Tuesday 27 March 2018

एक लघु कविता - मेरुदंड / विजय शंकर सिंह

स्टील का मेरुदंड है मेरा,
न टूटता है न झुकता है.
कितने दर्प और अहंकार से कहा था उस ने,
पर,
रोज़, वक़्त के बदलते आयाम के साथ,
देख रहा हूँ,
उसे टूटते हुए, और झुकते हुए भी !!

© विजय शंकर सिंह

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