Wednesday, 14 March 2018

आईएएस अफसरों के नियुक्ति प्रणाली पर अमेरिकी शोधपत्र - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

प्रधानमंत्री जी के कम आयु के लोगों को कलेक्टर के पद पर नियुक्ति के लिये वरीयता देने के बाद नौकरशाही पर एक और अध्ययन सामने आया है। इस अध्य्यन के अनुसार,
Indian bureaucrats who work in their home state perform worse than those who aren’t, they are deemed more corrupt and less able to stand up to political pressure,
( वे भारतीय नौकरशाह जो अपने गृह प्रदेश में नियुक्त होते हैं, वे राजनीतिक दलों के दबाव में अधिक आते हैं, अधिक भ्रष्ट होते हैं, अपेक्षाकृत उनके जो अपने गृह प्रदेश में नियुक्त नहीं होते हैं )

आगे वही शोधपत्र कहता है,
“The main finding is that home state allocated officers perform worse than comparable officers who are allocated to non-home states,”
( अपने गृह प्रदेश में नियुक्त होने वाले अधिकारी, उन अधिकारियों की अपेक्षा जो किसी अन्य प्रदेश से आते हैं, काम भी उतना अच्छा नहीं करते जितना कि गैर प्रदेश से आकर नियुक्त होने वाले अफसर करते हैं )

‘Social Proximity and Bureaucrat Performance: Evidence from India’
नामक यह शोध पत्र गुओ शू मारियाना , बर्ट्रेंड और रॉबिन बर्गीज़ नामक शोधकर्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन के आधार पर लिखा गया है। यह शोध कैलिफोर्निया, बर्कले  शिकागो विश्वविद्यालय, बूथ स्कूल ऑफ बिजिनेस और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स का भारतीय नौकरशाही पर किये गए एक संयुक्त शोध परियोजना का परिणाम है। इस शोध के लिये शोधकर्ताओं ने आईएएस, राज्य सेवा के पीसीएस, एमएलए, एमपी, मीडिया, व्यापार जगत और विभिन्न एनजीओ को एक तय प्रश्नावली भेज कर एक डेटा बेस तैयार किया और फिर उनके अध्ययन के आधार पर अपना निष्कर्ष निकाला।

शोधपत्र के अनुसार, अपने गृह प्रान्तों में नियुक्त होने वाले अधिकारी स्थानीय समस्याओं, लोगों, भाषा आदि से पर्याप्त परिचित होते तो हैं और वे चाहें तो इस समरसता का लाभ बेहतर प्रशासन के लिये उठा सकते हैं, पर अक्सर ऐसा होता नहीं है। इसके विपरीत होता यह है कि,

“On the other hand, local officers may be more susceptible to capture by the political elite; also, their deeper personal networks in the community they serve may provide more opportunities for bribe taking as well as a more efficient technology for bribe extraction,”
( दूसरी तरफ स्थानीय अधिकारियों को राजनीतिक दलों के लोग अधिक आसानी से अपने प्रभाव क्षेत्र में ले लेते हैं। साथ ही गृह प्रांत के अधिकारियों को स्थानीय जाति या समाज का होने के कारण वे आसानी से अपनी जाति या समाज द्वारा भ्रष्ट किये जा सकते हैं। )

शोध का यह भी निष्कर्ष है कि, गृह प्रांत में नियुक्त अधिकारी, अपेक्षाकृत गैर गृह प्रान्त वाले अफसरों के , राजनीतिक दबाव में अधिक आते है। इसका एक कारण जल्दी जल्दी और अधिक तबादले होना भी है।

