Saturday, 5 December 2020

पंजाब और हरियाणा जैसा खुशहाल किसान, देश के अन्य राज्यो में भी क्यों न हो ? / विजय शंकर सिंह

अक्सर यह बात कही जाती है कि, पंजाब, हरियाणा का किसान खुशहाल है। वे एक बेहतर जीवन जीते हैं। वे जम कर खाते पीते हैं। होमसिकनेस जैसी कोई चीज उनके मन या समाज मे नहीं होती है। वे मेहनती भी होते हैं। उनकी खेती आधुनिक है और खेती को बोझ समझ कर नही, जीवन और संस्कृति का अंग समझ कर करते हैं। मैं उत्तर प्रदेश, और वह भी पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक जिले वाराणसी से हूं, तो हमारे यहां खेती का वह स्वरूप नही है जो पंजाब, हरियाणा या पश्चिम उत्तर प्रदेश के जिलों में है। हमारे यहां जोत भी कम है, और अक्सर खेतिहर मजदूरों की कमी भी रहती है। जबकि पंजाब में हमारे और बिहार के इलाके से गाड़ी भर भर के मज़दूर पंजाब जाते हैं। वे वहां खेती करते हैं। मैंने पंजाब का गांव वहां जा कर और उनके बीच रह कर नही देखा है। मेरी इच्छा है किसी पंजाबी गांव में जा कर कुछ दिन उनके परिवार में बिताने की। यूं तो पंजाब घूमा है मैंने, पर बस शहरों में। गांव को सड़कों से ही देखा है। पर वहां की जीवंतता के किस्से बहुत सुने हैं। 

अब सवाल उठता है, आखिर पंजाब के किसान खुशहाल क्यों है ? इसका उत्तर तो पंजाब के कृषक जीवन को नजदीक से देखने वाले ही दे पाएंगे। पर जो कुछ अब समझ मे आ रहा है उसका कारण है खेती के लिये सिंचाई, अधुनातन व्यवस्था, और सरकार द्वारा मंडियों का जाल बिछा कर कृषि उत्पाद की खरीद। पंजाब और हरियाणा में सरकारी खरीद बहुत होती है। वहां उपज भी अच्छी होती है और खेती को वे केवल अपने घर परिवार के खाने भर के अनाज उपजाने तक ही केन्दित नहीं रखते हैं, बल्कि उसे बेचते हैं, निर्यात भी करते हैं और इससे धन भी कमाते हैं। सरकारी मंडी,एपीएमसी और एमएसपी पर शांता कुमार की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि, केवल 6% लोगों को एमएसपी की सुविधा मिलती है। यह कमेटी, सरकारी गोदामो की अकुशलता को तो बताती है पर किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य कैसे मिले, इस पर कुछ नहीं कहती है। बिहार राज्य में 2006 से ही सरकारी खरीद बंद है। अब बिहार और पंजाब के किसानों की आर्थिक हालत और खुशहाली से आप एमएसपी और सरकारी मंडी के महत्व का अनुमान लगा सकते हैं। जहां जहां मंडी और सरकारी खरीद की सुविधा उत्तम है, वहां के किसान खुशहाल है। वे इस बात से निश्चिंत हैं कि, उन्हें अपनी फसल का कम से कम न्यूनतम मूल्य तो मिल रहा है। और यह खरीद सरकार कर रही है। ध्यान दीजिए, अगर यह न्यूनतम मूल्य है जो सरकार तय करती है और इससे अधिक मूल्य देकर भी कोई संस्था फसल खरीदना चाहे तो खरीद सकती है। 

लेकिन जहां के किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं पा रहे हैं, वे अपनी फसल बाजार और बिचौलियों द्वारा तय किये दर से बेच रहे है। क्या सरकार को उन्हें संरक्षण नहीं देना चाहिए ? 94% किसान जो शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार एमएसपी की सुविधा से वंचित है, उनके लिये सरकार को क्या यह नहीं सोचना चाहिए कि जो खुशहाली पंजाब और हरियाणा के किसानों में इसी एमएसपी और सरकारी मंडियों के द्वारा आ रही है, वैसी ही खुशहाली देश के अन्य इलाक़ो के किसानों को भी मिले ? उनका भी तो जीवन खुशहाल हो। यह बात उन 94% किसानों को बताई जानी चाहिए और उन्हें सरकार के मंडी तंत्र के विस्तार के लिये सरकार पर दबाव डालना चाहिए। 

पर सरकार, एफसीआई ( फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया ) जो अनाज का भंडारण करता है को भी निजी क्षेत्रों में देने जा रही है। एफसीआई के सारे गोदाम, मय ज़मीनों के कॉरपोरेट के हांथो चले जायेंगे। सरकार इसे सुधार कहती है, पर असल मे यह सुधार नहीं, देश के कृषि व्यवस्था और एक प्रकार से पूरी ग्रामीण संस्कृति की बर्बादी है। यह हाराकिरी है। सरकार, अपनी सरकारी मंडियों के समानांतर निजी और कॉरपोरेट की मंडियां खड़ी करने जा रही है। अडानी ग्रुप ने अपने गोदाम, मध्यप्रदेश और पंजाब में बना भी लिये है। निश्चित ही सरकार के भंडारण गोदामो की अपेक्षा वे बड़े, आधुनिक और बेहतर गोदाम होंगे। अब तो जमाखोरी भी अपराध नहीं रही और इसकी कोई सीमा ही नहीं रखी गयी। एक प्रकार से जमाखोरी को, आवश्यक वस्तु अधिनियम ईसी एक्ट को खत्म कर के सरकार ने कॉरपोरेट को जमाखोरी करने तथा मांग पूर्ति के अनुसार, बाजार  भाव बढ़ाने और घटाने का पूरा अधिकार दे दिया है। अब किसान और उपभोक्ता दोनो ही इन जमाखोरों और कॉरपोरेट के रहमो करम पर छोड़ दिये गए हैं।

