वेद में जिनका हवाला हाशिये पर भी नहीं
वे अभागे आस्था विश्वास लेकर क्या करें
लोकरंजन हो जहां शम्बूक-वध की आड़ में
उस व्यवस्था का घृणित इतिहास लेकर क्या करें
कितना प्रतिगामी रहा भोगे हुए क्षण का इतिहास
त्रासदी, कुंठा, घुटन, संत्रास लेकर क्या करें
बुद्धिजीवी के यहाँ सूखे का मतलब और है
ठूंठ में भी सेक्स का एहसास लेकर क्या करें
गर्म रोटी की महक पागल बना देती मुझे
पारलौकिक प्यार का मधुमास लेकर क्या करें !!
( अदम गोंडवी )
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अदम गोंडवी का मूल नाम रमानाथ सिंह था। वह गोंडा जिले के आटा गांव में 22 अक्टूबर 1947 को एक साधारण किसान परिवार में पैदा हुये थे । पारिवारिक पृष्ठभूमि कमजोर होने के कारण केवल प्राइमरी तक की शिक्षा पाने के बाद उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। बचपन से ही कवितापाठ की ओर उनका झुकाव था। वह आसपास के मुशायरों व कवि सम्मेलनों में जाने लगे। उन्होंने तीन रचनाएं लिखीं। वर्ष 2011 में 18 दिसबंर को उनका निधन हो गया। उन्हें 1998 में दुष्यंत कुमार पुरस्कार, नोएडा से नागरिक सम्मान, माटी रत्न पुरस्कार मिल चुका है।
अदम गोंडवी को साहित्य के आलोचक दुष्यंत कुमार के अधिक निकट पाता है। उन्होंने वर्तमान व्यवस्था के यथार्थ को स्वर देते हुए उसके खिलाफ विद्रोह की कविता लिखी। अदम की शायरी सुकई, मंगरे, झुम्मन घिसियावन से बतियाती हुई बगावत का बिगुल बजाते हुए संसद को ललकारती है। इसलिए वह कहते हैं कि 'जनता के पास एक ही चारा है बगावत'। कुल मिलाकर अदम जनता का कवि है। उन्होंने न केवल शायरी की बल्कि शायरी को जिया भी है। वह एक महान रचनाकार थे ।
© विजय शंकर सिंह
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