Friday 31 August 2018

एक कविता - नींद से बोझिल तेरी पलकें / विजय शंकर सिंह

नींद से बोझिल तेरी पलकें ,
रात के इस रूमानी सफ़र को,
कभी कभी ,
कितना मादक बना देती हैं !

चलो अब सो जाओ !
कहीं ऐसा न हो , कि ,
रात के इस सन्नाटे में ,
झुटपुटे से छन कर आती हुयी ,
यह मदिर बयार ,
और ....

कल्पना में उभरती तेरी ,
अमिय , हलाहल , मद भरी ,
नीमकश ख्वाबीदा आँखें ,
कहीं मेरी ,
नींदें न उड़ा  दें !!

© विजय शंकर सिंह

1 comment:

  1. So romantic.. should be read on a moonlit night together.

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