Sunday, 4 March 2018

जॉर्ज ऑरवेल का एनिमल फार्म Animal Farm और चीन का उसे पढ़ने से परहेज / विजय शंकर सिंह

चीन की सरकार ने जॉर्ज ऑरवेल के कालजयी उपन्यास एनिमल फार्म Animal Farm को प्रतिबंधित कर दिया है। इस सेंसर को सख्ती से लागू भी कर दिया गया है।

एनिमल फार्म (Animal Farm) अंग्रेज उपन्‍यासकार जॉर्ज ऑरवेल की कालजयी रचना है। बीसवीं सदी के महान अंग्रेज उपन्‍यासकार जॉर्ज ऑरवेल ने अपनी इस प्रसिद्ध कृति में सुअरों को केन्‍द्रीय चरित्र बनाकर बोलशेविक क्रांति की विफलता पर करारा व्‍यंग्‍य किया था। अपने आकार के लिहाज से लघु उपन्‍यास की श्रेणी में आनेवाली यह रचना पाठकों के लिए आज भी उतनी ही असरदार है।

जॉर्ज ऑरवेल (1903-1950) के संबंध में खास बात यह है कि उनका जन्‍म भारत में ही बिहार के मोतिहारी नामक स्‍थान पर हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश राज की भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थे। ऑरवेल का मूल नाम 'एरिक आर्थर ब्‍लेयर' था। उनके जन्‍म के साल भर बाद ही उनकी मां उन्‍हें लेकर इंग्‍लैण्‍ड चलीं गयीं थीं, जहां से‍वानिवृत्ति के बाद उनके पिता भी चले गए। वहीं पर उनकी शिक्षा हुई।

एनीमल फॉर्म 1944 ई. में लिखा गया। प्रकाशन 1945 में इंग्लैंड में हुआ जिसे तब नॉवेला (लघु उपन्यास) कहा गया, यद्यपि इसकी मूल संरचना एक लंबी कहानी की है। कथाकार ने इसे प्रथम प्रकाशन के समय शीर्षक के साथ एक 'फेयरी टेल' (परी कथा) कहा, क्योंकि परी कथाओं के समान ही विभिन्न जानवर-जन्तु यहां उपस्थित हैं। प्रकाशन के साथ ही विश्व की सभी भाषाओं में इसके अनुवाद प्रकाशित हुए । प्रसिद्ध टाइम मैगजीन ने वर्ष 2005 में एक सर्वेक्षण में 1923-2005 ई. की कालावधि में प्रकाशित 100 सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यासों में इस उपन्यास की गिनती की और साथ ही 20 वीं शती की माडर्न लाइब्रेरी लिस्ट ऑफ बेस्ट 100 नॉवल्स में इसे 31 वां स्थान दिया।

एनीमल फॉर्म उपन्यास साम्यवादी क्रांति आन्दोलन के इतिहास में आई भ्रष्टता को नंगा करता हुआ दर्शाता है कि ऐसे आंदोलन के नेतृत्व में प्रवेश कर गयी स्वार्थपरता, लोभ-मोह तथा बहुत-सी अच्छी बातों से किनाराकशी किस प्रकार आदर्शो के स्वप्न-राज्य (यूटोपिया) को खंडित कर सारे सपनों को बिखेर देती है। मुक्ति आंदोलन जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया गया था, सर्वहारा वर्ग को सत्ता हस्तांतरित करने के लिए, उस उद्देश्य से भटक कर वह बहुत त्रासदायी बन जाता है। एनिमल फॉर्म का गणतंत्र इन्हीं सरोकारों पर अपनी व्यवस्था को केंद्रित करते हैं। पशुओं के बाडे का पशुवाद (एनीमलिज्म) वस्तुत: सोवियत रूस के 1910 से 1940 की स्थितियों का फंतासीपरक रूपात्मक प्रतीकीकरण है।

ऐनिमल फार्म की कहानी कुछ इस प्रकार है ।
मेनर फार्म के जानवर अपने मालिक के खिलाफ बगावत कर देते हैं और शासन अपने हाथ में ले लेते हैं। जानवरों में सूअर सबसे चालाक हैं और इसलिए वे ही इनका नेतृत्‍व करते हैं। सुअर जानवरों की सभा में सुशासन के कुछ नियम तय करते हैं। पंरतु बाद में ये सुअर आदमी का ही रंग-ढंग अपना लेते हैं और अपने फायदे व ऐश के लिए दूसरे जानवरों का शोषण करने लगते हैं। इस क्रम में वे नियमों में मनमाने ढंग से तोड़-मरोड़ भी करते हैं। मसलन नियम था – ALL ANIMALS ARE EQUAL (सभी बराबर हैं) लेकिन उसमें हेराफेरी कर उसे बना दिया जाता है:-
ALL ANIMALS ARE EQUAL, BUT SOME ANIMALS ARE MORE EQUAL THAN OTHERS. (सभी जानवर बराबर हैं किन्तु कुछ जानवर अन्य जानवरों से अधिक बराबर हैं)

किसी भी पुस्तक या किसी भी रचनात्मक कृति पर प्रतिबंन्ध अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक हमला है। हर कृति को लेखक या कलाकार अपनी सोच या विचारधारा से ही लिखता है। उसकी विचारधारा से असहमति हो सकती है और उस विचारधारा का विरोध भी हो सकता है पर उस विचारधारा या कृति पर प्रतिबंध एक प्रकार की वैचारिक तानाशाही है।

चीन के संविधान में इधर परिवर्तन कर के शी जिनपिंग को अनिर्धारित समय तक राष्ट्रपति बने रहने की सुविधा दे दी गयी है। यह शी का चीन पर बढ़ता प्रभाव तो दर्शाता है, पर यह, एक प्रकार की तानाशाही का भी द्योतक है। केवल एनिमल फार्म ही प्रतिबन्धित नहीं किया गया है बल्कि, चाइना डिजिटल टाइम्स के अनुसार, अक्षर N, उपन्यास 1984, और शी जदोंग नाम के प्रयोग पर भी रोक लगा दी गई है। एनिमल फार्म की तरह 1984 उपन्यास भी एक प्रकार का राजनीतिक व्यंग्य है। शी जदोंग में शी जिनपिंग और माओ जदोंग के नामों के प्रथम और अंतिम शब्द होने के कारण और N शब्द से चीनी भाषा मे विरोध की ध्वनि निकलती है इस लिये इसे प्रतिबंधित किया गया है। चीन में शी और माओ की आलोचना नहीं की जा सकती है। यही नहीं चीन की माइक्रोब्लॉगिंग साइट वेइबो Weibo पर निम्न शब्दों के चीनी या मैंडरिन भाषा मे समानार्थी शब्दों का भी प्रयोग प्रतिबंधित है। ये शब्द हैं, “disagree”, “personality cult”, “lifelong”, “immortality”, “emigrate”, and “shameless”. फिलहाल चीन के संविधान में 2023 तक शी जिनपिंग के सत्ता में बने रहने का रास्ता साफ कर दिया गया है।

© विजय शंकर सिंह

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