उदयपुर राजस्थान की एक कचहरी में राजसमंद में हुयी एक बर्बर हिंसक घटना में एक हत्यारे के समर्थन में लोग एकत्र हुये प्रदर्शन किया और अदालत के भवन पर भगवा ध्वज फहरा दिया। अब तक टीवी , अखबारों सोशल मीडिया पर कुरआन की आयतों से सजे हुए झंडे लिये आईएस और तालिबान के आतंकी दिखते थे अब भगवा को घोषित रूप से भीड़ ने अपने आतंक का ध्वजा घोषित कर दिया। झंडे का यह विस्थापन प्रतीकात्मक हो सकता है। पर क्या अब इस आतंक, गुंडई और अराजकता को देखते हुए इस भगवा ध्वज को भगवा आतंक नहीं कहा जाना चाहिये। जिन्हें यह बात चुभे वे इस ध्वज के दुरुपयोग के खिलाफ खुल कर खड़े हों। जैसे इस्लामी कट्टरपंथी कुरआन की आयत लिखी हुई झंडा ले कर चलते हैं वैसे हिन्दू कट्टरपंथी भगवा ध्वज ले कर अराजकता फैलाते है। जैसे उन्होंने पूरा मध्य पूर्व को मध्यगुग में धकेल दिया है वैसे ये भी देश को पीछे ले जा रहे हैं। सभी कट्टरपंथी एक ही फ्रीक्वेंसी पर सोचते हैं ।
यह राष्ट्रवादी खुद को कहने वाले लोग जिस कुनबे से आते हैं उनका भारतीय संविधान से विरोध बहुत पुराना है। जब संविधान बना था तब भी वे उसके खिलाफ थे और अब भी उनका विरोध छुपता नहीं है। यह द्विराष्ट्रवाद वाला राष्ट्रवाद जिन्ना वाला राष्ट्रवाद है जो ' धर्म ही राष्ट्र है ' का सिद्धांत मानता था। जिन्ना तो अपना मक़सद हल कर गये। उनका उनके समाज ने विरोध भी बहुत नही किया। विरोध किया भी तो उस समय केवल खान अब्दुल गफार खान और मौलाना आज़ाद, मौलाना हसरत मोहानी जैसे कम लोगों ने । लेकिन जिन्ना की प्रतिभा और अंग्रेज़ों का मुस्लिम लीग के प्रति अनुराग ने सीमांत गांधी और इन नेताओं को को अप्रासांगिक कर दिया। सबसे लहीम शहीम यह पठान नेता जो भौगोलिक रूप से पाकिस्तान जाने को अभिशप्त था , उस समय न सिर्फ अलग थलग पड़ गया बल्कि उन्होंने पठानों वाली साफबयानी से गांधी जी सख्त शब्दों में उलाहना देते हुये यह भी कह दिया कि, " आप ने तो हमे भेडियो के आगे डाल दिया । " भेड़िया से मतलब जिन्ना और पाकिस्तान चाहने वाले मुस्लिम नेता ।
इसके विपरीत भारत के हिन्दू, सावरकर या हिन्दू महासभा या आरएसएस के झांसे में नहीं आये । वे खुल कर गांधी के राष्ट्रवाद और आज़ादी के लड़ाई में उनके साथ खड़े रहे। सावरकर चाह कर भी जिन्ना की तर्ज़ पर हिन्दू राष्ट्र नहीं पा सके। जो भारत पाकिस्तान के कट जाने के बाद बचा, वह सर्वधर्म समभाव के साथ गया और जो संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया वह एक धर्मनिरपेक्ष संविधान था। यह भी एक अजीब विडम्बना है कि गांधी जो मूलतः एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे ने धर्म निरपेक्ष राष्ट्र के पक्ष में खड़े हुये और एमए जिन्ना जो बिलकुल भी धार्मिक मनोवृत्ति के नहीं थे और पाश्चात्य धर्म निरपेक्ष की विचारधारा से प्रभावित थे उन्होंने एक धर्म आधारित राज्य के लिये ज़िद की और इस्लामी राज्य की स्थापना की । संविधान के अनुसार तिरंगा भारत का राष्ट्रीय ध्वज बना । पर यह कुनबा उस तिरंगे और संविधान के बराबर विरोध में रहा है। लेकिन यह कुछ कर नहीं पाया । क्यों कि लंबे समय तक यह सत्ता में आ भी नहीं पाया। अब जब यह सत्ता में आया तो इसे जहां भी मौका मिलता है तिरंगे को अपने अग्निज्वाल ध्वज से विस्थापित करने का प्रयास करता है। यह घटना उसी दमित इच्छा का प्रस्फुटन है।
राजस्थान की एक अदालत पर जब यह ध्वज फहरा कर संविधान और अदालत की बेइज्जती की गयी तो मुझे कोई हैरानी नहीं हुयी। जिस तरफ ये जा रहे हैं वह रास्ता बिल्कुल साफ है । अल कायदा , तालिबान और आईएसआईएस के साथ सैद्धांतिक भाईचारा निभाते हुये यह एक ऐसा समाज बनाने की ओर जा रहे है जहां रोज़ झगड़े होंगे , अपराध होंगे, धर्म अपने अपने खाने में सिमट जाएंगे और अविश्वास का एक ऐसा वातावरण बन जायेगा कि सारी प्रगति और विकास की बातें धरी की धरी रह जाएंगी।
लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है। सनातन धर्म के अंदर का मेकेनिज़्म और दर्शन, धर्म के रेजीमेंटेशन को न केवल हतोत्साहित करता है बल्कि ऐसा करने वालों को अलग थलग भी कर देता। राजस्थान की अदालत पर जो गुंडागर्दी हुयी है उसे और वैसी ही घटनाओं को जिस दिन आप हल्के से लेने लगेंगे उसी दिन जिन्ना का मरा हुआ द्विराष्ट्रवाद फिर कब्र से निकल उठेगा और गाँव गाँव शहर शहर एक राष्ट्र नहीं , जहां जहां जो धर्म है वहा वहां वही राष्ट्र उभर कर आ जायेगा। यह बात कुछ मित्रों को एक्सट्रीम लग सकती है और यह एक्सट्रीम है भी। लेकिन एक्सट्रीम तक पहुंचने के लिये अगर कदम उधर उठे हैं तो उसे नज़रअंदाज़ करना घातक होगा । और यह जो हो रहा है यही तो पाकिस्तान शुरू से ही चाहता रहा है कि भारत धर्म के नाम पर मानसिक रूप से इतना बंट जाय कि उसे यहां दखल देने का आधार मिल जाय । धार्मिक उन्माद फैलाने वाले तत्व पाकिस्तान का ही एजेंडा पूरा कर रहे हैं । पाकिस्तान की कट्टरपंथी निज़ाम ने जिस उग्रवाद को संरक्षण दिया वही उग्रवाद उनके देश के लिये तबाही और बर्बादी और अराजकता का कारण बना। क्या हम भी उसी राह पर चल पड़े हैं ?
इस सम्बन्ध में विशाखा शर्मा की फेसबुक पर पोस्ट की यह पंक्तियां पढ़ें । ये हैं तो व्यंग्य के रूप में पर बात उन्होंने बहुत सटीक कही है ।
" Take a large bowl of stupid Indians, put it on the slow flame of religion.Mix a spoonful of Syria, mash a bit of Pakistan,for added flavour sprinkle Taliban.Let the bigotry simmer.Serve Hot and humiliating when cracks appear and the aroma of bloodshed reaches your nostrils. "
© विजय शंकर सिंह
No comments:
Post a Comment