साइमन कमीशन के प्रबल विरोध के बाद अंग्रेज़ एक ऐसा कानून बनाना चाहते थे जिस से वे, सरकार विरोधी कृत्यों पर नियंत्रण रख सकें। वे दमन के कृत्य को वैधानिक जामा पहनाना चाहते थे । इसलिये सरकार दिल्ली की असेंबली में 'पब्लिक सेफ्टी बिल' और 'ट्रेड डिस्प्यूट्स बिल' लाने की तैयारी में थी। ये बहुत ही दमनकारी क़ानून थे और सरकार ने इन्हें पास करने का मन बना लिया था। इस बिल को क़ानून बनाने के पीछे उद्देश्य था कि जनता में क्रांति का जो बीज पनप रहा है, उसे अंकुरित होने से पहले ही समाप्त कर दिया जाए। इधर क्रांतिकारी संगठन भी चुप नहीं थे। कांग्रेस के अंदर भी इस बिल के विरोध में आक्रोश पनप रहा था। वे भी संसदीय तरीके से इस बिल के विरोध पर विचार विमर्श कर रहे थे। भगत सिंह और साथियों ने गंभीर विचार विमर्श के पश्चात् 8 अप्रैल, 1929 का दिन असेंबली में बम फेंकने के तय किया और इस कार्य के लिए भगत सिंह एवं बटुकेश्र्वर दत्त को यह दायित्व सौंपा गया। इस घटना का उद्देश्य किसी को शारिरिक हानि पहुँचाना नहीं था। इसीलिए बम भी असेम्बली में ख़ाली स्थान पर ही फेंका गया था। और बम भी अधिक तीव्रता का नहीं था। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त बम फेंकने के बाद वहाँ से भागे भी नहीं, अपितु स्वेच्छा से उन्होंने अपनी गिरफ्तारी दे दी। इस समय इन्होंने वहाँ पर्चे भी बाटें, जिसका प्रथम वाक्य था कि- बहरों को सुनाने के लिये विस्फोट के बहुत ऊँचे शब्द की आवश्यकता होती है।
यद्यपि असेंबली के बहुत से सदस्य इस दमनकारी क़ानून के विरुद्ध थे, लेकिन वायसराय इसे अपने विशेषाधिकार से पास करना चाहता था। इसलिए यही तय हुआ कि जब वायसराय 'पब्लिक सेफ्टी बिल' को क़ानून बनाने के लिए प्रस्तुत करे, ठीक उसी समय धमाका किया जाए और ऐसा ही किया गया। जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगत सिंह ने बम फेंका। इसके पश्चात् क्रांतिकारियों को गिरफ्तार करने का दौर चला। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास मिला। भगत सिंह और उनके साथियों पर 'लाहौर षडयंत्र' का मुक़दमा भी जेल में रहते ही चला। भागे हुए क्रांतिकारियों में प्रमुख राजगुरु पूना से गिरफ़्तार करके लाए गए। अंत में अदालत ने वही फैसला दिया, जिसकी पहले से ही उम्मीद थी। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को मृत्युदंड की सज़ा मिली।
8 अप्रैल, सन् 1929 को असेम्बली में बम फेंकने के बाद भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा अंग्रेजी में पर्चे भी फेंके गए और सदस्यों को भी बांटे गए। उस पर्चे का हिन्दी अनुवाद अधोलिखित है। यह पर्चा भगत सिंह की राजनैतिक विचारधारा और उनके महती उद्देश्य को स्पष्ट करता है।
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‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातान्त्रिक सेना’
सूचना
“बहरों को सुनाने के लिए बहुत ऊँची आवाज की आवश्यकता होती है,” प्रसिद्ध फ्रांसीसी अराजकतावादी शहीद वैलियाँ के यह अमर शब्द हमारे काम के औचित्य के साक्षी हैं।
पिछले दस वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने शासन-सुधार के नाम पर इस देश का जो अपमान किया है उसकी कहानी दोहराने की आवश्यकता नहीं और न ही हिन्दुस्तानी पार्लियामेण्ट पुकारी जानेवाली इस सभा ने भारतीय राष्ट्र के सिर पर पत्थर फेंककर उसका जो अपमान किया है, उसके उदाहरणों को याद दिलाने की आवश्यकता है। यह सब सर्वविदित और स्पष्ट है। आज फिर जब लोग ‘साइमन कमीशन’ से कुछ सुधारों के टुकड़ों की आशा में आँखें फैलाए हैं और इन टुकड़ों के लोभ में आपस में झगड़ रहे हैं,विदेशी सरकार ‘सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक’ (पब्लिक सेफ्टी बिल) और ‘औद्योगिक विवाद विधेयक’ (ट्रेड्स डिस्प्यूट्स बिल) के रूप में अपने दमन को और भी कड़ा कर लेने का यत्न कर रही है। इसके साथ ही आनेवाले अधिवेशन में ‘अखबारों द्धारा राजद्रोह रोकने का कानून’ (प्रेस सैडिशन एक्ट) जनता पर कसने की भी धमकी दी जा रही है। सार्वजनिक काम करनेवाले मजदूर नेताओं की अन्धाधुन्ध गिरफ्तारियाँ यह स्पष्ट कर देती हैं कि सरकार किस रवैये पर चल रही है।
राष्ट्रीय दमन और अपमान की इस उत्तेजनापूर्ण परिस्थिति में अपने उत्तरदायित्व की गम्भीरता को महसूस कर ‘हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र संघ’ ने अपनी सेना को यह कदम उठाने की आज्ञा दी है। इस कार्य का प्रयोजन है कि कानून का यह अपमानजनक प्रहसन समाप्त कर दिया जाए। विदेशी शोषक नौकरशाही जो चाहे करे परन्तु उसकी वैधनिकता की नकाब फाड़ देना आवश्यक है।
जनता के प्रतिनिधियों से हमारा आग्रह है कि वे इस पार्लियामेण्ट के पाखण्ड को छोड़ कर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों को लौट जाएं और जनता को विदेशी दमन और शोषण के विरूद्ध क्रांति के लिए तैयार करें। हम विदेशी सरकार को यह बतला देना चाहते हैं कि हम ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ और ‘औद्योगिक विवाद’ के दमनकारी कानूनों और लाला लाजपत राय की हत्या के विरोध में देश की जनता की ओर से यह कदम उठा रहे हैं।
हम मनुष्य के जीवन को पवित्र समझते हैं। हम ऐसे उज्जवल भविष्य में विश्वास रखते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शान्ति और स्वतन्त्रता का अवसर मिल सके। हम इन्सान का खून बहाने की अपनी विवशता पर दुखी हैं। परन्तु क्रांति द्वारा सबको समान स्वतन्त्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रांति में कुछ-न-कुछ रक्तपात अनिवार्य है।
इन्कलाब जिन्दाबाद !
