नींद से बोझिल तेरी पलकें ,
रात के इस रूमानी सफ़र को,
कभी कभी ,
कितना मादक बना देती हैं !
चलो अब सो जाओ !
कहीं ऐसा न हो , कि ,
रात के इस सन्नाटे में ,
झुटपुटे से छन कर आती हुयी ,
यह मदिर बयार ,
और ....
कल्पना में उभरती तेरी ,
अमिय , हलाहल , मद भरी ,
नीमकश ख्वाबीदा आँखें ,
कहीं मेरी ,
नींदें न उड़ा दें !!
© विजय शंकर सिंह
So romantic.. should be read on a moonlit night together.
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