Saturday 31 March 2018

अंतनियो ग्राम्शी की एक लघु कविता / विजय शंकर सिंह

शिक्षित होओ कि
हमें चाहिये तुम्हारी सारी बुद्धिमत्ता।
उद्वेलित होओ कि
हमें चाहिये तुम्हारा सारा उत्साह।
संगठित होओ कि
हमें तुम्हारी सारी शक्ति भी चाहिये।

( अन्तोनियो_ग्राम्शी )
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अंतोनियो ग्राम्शी ( 1891- 1937 ) इटली की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक, मार्क्सवाद के सिद्धांतकार तथा प्रचारक थे। बीसवीं सदी के आरंभिक चार दशकों के दौरान दक्षिणपंथी फ़ासीवादी विचारधारा से जूझने और साम्यवाद की पक्षधरता के लिए विख्यात हैं।

ग्राम्शी का जन्म 22 जनवरी 1891 को सरदानिया में कैगलियारी के एल्स प्रांत में हुआ था। फ़्रांसिस्को ग्राम्शी और गिसेपिना मर्सिया की सात संतानों में से अंतोनियों ग्राम्शी चौथी संतान थे।  क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए इटली की फ़ासीवादी अदालत ने ग्राम्शी को 1928 में 20 वर्ष के कारावास की सज़ा सुनायी। ग्राम्शी का चिंतन और लेखन दो अवधियों में विभाजित किया जाता है- कारावास पूर्व ( 1910 -1926 )और कारावास पश्चात ( 1829 - 1935 ) । कारावास पूर्व लेखन का मूल स्वर जहाँ राजनीतिक था, वहीं कारावास के पश्चात ग्राम्शी ऐतिहासिक और सैद्धांतिक लेखन में प्रवृत्त हुए।

बीसवीं सदी के तीसरे दशक में यूरोप की कुछ कम्युनिस्ट पार्टियों के बीच यंत्रवादी दर्शन का बोलबाला था। ग्राम्शी ने, दक्षिणपंथी भटकाव का आधार, इस यंत्रवादी दार्शनिक विचारधारा का पर्दाफ़ाश करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। दर्शन के क्षेत्र में ग्राम्शी ने ऐतिहासिक भौतिकवाद की समस्याओं की ओर प्रमुखता से ध्यान दिया। कारावास के दौरान लिखी गयी प्रिज़न नोटबुक्स ग्राम्शी की विचारधारा और सैद्धांतिक लेखन की प्रतिनिधि दस्तावेज़ है।इसमें उन्होंने आधार तथा अधिरचना, सर्वहारा वर्ग और बुद्धिजीवी समुदाय के पारस्परिक संबंधों की पड़ताल की। विचारधारा (दर्शन, कला, नीति आदि) की सापेक्ष स्वतंत्रता का गहन अध्ययन और विश्लेषण किया। इतावली संस्कृति का ग्राम्शी द्वारा किया गया अध्ययन, कैथोलिकवाद, क्रोचे के अभिव्यंजनावादी दर्शन और समाजशास्त्र में प्रत्ययवादी सिद्धांतों की आलोचना, मार्क्सवादी चिंतनधारा में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
( श्रोत विकिपीडिया )

© विजय शंकर सिंह

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