Wednesday, 28 March 2018

Ghalib - Aate hain gaib se ye majaami khayaal mein / आते हैं ग़ैब से ये मजामी खयाल में - ग़ालिब / विजय शंकर सिंह


ग़ालिब - 37 .
आते हैं गैब से , ये मजामी ख़याल में ,
' ग़ालिब 'सरीर ए खामा नवा ए सरोश है !!

Aate hain gaib se ye majaamee khayaal mein ,
‘ Ghalib ‘ sareer e khaamaa , nawaa e sarosh hai !!
- Ghalib.

गैब        - परलोक , दिव्य लोक , वह दुनिया
मजामी  -  लेख , मज़मूम का बहु वचन
सरीर     - सिंहासन , तख़्त या लिखते समय कलम की आवाज़, चिरचिराहट , यहाँ कलम की चिरचिराहट से इसका अर्थ है।
खामा     - लेखनी , कलम
नवा       - आवाज़ ,स्वर
फरिश्ता - सरोश , जिब्रील , अच्छी खबर लाने वाला देवदूत।

Aate hain gaib se ye majaamee khayaal mein ,
‘ Ghalib ‘ sareer e khaamaa , nawaa e sarosh hai !!
- Ghalib.

मेरे द्वारा कलाम या साहित्य जो रचा जा रहा है , वह मुझे किसी दूसरी दुनिया या दिव्य लोक से प्राप्त सन्देश से प्रेरित है।  मेरी लेखनी के कागज़ पर घिसटने की जो आवाज़ , किरकिराहट है , वह किसी देवदूत का स्वर है। जो वह लिखवाता है मुझसे , वही मैं कागज़ पर उतार देता हूँ।
ग़ालिब के हर शेर में कुछ न कुछ गूढ़ता छिपी रहती है। बेहद साढ़े अंदाज़ और अत्यंत उत्कृष्ट शब्द चयन से युक्त उनकी सारी ग़ज़लें हैं। यह शेर भी उनकी एक प्रसिद्ध ग़ज़ल का ही है। इस ग़ज़ल को जगजीत सिंह ने अपनी बेहद खूबसूरत आवाज़ में गया है। ग़ालिब का दृष्टिकोण सूफियाना और सूफी रहस्यात्मकता से बहुत प्रभावित रहा है। वह अज्ञात लोक या शक्ति या देवदूत से प्राप्त ख्याल को सिर्फ लेखनी से उतारने की बात से वह अपने काव्य को उत्कृष्टता और रहस्यात्मकता प्रदान करते हैं।

© विजय शंकर सिंह

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