इन्कलाब जिन्दाबाद !
ह. बलराज
कमाण्डर इन चीफ
O
मूल पर्चा जो अंग्रेजी में था, वह इस प्रकार है ।
Leaflets thrown in the Central Assembly, Hall New Delhi, at the time of the throwing voice bomb.
कमाण्डर इन चीफ
O
मूल पर्चा जो अंग्रेजी में था, वह इस प्रकार है ।
Leaflets thrown in the Central Assembly, Hall New Delhi, at the time of the throwing voice bomb.
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It takes the loud voice to make the deaf hear, " with these immortal words uttered on a similar occasion by Valient, a French anarchist martyr, do we strongly justify this action of ours.
Without repeating the humiliating history of past ten years of the working class, of the reforms, ( Montague Chelmsford reforms ) and without mentioning the insults hurled at the Indian Nation through this house the so called Indian Parliament, we want to point out that, while the people expecting some more crumbs of reforms of the Simon Commission , and are ever quarrelling of the distribution of the expected bones, the Government is thrusting upon us, new repressive measures like the Public Safety and Trade Dispute Bill , why reserving the Press Sedition Bill for the next session. The indiscriminate arrests of the labour leaders, working in the open field, clearly indicate whither the wind blows.
In these extremely provocative circumstances, The Hindustan Socialist Republican Association, in all seriousness, realizing their full responsibility has decided and ordered its army to do this particular action, so that a stop be put to this humiliating farce and to let the alien bureaucratic exploiters do what they wish, but they must be made, to come before the public eye in their naked form.
Let the representatives of the people return to there constituencies and prepare the masses for the coming revolution, and let the Government know that while protesting against The Public Safety and Trade Dispute Bills and the callous murder of Lala Lajpat Rai, on behalf of the helpless Indian masses we want to emphasize the lesson often repeated by history, that it is easy to kill individuals but you can not kill the ideas. Great empires crumbled while the ideas survived. Bourbons are Czars fell. While the revolution marched triumphantly.
We are sorry to admit that we who attach so great a sanctity to human life, who dream of a glorious future , when man will be enjoying perfect peace, and full liberty , have been forced to shed human blood . But the sacrifice of rendering the exploitation of man by man impossible , is inevitable.
" Long Live The Revolution "
" Long Live The Revolution "
Sd/-
Balraj
Commander in Chief
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Date Written: April, 1929
Author: Bhagat Singh
Title: The leaflet thrown in the Assembly Hall (Assembly Hall mein feinka gaya parcha)
First Published: Leaflet thrown in the Central Assembly, New Delhi on 8th April, 1929 by Bhagat Singh and B.K. Dutta..
Balraj
Commander in Chief
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Date Written: April, 1929
Author: Bhagat Singh
Title: The leaflet thrown in the Assembly Hall (Assembly Hall mein feinka gaya parcha)
First Published: Leaflet thrown in the Central Assembly, New Delhi on 8th April, 1929 by Bhagat Singh and B.K. Dutta..
* इस परचे पर एक अगस्टे वैलियाँ #Valient (27 दिसंबर 1861 - 5 फरवरी 18 9 4) का उल्लेख पर्चे के पहले ही वाक्य में हुआ है । वह एक फ्रांसीसी अराजकतावादी था, जिसने 9 दिसंबर 1893 को फ्रांसीसी चैंबर ऑफ डिपार्टमेंट्स, जो वहां की एक असेम्बली की ही तरह था, पर बम फेंका था। वैलियाँ ने सार्वजनिक दर्शक दीर्घा से सभा में अपने घर में ही बनाया बम फेंक दिया था । उसे घटनास्थल पर ही तुरंत गिरफ्तार भी कर लिया गया। वैलियाँ ने मुक़दमे के दौरान यह दावा किया था कि उनका उद्देश्य किसी को मारना नहीं था, बल्कि अपना विरोध प्रदर्शित कर जनता को जगाना था । पर, उसे मौत की सजा सुनाई गई। 3 फरवरी 1894 को गिलोटिन से उसकी गर्दन अलग कर दी गयी।
© विजय शंकर सिंह
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