इस्लामी धर्मोपदेशक ज़ाकिर नायक पर आरोप है कि वह धर्म की आड़ में आतंकवाद फैलाने वालों को प्रश्रय देता है। उसके पीस टीवी पर एकाध बार मेरी भी निगाह पड़ी थी जब वह आयत नम्बर और सूरा संख्या उद्धरित करते हुये अपनी बात कहता था। पेशे से चिकित्सक डॉ ज़ाकिर नायक का पीस टीवी प्रतिबंधित कर दिया गया और उसके एनजीओ की जब जांच पड़ताल हुयी तो कई आपात्तिजनक जानकारियां भी मिली। बाद में जांच शुरू हुई और ज़ाकिर नायक देश छोड़ कर विदेश चला गया। अब भी वहीं है। खबर है वह मलेशिया की नागरिकता लेने के लिये प्रयासरत है। उसे गिरफ्तार करने और भारत वापस लाने के लिये इंटरपोल इंटरनेशनल पुलिस ऑर्गनाइजेशन से भारत ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने का अनुरोध किया था जिसे इंटरपोल ने मना कर दिया है।
इंटरपोल कुल मिलाकर 7 तरह के नोटिस जारी कर सकता है। इनमें से छह नोटिस के नाम कलर के नाम पर रखे गए हैं। रेड कॉर्नर नोटिस भी इन्हीं में से एक होता है। इसके अलावा, दूसरे नोटिस इस तरह हैं ब्लू, ग्रीन, येलो, ब्लैक, ऑरेंज । नीला नोटिस किसी व्यक्ति के बारे में अतिरिक्त सूचना देने या पाने के वास्ते, हरा ऐसे व्यक्तियों के बारे में चेतावनी जो अपराध कर चुके हैं, पीला गुमशुदा (आमतौर पर नाबालिगों) के बारे में सूचनाएं, काला किसी लाश की शिनाख्त न होने पर जारी होता है, नारंगी बमों, पार्सल बमों वगैरह की सूचनाएं। इसके अलावा, इंटरपोल-संयुक्त राष्टÑ सुरक्षा परिषद नोटिस उन व्यक्तियों और संस्थों को लेकर जारी होता है, जिनपर सुरक्षा परिषद पाबंदियां लगाती हैं।
जहां तक रेड कॉर्नर नोटिस का सवाल है तो इंटरपोल इसे किसी सदस्य देश के कहने पर जारी करता है। इसका मकसद सभी सदस्य देशों को यह सूचना देना होता है कि किसी खास शख्स के खिलाफ उसके देश में अरेस्ट वॉरंट जारी हो चुका है। रेड कॉर्नर नोटिस इंटरनैशनल अरेस्ट वॉरंट नहीं होता क्योंकि अरेस्ट वॉरंट जारी करने का हक संबंधित देश को है, लेकिन मोटे तौर पर इसे इंटरनैशनल अरेस्ट वॉरंट की तरह ही लिया जाता है। इंटरपोल ऐसे लोगों को गिरफ्तार करने के लिए न तो अपने अधिकारियों को भेजता है और न ही अपने सदस्य देशों में से किसी से यह डिमांड करता है कि उस शख्स को गिरफ्तार किया जाए।
यह एक प्रकार का खोजी पत्र या सर्च एलर्ट होता है कि रेड कॉर्नर नोटिस जिस भी व्यक्ति या अपराधी के खिलाफ जारी होता है उसे इंटरपोल संगठन के सदस्य देश अपने अपने यहाँ तलाश करें और उसे ढूंढ कर जिस देश मे वह वांछित है उसे उसके दूतावास के माध्यम से भेजे। यह कोई जमानती या गैर जमानती वारंट नहीं है । क्यों कि वारंट तो वहीं का न्यायालय ही जारी कर सकता है जो उस अभियोग की सुनवाई कर रहा है।
ज़ाकिर नायक के खिलाफ महीनों तक सभी टीवी चैनलों पर बहसें हुयी। इन बहसों के माध्यम से हिन्दू मुस्लिम मुद्दा जो कतिपय चैनलों का सबसे चिरपरिचित एजेंडा है को भी हवा दी गयी। पर अब जब इंटरपोल ने रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने से मना कर दिया तो यह मामला फिर सुर्खियों में आ गया। इंटरपोल ने यह कहा है कि भारत सरकार के पास ज़ाकिर नायक के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है । इंटरपोल जब रेड कॉर्नर नोटिस जारी करता है तो वह यह भी सुनिश्चित करता है कि जिसके खिलाफ यह नोटिस जारी हो रहा है उसके खिलाफ उक्त देश के जांच एजेंसी द्वारा पर्याप्त साक्ष्य एकत्र किये गये हैं या नहीं। लेकिन इंटरपोल के अनुसार ज़ाकिर नायक के खिलाफ इतने सुबूत नहीं हैं कि इंटरपोल नोटिस जारी किया जा सके। इंटरपोल का यह इनकार एनआईए की जांच और उसके साक्ष्य एकत्रीकरण पर एक प्रश्नचिह्न है।
रेड कॉर्नर नोटिस जारी करवाने के लिये साक्ष्य तो आवश्यक होता ही है पर इसके लिये कूटनीतिक पैरवी भी ज़रूरी होती है। क्यो कि यह नोटिसें जिन अभियुक्तों या अपराधियो के खिलाफ जारी होती हैं वे सामान्य नहीं होते हैं। उनके पक्ष में खड़े देश या उनके माध्यम से अपना कूटनीतिक हित साधने वाले देश भी संयुक्त राष्ट्र संगठन जिसका इंटरपोल एक अंग है पर नोटिस जारी न करने के लिये भी दबाव डालते हैं। ज़ाकिर नायक के साथ भी यही बात है। ऐसे में कूटनीतिक तन्त्र की यह लॉबिंग काम आती है । यह काम एनआईए का नही है। यह काम विदेश मंत्रालय का है। नोटिस न जारी होना भी एक प्रकार से हमारी कूटनीति की कमी ही मानी जायेगी।
एनआईए के मुताबिक जाकिर के ख़िलाफ़ रेड कॉर्नर नोटिस इसलिए जारी नहीं किया गया क्योंकि जब अपील की गई तब जाकिर पर चार्जशीट फाइल नहीं हुई थी. अब एनआईए नए सिरे से नोटिस जारी करने की अपील करेगा क्योंकि मुंबई कोर्ट में जाकिर के खिलाफ आरोप पत्र दायर हो चुका है। उल्लेखनीय है कि नाइक एक जुलाई, 2016 को तब भारत से भाग गया था जब पड़ोसी देश बांग्लादेश में आतंकवादियों ने दावा किया कि वे जेहाद शुरू करने को लेकर उसके भाषणों से प्रेरित हुए थे ।
© विजय शंकर सिंह
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