शोध पत्र में इस अध्ययन को दो भागों में बांटा गया है। एक नकारात्मक गृह प्रांत प्रभाव, दूसरा सकारात्मक गृह प्रांत प्रभाव। नकारात्मक प्रभाव वह है जिसमे गृह प्रांत में नियुक्त होने वाले अधिकारियों द्वारा राजनीतिक दलों के दबाव और भ्रष्टाचार में लिप्त होने की बातें कही गयीं है। नकारात्मक प्रभाव की सबसे अधिक शिकायतें कर्नाटक, बिहार और गुजरात राज्यों से मिली हैं। ये तीनों प्रांत प्रशासनिक भ्रष्टाचार में भी देश मे सबसे ऊपर हैं। इसके विपरीत यह नकारात्मक प्रभाव, पंजाब , यश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में लभभग शून्य है। रिपोर्ट के ही शब्दों में,

“The negative home state effect is largest in Karnataka, Bihar, and Gujarat. Karnataka and Bihar are consistently ranked among the most corrupt regions of India. In contrast, this negative effect is close to zero or even reverted in Punjab, West Bengal and Andhra Pradesh,”

शोधपत्र में इस विंदु पर भी अध्ययन किया गया है कि गृह प्रांत में नियुक्त होने के बाद आईएएस अधिकारी अपने अवकाश ग्रहण के बाद करते क्या हैं। शोधपत्र के निष्कर्षों के अनुसार, जब इस विंदु पर अध्ययन किया गया तो पाया गया कि, अधिकतर सेवा निवृत्त आईएएस अधिकारी विभिन्न निजी कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स या सरकारी प्रतिष्ठानों में पुनः समायोजित हो जाते हैं। यह समायोजन अधिकतर अधिकारियों की अपनी गृह प्रांत में नियुक्ति के कारण राजनीतिक और असरदार लोगों जिनमे उद्योगपति भी हैं से संपर्कों के कारण होता है। रिपोर्ट के ही शब्द हैं,

“Finally, by matching IAS officers to company registries, we find that home state officers are more likely to serve in both public and private boards. These firms are also more likely to be based in the same state, thus reflecting the officer’s greater access to local networks,”

आंकडो के अध्ययन के अनुसार, फरवरी 2018 तक कुल 17 प्रतिशत अवकाश प्राप्त आईएएस अफसर विभिन्न कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में समायोजित पाए गए। इनमे से 99 प्रतिशत कंपनियां सूचीबद्ध नहीं हैं। 98 प्रतिशत कंपनियां लिमिटेड कंपनी है।

“Nearly all of these companies are unlisted (99 per cent) and companies limited by shares (98 per cent). 65 per cent of the companies are public or state-owned firms, with the remainder covering private sector firms,”

हालांकि यह भी अध्ययन में पाया गया है, कि गृह प्रांत में नियुक्ति के सकारात्मक लाभ भी हैं। एक लाभ यह है उन्हें स्थानीय समस्याओं, भाषा, बोली, रीति रिवाज और स्थानीय नेताओं की जानकारी होती हैं और वे जनता की समस्याओं का समाधान कुशलता से कर सकते हैं। यह सरकार के लिये अतिरिक्त रूप से भी लाभदायक है। जब कि गैर प्रांत के अफसरों को मौसमानुकूल होने में समय लगता है। लेकिन पत्र ने यह भी पाया है कि जिन कारणों से इन अफसरों के गृह प्रांत में नियुक्त होने के कारण लाभ मिलता है वे ही कारण इन्हें भ्रष्ट भी कर देते हैं। क्योंकि,

“they are more trusted and better connected or because (for similar reasons) they are more likely to be captured by politicians and other members of the local elite.”

