Saturday, 31 March 2018

Ghalib - Aaye ho kal, aur aaj kahte ho ki jaaoon / आये हो कल, और आज कहते हो कि जाऊं - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब- 40 .
आये हो कल,और आज कहते हो कि जाऊं,
माना कि, हमेशा नहीं अच्छा कोई दिन और !!

Aaye ho kal , aur aaj kahte ho ki jaaoon,
Maanaa ki, hameshaa nahin achchhaa koi din aur !!
- Ghalib

कल ही आये हो, और आज कहते हो कि जाऊं, मानता हूँ कि हमेशा कोई दिन बराबर अच्छा नहीं होता है।

ग़ालिब के इस शेर में, इसरार है, मनुहार है और उलाहना भी है। यह इश्क़ ए हक़ीक़ी भी है और आप इसमें इश्क़ ए मजाज़ी भी ढूंढ सकते हैं। यह पाठक के दृष्टिकोण पर है। कुछ आलोचकों ने इसे सामान्य उलाहने और मनुहार के अभिव्यक्ति के रूप में देखा है। पर कुछ को इसमें सूफियाना दर्शन सूझ पड़ा।  एक आलोचक के अनुसार आना और जाना, जन्म और मृत्यु का प्रतीक है। अभी तो आये हो और जाने की बात भी करने लगे। संसार से तो सभी को जाना है। पर थोड़ा रुकने का मोहक इसरार यहां पर है। ग़ालिब के शेर के कई अर्थ निकाले गए है। मेरे मित्र विपुल कुमार जो खुद उर्दू साहित्य के पारखी और एक अच्छे शायर हैं,  ने दूसरे मिसरे का अर्थ यह सुझाया है। " चलो अच्छा, कई दिन न रुको, कुछ दिन ही सही और रुक जाओ।" आप सब सुधीजन इस शेर की व्याख्या अपने अपने विचार से कर सकते है।  ग़ालिब का अंदाज़ ए बयाँ और है, यह ग़ालिब ने कहा है तो, वह उनके हर मिसरे में झलकता भी है।

© विजय शंकर सिंह

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