सरकार ने मुजफ्फरनगर के दंगे के अभियुक्तों के खिलाफ मुकदमा वापस लेने का निर्णय किया है। यह निर्णय दीर्घ अवधि में कानून व्यवस्था और अपराध स्थिति पर बहुत बुरा असर डालेगा । दंगाइयों और गुंडो के खिलाफ सरकार द्वारा मुक़दमे वापस लेने से पुलिस का मनोबल गिरेगा और ऐसे मामलों में पुलिस अधिकारी खुल कर दंगाइयों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने से बचेंगे। सरकार को उन सभी मुकदमों को वापस लेने का अधिकार है जिसमें वह एक पक्ष है। पर इस अधिकार का प्रयोग अन्यन्त अपवाद की स्थिति में ही किया जाना चाहिये, न कि राजनीतिक लाभ हानि को दृष्टिगत रखते हुये। ऐसा नहीं है कि वर्तमान भाजपा सरकार ने ही मुक़दमें वापस लिये हैं या लेने जा रही है, बल्कि आप को याद होगा कि सपा सरकार के समय भी तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने भी फूलन देवी के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की कोशिश की थी, पर अदालत के हस्तक्षेप से वह कोशिश सफल नहीं हुयी। राजनीतिक आधार पर केवल राजनीति से प्रेरित लोकहित में किये गए सामान्य धरना प्रदर्शन के आरोप में दर्ज मुक़दमों के अपवाद स्वरूप वापस लेने में कोई हर्ज नहीं है पर दंगाइयों, और गुंडो के खिलाफ ऐसे मुक़दमे जो हत्या, लूट, बलवा आदि गम्भीर आपराधिक धाराओं के हैं, अगर वापस लिये जाते हैं तो असामाजिक तत्वों के मन मे एक धारणा मज़बूत होगी कि वे कुछ भी कर गुजरें, कानून उनका कुछ बिगाड़ नहीं सकता है। वे राजनीति के छत्र तले सुरक्षित हैं। ऐसे मामलों का असर पुलिस अफसरों और स्थानीय पुलिस पर बहुत पड़ता है। उन्हीं में से कुछ पुलिस जन राजनीतिक बयार देखते हुये इन्ही के साथ जुड़ने की कोशिश करने लगते हैं। फिर पुलिस, नेता और अपराधियों का जो अपवित्र गठबंधन बनता है वह एक गिरोह के रूप में कार्य करने लगता है। असामाजिक तत्व, दंगाई, गुंडे आदि किसी एक पार्टी के नहीं होते हैं बल्कि ये उसी दल में पनाह ले लेते हैं जिसका असर जनता में बढ़ रहा हो और जो शक्ति केंद्र के पास हो। सरकार को ऐसे तत्त्वों के खिलाफ विधिवत कानूनी कार्यवाही करनी चाहिये न कि उन्हें मुक़दमे वापसी का उपहार दे कर उनका मनोबल बढ़ा कर उन्हें बेअन्दाज़ करना चाहिये।
© विजय शंकर सिंह
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