Sunday 4 March 2018

NLFT नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा और IPFT इंडिजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

एनएलएफटी, त्रिपुरा का एक अलगाववादी संगठन है जो त्रिपुरा को भारत से आज़ाद करा कर अलग देश के रूप में देखना चाहता है। पूर्व उत्तर के राज्यों में चल रहे अनेक उग्रवादी संगठनों की तरह यह भी एक उग्रवादी संगठन है जिसका आधार ईसाई मतावलम्बी हैं। यह त्रिपुरा को देश से अलग कर के किंगडम ऑफ गॉड, या जीसस क्राइस्ट का देश बनाना चाहता है। यही एनएलएफटी की ही एक शाखा आईपीएफटी 2018 के चुनाव में अखंड भारत के फर्माबर्दार भाजपा के साथ है।  यह बात कुछ अजीब सी लगेगी, पर यह सच है । यह संगठन आज भी भारत के उग्रवादी संगठनों की सूची में शामिल है ।

अब जरा इस अलगाववादी संगठन का इतिहास देखें। न्यूज़ीलैंड के मिशनरियों द्वारा 1940 में बैप्टिस्ट चर्च ऑफ त्रिपुरा का गठन किया गया था। 1980 तक त्रिपुरा में ईसाई आबादी केवल कुछ हज़ार तक थी। वहां अधिकतर आबादी आदिवासी लोगों की थी जिनकी अपनी पूजा पद्धति और स्थानीय धर्म थे। उन्ही में से बैपटिस्ट चर्च ने व्यापक धर्म परिवर्तन करा कर इसाई बनाया। इस धर्म परिवर्तन का व्यापक विरोध भी हुआ और अंतर्धार्मिक दंगे 1989 में त्रिपुरा  हुये, तब बैपटिस्ट चर्च ने यह संगठन खड़ा किया। इस संगठन को बैप्टिस्ट चर्च का पूरा समर्थन था और यह संगठन अपने जन्म से ही सशस्त्र विद्रोह और भारत के त्रिपुरा पर अधिकार को चुनौती देता रहा है। इसने अपने संविधान में ही, अपनी नीति स्पष्ट कर दी है कि वह, उसी के शब्दों में,  "the subjugation policy of imperialist Hindustani (India)"; यानी साम्राज्यवादी भारत की हड़प नीति के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष, घोषित किया। त्रिपुरा भारत का एक प्रदेश है और त्रिपुरा को ले कर जम्मु और कश्मीर जैसा कोई पेंच भी नहीं है, फिर भी यह संगठन त्रिपुरा की भारत गणराज्य से मुक्ति के लिये सशस्त्र संघर्ष की वकालत करता रहा है और आज भी करता है।  

इस संगठन का आधार भी धर्म ही है। यह खुल कर ईसाई धर्म और बैप्टिस्ट चर्च के साथ है। हिंसा इसकी कार्यप्रणाली का मुख्य आधार है। भारत सरकार ने जब अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो, इस संगठन को प्रीवेंशन ऑफ टेररारिज़्म एक्ट 2002 के अधीन एक आतंकी और अलगाववादी संगठन घोषित किया था। 2002 से 2018 तक की भाजपा की यह नीति यात्रा का बदलाव भी थोड़ा अचंभित करता है। यह निर्णय भी तब हुआ था जब अप्रैल, 2000 में राज्य सरकार ने केंद्र की अटल सरकार को यह सुबूत उपलब्ध कराए थे कि, इस संगठन को बैप्टिस्ट चर्च द्वारा आतंकी गतिविधियों को चलाने के लिये हथियार उपलब्ध कराया जाता है। राज्य सरकार ने अप्रैल 2000 में ही त्रिपुरा के नोआपाड़ा बैप्टिस्ट चर्च के सचिव, नागमनलाल हलाम को अवैध रूप से हथियार खरीदते पकड़ा था। उसने खुफिया एजेंसियों द्वारा पूछताछ पर यह स्वीकार किया था कि वह इस संगठन को हथियार सप्लाई करता है। उसी धर पकड़ के बाद इस संगठन को आतंकी संगठन घोषित किया गया था।

