(1) विनायक दामोदर सावरकर ने साफ कहा था कि हिन्दू वह है जो सिंधु नदी से लेकर सिंधु अर्थात समुद्र तक फैले भू भाग को अपनी पितृभूमि मानता है और उनके रक्त का वंशज है। जो उस जाति या समुदाय की भाषा संस्कृत का उत्तराधिकारी है और अपनी धरती को पुण्य भूमि समझता है। जहां उसके पूर्वज, दार्शनिक, विचारक, ऋषि और गुरु पैदा हुए हैं। हिन्दुत्व के प्रमुख लक्षण हैं एक जाति और एक संस्कृति।
गोलवलकर ने तो अपनी पुस्तक ‘‘वीः अवर नेशनहुड डिफाइंड‘‘ में यहां तक कहा कि हमारा एकमात्र लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र के जीवन को उच्चता और उज्जवलता के शिखर पर बैठाना है। वे ही राष्ट्रवादी हैं, देशभक्त हैं जो हिन्दू जाति को गौरव प्रदान करने के उद्देश्य से अपनी गतिविधियों में संलग्न हैं। बाकी सब लोग दगाबाज़ और राष्ट्र के शत्रु हैं। इस दृष्टि से हिन्दुस्तान के गैर हिन्दू लोगों को हिन्दू संस्कृति और भाषा स्वीकार करनी होगी। उन्हें हिन्दू धर्म के प्रति सश्रद्ध होना होगा। उन्हें और किसी आदर्श को नहीं अपनाना है लेकिन वे इस देश में हिन्दू राष्ट्र के मातहत बिना कोई मांग या सुविधा के साथ रह सकते हैं। उन्हें किसी तरह की प्राथमिकता यहां तक कि नागरिक के भी अधिकार नहीं मिलेंगे। आश्चर्यजनक रूप से एक मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने भी हिन्दुत्व की परिभाषा स्थिर करने में इस पूरी पृष्ठभूमि का खुलासा नहीं किया जिसमें यहां तक कहा गया था कि पहला हिन्दू राज्य महाराष्ट्र में स्थापित होगा।
(2) विनायक दामोदर सावरकर को भारत रत्न देने का मौजूदा केन्द्र सरकार का इरादा बहुमत के कारण तो कभी भी लागू हो सकता है। बशर्ते उसका वोट बैंक बढ़े। जो शिवसेना के कारण महाराष्ट्र में चुनाव के वक्त नहीं हो पाया। सावरकर ने ही हिन्दू धर्म की अपनी ढपली, अपना राग जैसे ‘हिंदुत्व‘ शब्द का आविष्कार किया। युवावस्था में ही मिली तकलीफदेह जेल यातनाओं के भी कारण बर्बर गोरी हुकूमत को लगातार माफीनामे लिखते लिखते कैद से बरी तो हो गए। लेकिन आज़ादी के कई बरस बाद तक बर्तानवी हुकूमत को दिए गए लिखित वायदे के कारण उसके खिलाफ मुंह तक नहीं खोला। ऐसा करते तो माफीनामे का कलंक धुलता तो नहीं लेकिन धुंधला हो सकता था। यही आरोप भी उन पर लगाया जाता है। विवादों की पृष्ठभूमि से अलग हटकर राष्ट्रपिता की सयानी गरिमामय बुद्धि की नज़र से सावरकर की भूमिका और उनके विचारों के असर को तटस्थ भाषा में समझना मुनासिब होगा। गांधी की हत्या को लेकर सावरकर पर लगा आरोप सबूतों के अभाव में तकनीकी साक्ष्य संहिता के कारण भले ही सिद्ध नहीं हो पाया हो।
