Friday 30 March 2018

Ghalib.- Aaye hai be’kasee e ishq pai ronaa Ghalib, / आये है बेकसी ए इश्क़ पै रोना ग़ालिब - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब- 39 .
आये है बेकसी ए इश्क़ पै रोना ग़ालिब,
किस के घर जायेगा, सैलाब ए वफ़ा मेरे बाद !!

Aaye hai be’kasee e ishq pai ronaa Ghalib,
Kis ke ghar jaayegaa , yah sailaab e wafaa mere baad !!
- Ghalib.

प्रेम की विवशता और असमर्थता को देख कर रोना आता है , प्रेम के कारण उत्पन्न विपत्तियों की यह बाढ़,मेरे बाद,अर्थात मेरी मृत्यु के बाद किसके घर जाएगी !!
ग़ालिब के इस शेर में प्रेम की विवशता को लक्षित किया गया है।  विवशता और असमर्थता जिन अवसादों भरी विपत्तियों को जन्म देते हैं, वे विपत्तियाँ तो मैं भोग रहा हूँ। पर मेरी मृत्यु के बाद जो विपत्तियों की बाढ़ है, वह किसके घर की रूख करेगी ? विपत्तियों का भी कभी समाधान हुआ है। वे भी ठौर बदलती रहती हैं।  प्रेम में सफलता हो या असफलता, विवशता तो रहती ही है यह विवशता जिस अवसाद की ओर ले जाती है, गालिब उसे ही सैलाब ए वफ़ा कह रहे हैं।

ग़ालिब का संकेत उसी विपत्ति की बाढ़ की और है। प्रेम, अवसाद ही नहीं देता केवल , बिखेरता हीन हीं है, बल्कि वह आनंद लोक का सृजन भी करता है और निखारता भी है। लेकिन संसार की सारी प्रसिद्ध प्रेम कथाओं का अंत दुखांत ही हुआ है। वियोग में ही उसकी इति हुयी है। यह कालजयी प्रेम कथाये, चाहे बुल्लेशाह की हीर रांझा की हो, या फारसी की शीरीं फरहाद की, या अरबी प्रेम कथा लैला मजनू क़ैस  की या फिर शेक्सपीयर की अमर प्रेम कथा रोमियो जूलियट हो, यह सभी दुःखद अंत से समाप्त हुई है। ऐसा क्यों है यह मैं आज तक नहीं समझ सका।  इन सारी प्रेम कथाओं में वियोग, हिज्र, तड़प, मिलन की उद्दाम इच्छा और पागलपन की हद तक पहुंचे अवसाद के तत्व मिलते है। यह विपत्तियां ही तो हैं। ग़ालिब इन्ही विपत्तियों की बाढ़ की बात कर रहे हैं । लेकिन वे टूटते नहीं दिखते। विपत्तियों से जूझते हुए इसी चिंता में निमग्न हैं कि जब वे नहीं रहेंगे तो ये मुसीबतें किधर का रुख करेंगी। मुसीबतें तो खत्म होनी नहीं है।  ग़ालिब इसी और इंगित कर के कहते हैं कि प्रेम में चाहे जो विपत्तियां आयें उसे तो वह झेल ही लेंगे, पर उनके बाद शायद ही कोई उन सा कोई ऐसा न मिले जो इस सैलाब ए वफ़ा को झेल सके ।

©  विजय शंकर सिंह


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