Thursday, 15 March 2018

गोरखबानी - कुछ दोहे / विजय शंकर सिंह

आज सुबह सुबह पढिये गोरखबानी । नाथ संप्रदाय उत्तर-पश्चिमी भारत का एक धार्मिक पंथ है। इसके आराध्य शिव हैं। यह हठ योग की साधना पद्धती पर आधारित पंथ है। इसके संस्थापक गोरखनाथ माने जाते हैं। गोरखनाथ ने इस सम्प्रदाय के बिखराव और इस सम्प्रदाय की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया।
सभी दोहे नाथ साहित्य के विद्वान डॉ पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल के एक लेख से लिये गये हैं।
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हिंदू ध्यावे देहुरा, मुसलमान मसीत,
जोगी ध्यावे परम पद, जहां देहुरा न मसीत !!

( योगी मंदिर-मस्जिद का ध्यान नहीं करता। वह परम पद का ध्यान करता है। यह परम पद क्या है, कहां है ? यह परम पद तुम्हारे भीतर है )

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गोरखनाथ लोगों में भेद न करने की भी नसीहत देते हैं। साथ ही मीठा बोलने और सदैव शांत रहने की बात कहते हैं-

मन में रहिणां, भेद न कहिणां
बोलिबा अमृत वाणी
अगिला अगनी होइबा
हे अवधू तौ आपण होइबा पाणीं

( किसी से भेद न करो, मीठा बानी बोलो। यदि सामने वाला आग बनकर जला रहा है तो हे योगी तुम पानी बनकर उसे शांत करो)

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कोई न्यंदै कोई ब्यंदै कोई करै हमारी आसा
गोरख कहे सुनौ रे अवधू यहु पंथ खरा उदासा

( कोई हमारी निंदा करता है, कोई प्रशंसा, कोई हमसे वरदान, सिद्धि चाहता है किंतु मेरा रास्ता तटस्थता, अनासक्ति और वैराग्य मार्ग का है )

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गोरख कहै सुन रे अवधू जग में ऐसा रहना
आखें देखिबा कानै सुनिबा मुख थै कछू न कहणां

(गोरखनाथ कहते हैं कि जीव जगत में योगी अपनी आंख से सब देखे और कान से सुने लेकिन क्या सही है क्या गलत इसके विवाद में न पड़े और इसके बारे में अपना मत न व्यक्त करे। योगी को द्रष्टा बनना चाहिए )

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कोई वादी कोई विवादी, जोगी कौ वाद न करना
अठसठि तीरथ समंदि समावैं, यूं जोगी को गुरूमखि जरनां

(जोगी को बेवजह विवाद में नहीं रहना चाहिए। जैसे चौसठ तीर्थों का जल समुद्र में मिल जाता है उसी तरह परम ज्ञान की प्राप्ति ही योगी की सिद्धि है)

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हिन्दू आषै अलष कौ तहां राम अछै न खुदाई

( हिन्दू, परमात्मा को राम कहते हैं। इसी तरह इस्लाम में विश्वास करने वाले मुसलमान अपने परमात्मा को खुदा कहते हैं। राम और खुदा घट-घट में व्याप्त हैं )

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नाथ कहता सब जग नाथ्या, गोरख कहता गोई
कलमा का गुर महंमद होता, पहलै मूवा सोई

( ‘नाथ’ मात्र के उच्चारण से कोई बन्धन मुक्त नहीं होता। इसी तरह ‘ कलमा ’ का सिर्फ उच्चारण से काम नहीं चलता। मुहम्मद साहेब ने कलमा में अन्तरजीवन का सूत्र दिया है। आज उनका शरीर नहीं है पर उनका कलमा अमर है जो परमतत्व का प्रकाशक है ) 

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सबदै मारी सबदै जिलाई ऐसा महंमद पीरं
ताकै भरमि न भूलौ काजी सो बल नहीं शरीर

( मुहम्मद साहब ने जो उपदेश दिया है, जो कहा है उससे आत्मा को शक्ति मिलती है। हे काजी ! उनके कही बातों को सही अर्थाे मेें लो और भ्रम न उत्पन्न करों नहीं तो तुम्हारी बातों में बल खत्म हो जाएगा। )

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पढ़ि पढि पढ़ि केता मुवा, कथि कथि कहा कीन्ह
बढि बढि बढि बहु घट गया पार ब्रह्म नहीं चीन्ह

( शास्त्र पढ़ते-पढते और कहते-कहते कितने मर गए लेकिन उसका मर्म नहीं समझ सके इसलिए उनका परब्रह्म से साक्षात्कार भी नहीं हो पाया )