प्रधानमंत्री के कम उम्र के कलेक्टरों की नियुक्ति की बात कहने और इस शोधपत्र की समीक्षा जो ' द प्रिंट ' के 12 मार्च 2018 के अंक में वंदना मेनन के लेख में प्रकाशित है में किसी टाइमिंग की समता है या यह महज संयोग यह तो अनुमान ही लगाया जा सकता है पर मेरी राय जो मेरे सेवाकाल के अनुभवों पर आधारित है , इस अध्ययन के निष्कर्ष से मेल नहीं खाती है। जहां तक भ्रष्टाचार का सम्बंध है इसका गृह प्रांत या गैर प्रांत से कोई लेनादेना  नहीं है। गैर प्रांत से आये और गृह प्रांत में तैनात आईएएस अफसर भ्रष्टाचार के आरोपी भी रहें हैं और साफ सुथरे भी। यह भ्रष्टाचार में लिप्तता का कोई मापदंड नहीं हो सकता है। सूचना और रोज़गार प्रसार के युग मे अब जितना संपर्क गृह प्रांत में बनाना आसान है उतना ही गैर प्रांत में भी। गृह प्रांत में नियुक्ति तो फिर भी अनेक सामाजिक दबावों के कारण उतपन्न लोकलाज या अन्य कारणों से भ्रष्ट होने और राजनेताओं के बेज़ा दबाव से अफसरों को बचाता भी है । जब कि ग़ैरप्रांत से आये अफसर स्थानीय रूप से अपनी पकड़ और लगाव न रहने के कारण राजनेताओं के दबाव में आ भी जाते हैं। वे अपना दबाव समूह नहीं बना पाते हैं क्यों कि सामाजिक रूप से वे अलग रहते हैं। रहा प्रश्न सेवा निवृत्ति के बाद कहीं समायोजन का तो इतने अध्ययन के बाद भी केवल 17 प्रतिशत सेवा निवृत्त अफसर ही ऐसे मिले जो कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में हैं। यह संख्या बहुत उल्लेखनीय नहीं है। 83 प्रतिशत अफसर अभी भी केवल पेंशन पर ही आश्रित हैं । हो सकता है कुछ लोग स्वरोजगार या अपने पुत्र के किसी काम मे सहायक हों।

यह शोध यह भी बताता है कि अमेरिकी संस्थान भारत की शीर्ष नौकरशाही में रुचि ले रहे हैं। यह अध्ययन केवल आईएएस कैडर के अफसरों पर किया गया है। अन्य अखिल भारतीय सेवाओं जैसे भारतीय पुलिस सेवा और भारतीय वन सेवा पर ऐसा कोई अध्ययन नहीं किया गया। यह अध्ययन यह सिद्ध करना चाहता है कि, स्थानीय या गृहप्रांत में नियुक्त अफसर भारत मे काम नहीं कर सकते हैं  और उनके भ्रष्ट होने तथा राजनीतिक दबाव में आ जाने की संभावनाएं अधिक होती है। यह नौकरशाही के प्रति दुर्भावनापूर्ण आकलन है। नौकरशाही की अपनी कोई स्वेच्छाचारी शक्ति नहीं होती है। उसके हर अधिकार, कर्तव्य और दायित्व शासकीय नियमों और उपनियमों से बंधे होते है। यह सभी नियम संहिताबद्ध हैं।  उन नियमो के उल्लंघन पर क्या और कौन  कार्यवाही कर सकता है यह भी नियमों में ही रहता है। आवश्यकता है नौकरशाही को कानून का पालन कानूनी ढंग से करने देने की है।

लोकतंत्र में राजनीतिक दबाव अनिवार्य रूप से आएगा। यह दबाव भी दो भागों में सकारात्मक और नकारात्मक रूप में बांटा जा सकता है। कभी कभी यह दबाव नियम विरुद्ध कार्य न करने के भी विरुद्ध होता है तो कभी कभी नियम विरुद्ध कार्य करने के लिये ही होता है। अब यह व्यक्तिगत रूप से अफसर पर निर्भर करता है कि वह इन दबावों में नियमों और कानूनों के साथ खड़ा है या राजनीतिक दबाव या धनबल के समक्ष आत्म समर्पण कर चुका है। लेकिन इन दोनों व्याधियों , राजनीतिक दबाव और भ्रष्टाचार के लिये गृहप्रांत में नियुक्ति को एक कारण मानना उचित नहीं है।

© विजय शंकर सिंह

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