(3) श्यामजीकृष्ण वर्मा और सावरकर सहित कई हिंसा समर्थक भारतीयों से एक सभा में लन्दन में हिंदुओं के आराध्य राम के जीवन के मूल संदेश को खोजने लम्बी बहस हुई। फकत राक्षसों की हिंसा तक सीमित नहीं कर उसके बनिस्बत लोकतंत्र के आदर्श आयामों के आधार पर रामराज्य स्थापित करने की बात गांधी ने सावरकर की सम्मान सभा में कही। सभा की अध्यक्षता करने वहां और कोई तैयार नहीं हुआ था। अंगरेज हुक्कामों से भी बहस मुबाहिसे में गांधी को नाउम्मीदी मिली थी। खिन्न और निराश गांधी ने अंतर में अकुलाते कड़वे पराजित अवसाद को बुद्धिजीविता की रचनाशीलता में मुखर किया।
दक्षिण अफ्रीका लौटते 13 नवंबर से 22 नवंबर, 1909 तक ‘एस0एस0 किल्डोनन कैसल‘ नामक पानी के जहाज पर गुजराती में ‘हिन्द स्वराज्य‘ बीजग्रंथ बारी बारी से दोनों हाथों से लिख डाला। भारत सहित पूरी दुनिया के लिए राजनीतिक फलसफा के फलक को वह पुस्तिका नायाब, मौलिक, अनोखी और विचारोत्तेजक देन हुई।
(4) सावरकर द्वारा आश्वस्त कर दिए जाने पर लगभग हमउम्र युवा मदनलाल धींगरा ने अंगरेज अधिकारी सर कर्जन वाइली की लंदन में सरेआम हत्या कर दी। सावरकर पर कुछ और हिंसक कारनामों के लिए फ्रांस से जुगाड़कर हथियार भेजने का आरोप भी लगा था।
इस पर खुद गांधी का लिखा विवरण पढ़ना बेहतर है ‘‘वे काफी समय तक लन्दन में रहे। यहां उन्होंने भारत की आजादी के लिए एक आन्दोलन चलाया। वह एक वक्त में ऐसी हालत में पहुंच गया कि सावरकर पेरिस से भारत को बन्दूकें आदि भेजने लग गए थे। पुलिस की निगरानी से भाग निकलने की उनकी सनसनी फैला देने वाली कोशिश और जहाज के झरोखे से उनका फ्रांसीसी समुद्र में कूद पड़ना भी हुआ। नासिक के कलेक्टर श्री ए.एम. टी. जैक्सन की हत्या के सिलसिले में उन पर यह आरोप लगाया गया था कि जिस पिस्तौल से जैक्सन की हत्या की गई, वह सावरकर द्वारा लन्दन से भेजी गई पिस्तौलों में से एक थी।......सन् 1857 के सिपाही विद्रोह पर उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी, जो जब्त कर ली गई है। सन् 1910 में उन पर मुकदमा चलाया गया और 24 सितम्बर, 1910 को उन्हें वही सजा दी गई जो उनके भाई को दी गई थी। सन् 1911 में उन पर लोगों को हत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया। लेकिन इनके विरुद्ध भी किसी प्रकार की हिंसा का आरोप सिद्ध नहीं हो पाया।‘‘
(5) यह अलग बात है कि इसके बाद सावरकर ने लगातार ताबड़तोड़ माफीनामे लिखकर अंगरेज सल्तनत से अपनी रिहाई मांगी। उन्हें अंततः अन्दमान की कठिन जेल सजा से 1921 और 1924 में निजात भी मिली। राजनीतिक घटनाएं जनयुद्ध के योद्धा गांधी की माइक्रोस्कोपिक और टेलेस्कोपिक नज़रों से ओझल नहीं होती थीं। दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे गांधी 1920 में तिलक के निधन के बाद कांग्रेस के सर्वमान्य नेता हो गए। कभी कभार पार्टी की सदस्यता और पद पर नहीं रहकर भी कांग्रेस के सलाहकार की भूमिका में सक्रिय रहते गांधी का फैसला संगठन को अमूमन कुबूल होता था।
(जारी )
कनक तिवारी
(Kanak Tiwari)
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