Tuesday, 30 August 2022

मिखाइल गोर्बाचेव का निधन / विजय शंकर सिंह

मिखाईल गोर्बाचोव, वह व्यक्ति थे, जिन्हे, जिन्हे पश्चिमी यानी अमेरिकी ब्लॉक ने सिर्फ इसलिए महिमामंडित किया था, कि, उन्होंने सोवियत रूस को विखंडित कर दिया था, और दो ध्रुवीय दुनिया अचानक एक ध्रुवीय हो गई। उनके बाद, मार्क्सवाद या समाजवादी व्यवस्था पर पूंजीवादी खेमे की तरफ से तरह तरह के सवाल उठाए गए और समाजवाद के खात्मे की बात भी कही गई। पर मार्क्सवाद, जिन समस्याओं के उपचार या निदान की बात करता है, जब तक वे समस्याएं, समाज और जनता में व्याप्त रहेंगी, तब तक मार्क्सवाद कभी भी अप्रासंगिक नहीं होगा, और पूंजीवाद, उन समस्याओं का स्वाभाविक कारक है। इसे पूंजीवाद भी जानता और समझता है। 

अमेरिका के किसी शहर के पिज्जा हट में, स्वादिष्ट पिज्जा का लुत्फ लेते हुए मिखाईल गोर्बाचोव की यह तस्वीर 1997 की है, जब रूस में बेतहाशा खाने पीने की दिक्कत हो गई थी, अमेरिकी ब्लॉक के षड्यंत्रों से सोवियत रूस की आर्थिकी बेहद संकट में थी। इसे "शॉक थेरेपी" भी तब कहा गया था। शीत युद्ध खत्म हो चुका था और अमेरिका दुनिया का दारोगा बन चुका था। पूंजीवाद का वह एक सुनहरा काल था। जहां तक मैं देखता हूं, वहां तक मेरा ही साम्राज्य है का भाव, अमेरिका पर तारी था। पर उसे भी लंबे समय तक ऐसे ही निर्द्वंद्व और चुनौतीविहीन नहीं रहना था और अब वह भी चुनौतियां झेल रहा है। अब वह दरकने भी लग गया है। 
 
गोर्बाचोव का आकलन करते हुए, चीन के कम्युनिस्ट पार्टी के नेता, देंग शियाओपिंग से कभी कहा था, 
"यह आदमी स्मार्ट लग सकता है, लेकिन वास्तव में बेवकूफ है।"

सोवियत रूस के विखंडन में मिखाईल गोर्बाचोव की क्या भूमिका थी, क्या वे सीआईए द्वारा प्लांट किए गए थे, क्या ग्लासनोस्ट समय की जरूरत थी, क्या रूस का लम्बे समय से शीत युद्ध में फंसे रहना, भी इसका एक कारण है, क्या सोवियत रूस ने अमेरिकी प्रतिस्पर्धा में लोककल्याण के विभिन्न जरूरी कार्यों की तुलना में अपने संसाधनों का गलत दिशा में उपयोग किया, या मार्क्सवाद की वह वैचारिक विफलता थी, आदि आदि सवाल, गोर्बाचोव और सोवियत विखंडन के संदर्भ में उठते रहेंगे। इनपर लेख किताबें लिखी गई हैं। आगे भी लिखी जाती रहेंगी। मत मतांतर भी होंगे। 

इतिहास, छोड़ता किसी को भी नहीं है। सबका मूल्यांकन करता रहता है और यह एक सतत प्रक्रिया है। पर आज सिर्फ इतना ही। मृत्यु चरम सत्य है। उन्हे शांति मिले। श्रद्धांजलि। 

(विजय शंकर सिंह)

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