Friday, 16 March 2018

जेएनयू, अररिया और कश्मीर - देश विरोधी नारों पर अकर्मण्यता भरी चुप्पी / विजय शंकर सिंह

2014 के चुनाव के बाद कुछ और असामान्य गतिविधियां होने लगी है। ये असामान्य गतिविधियां हैं , कई क्षेत्रों में देश विरोधी नारों का उद्घोष। अभी सबसे ताज़ी घटना अररिया लोकसभा के उपचुनाव के बाद वहां से यह खबर आ रही है कि मुस्लिम समुदाय के लोगों ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाये। साथ ही साथ यह भी खबर आ रही है कि नारे लगाने वाली बात सत्य नहीं है। दोनों ही पक्ष के लोग अपनी अपनी बात कह रहे हैं। दोनों से मेरा आशय भाजपा समर्थक और भाजपा विरोधी। इस उपचुनाव में राजद का उम्मीदवार जीता है। आरोप है कि यह नारा उसी दल के लोगों ने लगाया है । सच क्या है यह जांच एजेंसी ही बता पाएगी। बिहार में चूंकि भाजपा और जेडीयू की सरकार है तो उम्मीद की जानी चाहिए कि इन हरकतों पर ज़रूर कड़ी कार्यवाही होगी।

अब थोड़ा पीछे चलते हैं, 9 फरवरी 2016 को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कैम्पस में। वहां भी छात्रों के एक समूह ने भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह के नारे लगाए गए। टीवी और सोशल मीडिया पर कई दिन तक हंगामा होता रहा। दिल्ली पुलिस ने तीन छात्र नेताओं कन्हैया कुमार जो जेएनयूएसयू के अध्यक्ष थे, खालिद उमर और अनिर्बान के खिलाफ मुक़दमे भी कायम किये। इनकी गिरफ्तारी भी हुयी। ये जेल भी गए और फिर इनकी ज़मानत भी हुयी। पर आज 2 साल 1 माह से अधिक समय बीत जाने के बाद भी दिल्ली पुलिस इन आरोपी छात्रों के खिलाफ कोई आरोप पत्र अदालत में दाखिल नहीं कर सकी। वह अभी तक सुबूत ढूंढ रही है । जब कि उसके पास टीवी चैनल्स की ऑडियो वीडियो क्लिपिंग है।

एक और घटना पढिये। अभी 26 जनवरी 18 कासगंज में एक तिरंगा यात्रा के मुस्लिम बहुल आबादी में पहुंचने के बाद कहा जाता है कि पाकिस्तान जिंदाबाद और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगे । वहां कुछ और अभद्र नारे लगे, तनाव बढ़ा और किसी ने एक गोली चला दी और चंदन गुप्ता नामक एक युवक की हत्या हो गयी। दंगा हुआ, फिर सब शांत हुआ। यह नहीं पता चन्दन के हत्यारे पकड़े गए, और उनके खिलाफ कोई  आरोप पत्र गया या नहीं। जिन्होंने पाकिस्तान जिंदाबाद और धर्म को आहत करने संबंधी नारे लगाये थे, उनका क्या हुआ यह पता नहीं है।

एक घटना जिसका उल्लेख मैं कर रहा हूँ, तो शायद आज़ादी के बाद पहली बार घटी है।  कश्मीर के दूसरे नंबर के ग्रैंड मुफ़्ती ने एक बयान दिया कि भारत मे मुसलमानों की संख्या बढ़ गयी है और अब उनके लिये एक अलग देश चाहिये। यह मांग देशद्रोह के अपराध के लिये एक फिट केस था। पर उस मुफ़्ती की मांग का विरोध तो हिन्दू और मुसलमानों दोनों ने ही किया पर सरकार की तरफ से हैरानी भरी खामोशी रही। यह सारी घटना 2016 के बाद ही घटी है। बात बात पर लोगों को देशद्रोही कह देने वाले सरकार के मंत्री इस बेहद गंभीर और आपत्तिजनक बयान पर चुप्पी साधे रहे। कश्मीर में भी भाजपा सरकार में ही हैं।

क्या सरकार को इन घटनाओं पर संज्ञान ले कर त्वरित रूप से वैधानिक कार्यवाही नहीं करनी चाहिये थी ? लेकिन अररिया की घटना तो अभी ताज़ी है, उसे थोड़े देर के लिये दरकिनार भी कर दें तो जेएनयू की घटना पर दोषी छात्रों या जो भी लोग हों के विरुद्ध आरोप पत्र और कश्मीर के मुफ़्ती के धर्म के आधार पर देश के विभाजन की मांग करने वाले के खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही क्यों नहीं की गयी ? तीनो ही स्थानों पर भाजपा की ही सरकार है।

सोशल मीडिया अररिया की घटना से पटा पड़ा है । वैसे ही जैसे 9 फरवरी 16 के बाद जेएनयू की घटना पर पटा पड़ा था। पर समय के साथ साथ यह सब ठंडे बस्ते में चला गया। ऐसी घटनाओं पर सरकार की चुप्पी के दो दुष्परिणाम निकलते हैं। एक तो सरकार के बारे में यह धारणा बनती है कि देशविरोधी गतिविधियों के मामलों में सरकार गंभीर नहीं है। दूसरे ये गतिविधियां दरअसल कोई गतिविधियां ही नहीं हैं, बल्कि यह एक प्रकार का राजनैतिक प्रोपगैंडा है। अगर यह धारणा बनती है कि सरकार इन सब देशद्रोही गतिविधियों पर खामोश रहती है तो देशद्रोही ताक़तें जो सीमापार से से प्रायोजित होती हैं, का मनोबल बढ़ता है और हमारी क्षवि एक नरम देश या सॉफ्ट नेशन की बनती है जो  आतंकवाद के खिलाफ बयानबाजी तो करता है पर कार्यवाही के नाम पर पीछे हट जाता है। अगर यह एक राजनीतिक प्रोपैगेंडा साबित होता है तो इस से उभय सम्प्रदायों में अविश्वास बढ़ता है और सामाजिक तानाबाना मसकता है। जिसका परिणाम धार्मिक ध्रुवीकरण है। सम्भव है यह ध्रुवीकरण किसी दल विशेष को तात्कालिक रूप से चुनावी लाभ भले दे दे पर देश को अंदर से वह खोखला भी करता है।

सरकार को तत्काल अररिया के घटना की जांच करानी चाहिये, आडियो वीडियो की जांच, उसके आधार पर दोषी व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही कर के इस मामले में यह संदेश देना चाहिये कि देश की एकता और अखंडता के सवाल पर सरकार का निश्चय और सरकार की दृष्टि स्पष्ट है। और अगर यह घटना झूठी निकलती है तो इस घटना की आड़ में अफवाह फैलाने वाले तत्वों पर भी सख्त कार्यवाही की जानी चाहिये। ऐसी अफवाहें अपने आप मे ही देश की एकता और अखंडता के लिये घातक हैं। साथ ही जेएनयू मामले में आरोप पत्र और कश्मीर के ग्रैंड मुफ़्ती के खिलाफ भी कार्यवाही अवश्य की जाय।

© विजय शंकर सिंह

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