सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके अवैध निगरानी के आरोपों की जांच कर रही स्वतंत्र समिति द्वारा प्रस्तुत सीलबंद रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर रख लिया है। पेगसस जासूसी मामले में, सुप्रीम कोर्ट की जाँच कमिटी ने आज अदालत में कहा है,
1. 5 फोन में मालवेयर मिला है।
2. केंद्र सरकार जाँच में सहयोग नहीं कर रही है।
आखिरकार,
1. मालवेयर क्यों और किसने डाला? यह तो पता चलना चाहिए
2. मोदी सरकार, पेगासस मामले में सहयोग क्यों नहीं कर रही है?
सीजेआई, एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि,
"भारत सरकार ने समिति के साथ, जांच में, सहयोग नहीं किया और सरकार ने उसी प्रकार का रुख दिखाया जो उसने न्यायालय के समक्ष, सुनवाई के समय, दिखाया था, जब, उसने इस बात का कोई स्पष्ट उत्तर देने से इनकार कर दिया था कि, स्पाइवेयर खरीदा गया था या नहीं।"
CJI रमना ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा,
"एक बात समिति ने कहा है, भारत सरकार ने सहयोग नहीं किया है। आपने यहां जो स्टैंड लिया, वही आपने वहां रखा है।"
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है।
पीठ ने यह भी कहा कि
"तकनीकी समिति ने 29 में से 5 उपकरणों, मोबाइल फोन में मैलवेयर पाया है, जो उनके पास जांच के लिए जमा किए गए थे। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि, पाया गया मैलवेयर वास्तव में पेगासस था या कुछ और। इसके अलावा, जिन सदस्यों ने अपने फोन जमा किए थे, उन्होंने रिपोर्ट जारी नहीं करने का भी अनुरोध किया था। इस प्रकार, सुप्रीम कोर्ट ने रिपोर्ट को सार्वजनिक डोमेन में लाने के लिए अपनी अनिच्छा व्यक्त की है और कहा है कि वह इस पर विचार करेगा कि क्या एक संशोधित संस्करण उपलब्ध कराया जा सकता है।"
पीठ ने हालांकि कहा कि वह पर्यवेक्षण न्यायाधीश, न्यायमूर्ति आरवी रवींद्रन द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के उस अंश को प्रकाशित करेगी, जिनमें, नागरिकों की सुरक्षा, भविष्य की कार्रवाई, जवाबदेही, गोपनीयता संरक्षण में सुधार के लिए कानून में संशोधन, शिकायत निवारण तंत्र आदि पर सुझाव प्रस्तुत किए।
सीजेआई रमना ने कहा,
"यह एक बड़ी रिपोर्ट है, देखते हैं कि हम कौन से हिस्से सार्वजनिक कर सकते हैं... यह सब तकनीकी मुद्दे हैं। जहां तक रवींद्रन की रिपोर्ट है, हम वेबसाइट पर अपलोड करेंगे।"
तकनीकी समिति ने 3 भागों में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इसमें मैलवेयर, सार्वजनिक शोध सामग्री, निजी मोबाइल उपकरणों से निकाली गई सामग्री जिसमें गोपनीय जानकारी हो सकती है आदि के बारे में जानकारी शामिल है। इस प्रकार, समिति ने आगाह किया है कि रिपोर्ट गोपनीय है और सार्वजनिक वितरण के लिए नहीं है। समिति के प्रश्नों पर प्राप्त प्रतिक्रियाओं वाली एक फाइल भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ इजरायली स्पाईवेयर पेगासस का उपयोग कर पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और राजनेताओं की लक्षित निगरानी के आरोपों की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही थी। अक्टूबर 2021 में, कोर्ट ने मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ पैनल का गठन किया था। न्यायालय ने प्रथम दृष्टया यह पता लगाने के बाद जांच समिति का गठन किया कि याचिकाकर्ताओं ने एक मामला स्थापित किया है और केंद्र सरकार, उस मामले में स्पष्ट पक्ष रखने में विफल रही है।
"हवा में लाठी भांजने से, कोई मसला हल नहीं होगा।"
पेगासस मामले में केंद्र से सुप्रीम कोर्ट ने कहा। स्वतंत्र भाषण और प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व पर जोर देते हुए और अनधिकृत निगरानी के बारे में चिंता व्यक्त करते हुए, सीजेआई, एनवी रमना के नेतृत्व वाली पीठ ने कहा कि राज्य द्वारा उठाए गए राष्ट्रीय सुरक्षा के आधार, न्यायिक समीक्षा को पूरी तरह से बाहर और खारिज नहीं कर सकते हैं।
केंद्र सरकार ने यह बताते हुए कि क्या यह एक राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दा था, पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल किया गया था, यह खुलासा करने से इनकार कर दिया था। केंद्र के बचाव को खारिज करते हुए, कोर्ट ने कहा कि केवल राष्ट्रीय सुरक्षा का आह्वान करने से राज्य को कुछ भी करने की आजादी नहीं मिल जाती। कोर्ट ने केंद्र के इस प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया कि, वह यह कहकर तकनीकी समिति बना सकती है कि निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र समिति की जरूरत है।
पेगासस विवाद, 18 जुलाई को द वायर और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रकाशनों द्वारा मोबाइल नंबरों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित करने के बाद शुरू हुआ, जो भारत सहित विभिन्न सरकारों को एनएसओ कंपनी द्वारा दी गई, स्पाइवेयर सेवा के संभावित लक्ष्य थे। द वायर के अनुसार, 40 भारतीय पत्रकार, राहुल गांधी जैसे राजनीतिक नेता, चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, ईसीआई के पूर्व सदस्य अशोक लवासा आदि को निगरानी टारगेट की सूची में बताया गया है।
खबर का स्रोत, लाइव लॉ।
(विजय शंकर सिंह)
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