त्रिपुरा में सन 2000 में एनएलएफटी ने धार्मिक आधार पर दंगे भी कराये। उसी साल दुर्गा पूजा के अवसर पर, हुए एनएलएफटी के एक हमले में 20 श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गयी। बलपूर्वक लोगों के धर्म परिवर्तन की शिकायतें भी मिली। त्रिपुरा में एक जनजाति है जमातिया । इस जनजाति के नेता रामपद जमातिया ने भारत सरकार को यह लिखित शिकायत भेजी थी कि, सन 2000 साल में इस संगठन ने जमातिया जनजाति के गांव के गांव में धर्म परिवर्तन कराने की कोशिश की। गाँवों में इसका विरोध भी हुआ। फिर भी 1999 से 2001 तक बैपटिस्ट चर्च ने इस संगठन की सहायता से जनजातियों का धर्म परिवर्तन कराने में कुछ सफलता प्राप्त की। धार्मिक उन्माद का यह आलम था कि, 20 मई 2000 को गौरांगतिल्ला गांव में एनएलएफटी ने 25 बंगाली हिंदुओं की हत्या कर दी। उसी हत्याकांड में हिंदुओं के धार्मिक नेता शांति काली की भी हत्या हुई थी। 2001 में एक और बंगाली हिदुओं के लोकप्रिय नेता लभ कुमार जमातिया का अपहरण इस संगठन ने किया और उनका शव जंगल मे पड़ा पाया गया। धर्मिक आधार पर जब इन हत्याओं का विरोध किया गया तो, मार्क्सवादी नेता, किशोर देबबर्मा की हत्या मई 2005 में इस संगठन द्वारा कर दी गई। अकेले 2001 में ही इस आतंकी संगठन द्वारा 826 आतंकी घटनाएं की गई जो पुलिस के अभिलेखों में दर्ज हैं। इन घटनाओं में 405 लोग मारे गए और 481 लोगों का अपहरण किया गया। एनएलएफटी के साथ इन आतंकी गतिविधियों में कुछ छोटे छोटे संगठन जैसे, क्रिश्चियन ऑल त्रिपुरा टाइगर्स फोर्स ATTP आदि भी थे। इन संगठनों का उद्देश्य ही त्रिपुरा को भारत से अलग कर एक नया देश बनाना था। ईसाई मिशनरियों विशेषकर बैपटिस्ट चर्च की इसमें मुख्य भूमिका थी। बीबीसी ने इस संगठन पर अध्ययन किया तो उसने पाया कि, धन की व्यवस्था के लिये यह संगठन जनजातीय युवक और युवतियों को अश्लील और पोर्नोग्राफिक फिल्मे बनाने के लिये बाध्य कर के उन फिल्मों से धन अर्जित करता है। एक संदेह यह भी उठता है कि पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई जो बांग्लादेश के उग्रवादी और पाकिस्तान समर्थक तत्वों को भारत विरोधी गतिविधियों के लिये बढ़ावा देती है, भी इस संगठन को आर्थिक सहायता देती है। इंस्टीट्यूट ऑफ कनफ्लिक्ट मैनेजमेंट ने इस संगठन की गतिविधियों पर कई ज्ञानवर्धक और रोचक लेख भी लिखे हैं। आप उनकी साइट पर जा कर पढ़ सकतें हैं।

आतंकवादी संगठनों के स्वरूप का जब भी अध्ययन करेंगे तो एक खास समता सभी संगठनों में पाएंगे कि हर संगठन व्यक्तिपरक होता है और फिर वह टूट जाता है। चूंकि इन आतंकवादी संगठनों की कोई स्पष्ट राजनैतिक विचारधारा नहीं होती है और उनके क्रियाकलाप आपराधिक प्रकृतिं के होते हैं, इस लिए सभी बड़े नेताओं में स्वार्थ के लिये संघर्ष होता रहता है और अंततः वह संगठन कई हिस्सों में बिखर जाता है। एनएलएफटी भी उसका अपवाद नहीं है। जब एनएलएफटी से विश्वमोहन देबबर्मा और नयनबासी जमातिया  को निष्कासित किया गया तो, 2001 में यह संगठन दो भागों में बंट गया। इसका मुख्य कारण था कि यह संगठन त्रिपुरा को एक स्वतंत्र राज्य और जोशुआ देबबर्मा को उस त्रिपुरा राज्य का राजा घोषित करना चाहता था। बिस्वमोहन स्वतंत्र त्रिपुरा राज्य के पक्ष में तो था, पर वह जोशुआ को राजा स्वीकार नहीं करना चाहता था। उसने जोशुआ का विरोध किया जिस कारण विस्वमोहन को उस संगठन से निष्कासित कर दिया गया। इसके अतिरिक्त विस्वमोहन ने संगठन पर धन और चंदे के दुरुपयोग तथा, नेताओं के ऐश ओ आराम से बिताए जा रहे जीवन शैली के खिलाफ भी आवाज़ उठायी। दूसरा ग्रुप नयनबासी ग्रुप था। यह ग्रुप 2004 तक चला फिर यह भारत सरकार से समझौता कर के आतंकवाद के राह से हट गया।

अब वही आतंकी संगठन अपने बदले रूप और नाम से सरकार में है। भाजपा ने निश्चित रूप से एनएलएफटी / आईपीएफटी के साथ जब समझौता किया होगा तो इन संगठनों की स्वतंत्र त्रिपुरा की मांग तो नहीं ही मानी होगी पर समझौते का कुछ तो आधार रहा होगा। लेकिन स्वतंत्र त्रिपुरा की मांग ही बैपटिस्ट चर्च और एनएलएफटी के जन्म का आधार है तो यह अभी कहना मुश्किल है कि इन आतंकी संगठनों ने स्वतंत्र त्रिपुरा राज्य की मांग सचमुच छोड़ दी होगी। सुबीर दत्त जो इंटेलिजेंस ब्यूरो के वरिष्ठ अधिकारी रह चुके हैं ने आईपीएफटी के सरकार में शामिल होने पर यह आशंका व्यक्त की है कि त्रिपुरा में आतंकी और अलगाववादी गतिविधियां फिर अपना सिर उठा सकती है। 2005 के बाद से त्रिपुरा में कोई बड़ी आतंकी घटना नहीं हुई है।

© विजय शंकर सिंह

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