाद मेजर आदित्य कुमार की यूनिट द्वारा की गयी फायरिंग को उचित पाया गया। सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर होने और उसकी दखल के बाद, तब सरकार ने उनकी अदम्य वीरता की सराहना करते हुए उन्हें शौर्य चक्र से सम्मानित किया।
पत्थरबाजों पर राज्य सरकार द्वारा मुकदमों की वापसी के निर्णय से भले ही किसी दल का राजनीतिक हित सधे, पर यह मुकदमा वापसी गलत और अनुचित निर्णय था। इससे न केवल अलगाववादियों का मनोबल बढ़ा है बल्कि सुरक्षा बलों में भी इसकी अच्छी प्रतिक्रिया नहीं हो रही है। यह अलग बात है कि अनुशासन के कारण वह सुरक्षा बलों की प्रतिक्रिया अभिव्यक्त न हो पा रही हो। केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारों का यह निर्णय एक प्रशासनिक चूक है। इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
इसी प्रकार एक और सैनिक औरंगजेब जो राइफलमैन थे को भी शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया। औरंगज़ेब अपने गांव पुलवामा ईद की छुट्टियों में जा रहे थे। उनको रास्ते से ही आतंकवादियों ने अगवा कर लिया और उनकी हत्या कर दी। औरंगज़ेब कश्मीर के ही थे, और जेके राइफल्स में सैनिक थे। अलगाववादियों का यह मानना है कि वे जम्मूकश्मीर के हर मुस्लिम युवा को गुमराह कर के भारत विरोधी बनाएं और दुनिया भर में यह दुष्प्रचार फैला दें कि पूरा का पूरा कश्मीर और कश्मीरी मुसलमान भारतीय संघ में नहीं रहना चाहते हैं। औरंगज़ेब से उनकी नाराज़गी की यही वजह थी कि उन्हें एक कश्मीरी मुस्लिम भारतीय सेना में क्यों है। औरंगज़ेब के अगवा कर के उनकी हत्या करने का यह भी एक कारण था।
© विजय शंकर सिंह
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