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गुरू गोरखनाथ ने अपने वक्त में हिंदूओं और मुसलमानों को आडम्बरों से बचने और धर्म के मूल तत्व को समझने की बात कही-

काजी मुल्ला कुरांण लगाया, ब्रह्म लगाया बेदं
कापड़ी सन्यासी तीरथ भ्रमाया, न पाया नृबांण पद का भेवं

( काजी और मुल्ला कुरान को सब कुछ मानते हैं। ब्राहण वेद को सब कुछ मानते है। कापड़ी ( गंगोत्री से गंगा लेकर चलने वाले तीर्थ यात्री )  तीर्थ यात्रा को महत्व देते हैं। गुरू गोरखनाथ का मत है कि इनमें से किसी ने परमत्त्व का रहस्य नहीं समझा परमपद का निर्वाण मात्र पुस्तक पढ़ने या तीर्थ भ्रमण से नहीं होता। यह साधना से होता है )

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कहणि सुहेली रहणि दुहेली , कहणि रहणि बिन थोथी
पढ्या गुंण्या सूबा बिलाई खाया, पंडित के हाथि रई गई पोथी

( कोरा उपदेश देना या ज्ञान की बात करना आसान है। उसे जीवन में उतारना कठिन है। यदि कहनी के अनुरूप करनी नहीं है तो वह सिर्फ थोथी बात है। यह ऐसे ही है जैसे पिंजड़े में बंद तोता बहुत ज्ञान की बात करता है लेकिन पिंजड़ा खुलते ही ज्ञान का उपयोग जीवन में न करने के कारण बिल्ली का शिकार हो जाता है। उसी तरह पंडित के हाथ में ज्ञान की पोथी है, वह उसका उच्चारण करता रहता है लेकिन जीवन में उसका कोई उपयोग नहीं करता )
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आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है-गोरखनाथ के समय में समाज में बड़ी उथल-पुथल थी। मुसलमानों का आगमन हो रहा था। बौद्ध साधना मंत्र-तंत्र, टोने-टोटके की ओर अग्रसर हो रही थी। ब्राह्मण धर्म की प्रधानता स्थापित हो गई थी फिर भी बौद्धों, शाक्तों और शैवों का एक भारी सम्प्रदाय था जो ब्राह्मण और वेद की प्रधानता को नहीं मानता था। गोरखनाथ के योग मार्ग में ऐसे अनेक मार्गों का संगठन हुआ। इन सम्प्रदायों में मुसलमान जोगी भी थे ।

जार्ज वेस्टन ब्रिग्स ने अपनी पुस्तक ‘गोरखनाथ एंड दि कनफटा योगीज’ में 1891 की जनसंख्या रिपोर्ट के हवाले से बताया है कि भारतवर्ष में योगियों की संख्या 2,14,546 हैं. आगरा व अवध प्रांत में 5,319 औघड़, 28,816 गोरखनाथी और 78,387 योगी थे. इनमें बड़ी संख्या मुसलमान योगियों की है.

इसी वर्ष की पंजाब की रिपोर्ट में बताया कि मुसलमान योगियों की संख्या 38,137 है. वर्ष 1921 की जगगणना में इनकी जोगी हिंदू 6,29,978, जोगी मुसलमान 31,158 और फकीर हिंदू 1,41,132 बताई गई हैं. इस जनगणना में पुरूष और स्त्री योगियों की संख्या भी अलग-अलग बताई गई है.
बाद की जनगणना रिपोर्टों में इन लोगों का अलग से उल्लेख नहीं है. ब्रिग्स ने अपनी किताब में योगी जातियों का विस्तार से जिक्र किया है.

इससे स्पष्ट होता है कि आज भी गोपीचंद और भर्तहरि को गाने वाले मुसलमान योगी नाथपंथ से जुड़े गृहस्थ योगी हैं जो अपने को जोगी कहते हैं. इन मुसलमान जोगियों के गांव गोरखपुर, कुशीनगर, देवरिया, संतकबीरनगर, आजमगढ़ बलरामपुर में मिलते हैं लेकिन अब ये अपनी परम्परा को छोड़ रहे हैं.

मुसलमान जोगियों पर समुदाय के भीतर और समुदाय के बाहर दोनों तरफ से अपनी इस परम्परा को छोड़ने का दबाव बढ़ रहा है. सांप्रदायिक हिंसा और कटुता बढ़ने के कारण अब ये जोगी गेरूआ वस्त्र में खुद को असहज पाते हैं. उनके घरों में नौजवान मुसलमान इस कार्य को हेय दृष्टि से देखते हैं.

© विजय शंकर सिंह

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