Tuesday, 27 March 2018

Ghalib - Aatish e dojakh mein ye garami kahaan / आतिश ए दोज़ख में ये गर्मी कहाँ - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब - 36
आतिश ए दोज़ख में ये गर्मी कहाँ,
सोज़ ए गमहाये निहानी और है !!

Aatish e dojakh mein ye garmii kahaan,
Soz e gamahaaye nihaanii aur hai !!
- Ghalib.

नरक की आग में भी उतनी गर्मी नहीं है जितना संताप दिल के अंदर है।

नरक अपनी आग के लिये कुख्यात है। दोजख या नरक की आग में जलने का भय हर वह धर्म बताता है जो नरक और स्वर्ग की अवधारणा पर विश्वास। ईश्वर का डर यानी खौफ ए खुदा की बात बार बार इस्लाम मे की गयी। यह भय इस लिये दिखाया गया है लोग बदी के राह को छोड़ कर नेकी की राह पर चलें। पर सच मे दोजख या जन्नत है भी कहीं, यह तो ईश्वर ही जाने।

ग़ालिब दोजख की उस आग से उतने नहीं परेशान हैं जितने कि वे अपने मन मे फैले संताप से। वे कहते हैं दोजख की आग जो तकलीफ देगी, वह देगी, पर मेरे दिल मे इच्छाओँ, कामनाओं और लालसा की आग जो अनवरत जल रही है वह कौन सी नर्क की आग की तुलना में कम है। नर्क क्या भुगतवायेगा वह तो पता नहीं पर ज़िन्दगी का जो नर्क हम रोज़ भुगत रहे हैं वह क्या कम अज़ाब है।

© विजय शंकर सिंह

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