Thursday, 29 March 2018

Ghalib - Aamad bahaar kii hai, / आमद बहार की है - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह

ग़ालिब- 38
आमद बहार की है, जो बुलबुल है नग्मा संज,
उड़ती सी एक खबर है, ज़ुबानी तयूर की !!

Aamad bahaar kee hai , jo bulbul hai nagmaa sanj,
Udatee see ek khabar hai , zubanee tayoor kee !!
-Ghalib.

तयूर  -  पक्षी

बसंत आ रहा है । उसके आगमन की सूचना बुलबुल के चहचहान से मिलने लगी । बुलबुल का यह गीतों भरा स्वर , बसंत के आगमन की एक शुभ सूचना भी है ।

प्रख्यात निबंधकार , डॉ विद्या निवास मिश्र का एक प्रसिद्ध ललित निबंध है, '' बसंत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं ।" यह निबंध 1976 में तत्कालीन प्रसिद्ध पत्रिका , धर्मयुग में प्रकाशित हुआ था । निबंधकार ने इस निबंध में बसंत के आगमन पर तो प्रसन्नता व्यक्त की है , पर बसंत पूर्व जो जीवन व्यतीत हो चुका है , उसे देखते हुए इस आगमन को उत्कंठा से शून्य ही बताया है । बसंत भारतीय ऋतु परम्परा में सबसे मोहक और मादक मौसम है । शीत का प्रकोप समाप्त हो चुका रहता है । मौसम , खुशगवार हो जाता है । बदलते मौसम का असर , सभी जीव और वनस्पतियों पर पड़ने लगता है । बुलबुल , अपने सुरीले   स्वर से ऋतु परिवर्तन के इस दौर के आगमन की सूचना देने लगती है । पर कभी मौसम बदलेगा भी , इसकी भी उम्मीद ग़ालिब को नहीं हैं यहाँ फिर ग़ालिब के जीवन में व्यतीत हुये त्रासद घटनाक्रम की यादें हैं , जहां बसंत के आगमन की कोई उम्मीद भी नहीं है। पर जब एक पक्षी का स्वर बदला ,तो लगा कि शायद अब बसंत आ ही जाय । यह सूचना भी उड़ती सी खबर की तरह है न कि कोई पुख्ता खबर है।

( विजय शंकर सिंह )

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