सरकार ने एक और लाभ कॉरपोरेट को दिया है। वह है निजी मंडियों को करो से राहत। एक तरफ सरकार अपनी मंडियों पर तो टैक्स वसूल रही है पर कॉरपोरेट के मंडियों को सरकार ने टैक्स फ़्री कर दिया है। सरकार मंडियों पर जो टैक्स वसूलती है, उससे गांव की सड़कें तथा अन्य विकास कार्य होते है। जब मंडी सिस्टम कमज़ोर हो जाएगा तो सरकार की कर वसूली भी कम हो जाएगी। इसका सीधा असर, ग्राम और आसपास के स्थानीय विकास पर पड़ेगा। निजी क्षेत्र तो फसल खरीदेगा, जमाखोरी करेगा, और उसका तो समग्र विकास से कोई मतलब ही नहीं रहेगा। इससे ग्रामीण क्षेत्र की खुशहाली पर असर पड़ेगा और एक विपन्नता की ओर ग्रामीण समाज बढ़ने लगेगा। इसका एक परिणाम, खेती से किसान का मोहभंग होने लगेगा और जब खेती लाभ तथा खुशहाली नहीं दे पाएगी तो, खेती में कॉरपोरेट घुसेंगे और ग्रामीण आबादी का शहरों की ओर व्यापक पलायन होगा। कॉरपोरेट यही चाहते हैं और सरकार यही उन्हें सुलभ करा रही है। 

यह वही शातिर चाल है जब, भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) को 4G का लाइसेंस तक नहीं दिया गया, उसे निकम्मा, अकुशल और भ्रष्ट बन जाने दिया गया, ताकि मुकेश अम्बानी का जिओ अपना एकाधिकार बीएसएनएल के संसाधनों में घुसपैठ कर बना सके। और जिओ ने ऐसा एकाधिकार बनाया भी। इसी तरह, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ( एचएएल ) को राफेल सौदे से सबसे उपयुक्त होते हुए भी, केवल दिवालिया अनिल अंबानी को ठेका दिलाने के लिये बाहर कर दिया गया। सबसे दुःखद पक्ष यह है कि सरकार के इस षडयंत्र में न्यायपालिका भी शामिल रही है। रंजन गोगोई को यूं ही नही राज्यसभा की सदस्यता प्रदान की गयी है। उच्चतम स्तर पर, क्विड प्रो क्वॉ यानी परस्पर हितैषी सौदेबाजी का यह एक निकृष्ट उदाहरण है। इसी प्रकार, धीरे धीरे कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार और अन्य प्रशासनिक विफलता के बहाने से सरकारी मंडियां भी कम होती जाएगी। सरकार बजट का रोना भी रोयेगी। एमएसपी कागज़ पर रहेगी। पर जब सरकार के गोदाम और मंडी सिस्टम लुंज पुंज हो जायेंगे तब सरकार खरीद कैसे करेगी, अनाज रखेगी कहाँ और एमएसपी देगी कैसे ? यह भी होगा कि, कॉरपोरेट जिओ के फ्री ऑफर की तरह फसल के दाम  भी कुछ समय के लिये अधिक दे दे, पर अंत मे यह सब शिकार के हांके की तरह होगा औऱ कॉरपोरेट का दैत्य पसरता जाएगा। 

इसमे दो राय नही है कि सरकारी तंत्र में कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार है। पर इसका निदान तो कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार को दूर करना है न कि उस तंत्र को ही अपने चहेते पूंजीपति मित्रो को सौंप देना है। सरकार यही कर रही है। अगर यह सवाल पूछ लिया जाय कि, सरकार ने एफसीआई के भ्रष्टाचार को दूर करने के लिये कितनी जांचे कराई और विगत 10 सालों में कितने अफसरों के खिलाफ कार्यवाही हुयी तो उसका उत्तर जब मिलेगा तो, इससे स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। 

सरकार एपीएमसी और एमएसपी के सिस्टम को जिसने पंजाब के समाज और खेती में खुशहाली लाई है, को देश के अन्य राज्यो में भी तो ले आये ? यह तो अजीब मूर्खता है कि वहां के किसान खुशहाल हैं तो उनकी भी खुशहाली छीन कर कॉरपोरेट को उनकी खुशी का हिस्सा दे दिया जाय। आज जो दिल्ली सीमा पर यह सबल आंदोलन हो रहा है, उसका कारण, पंजाब, हरियाणा, और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों की खुशहाली और संपन्नता ही है। ऐसी ही खुशहाली देश के अन्य राज्यो के किसानों के जीवन मे भी तो आये। पंजाब के किसान खुशहाल है और और राज्यों के किसानों को भी तो खुशहाल जीवन जीने का हक़ है। अगर सरकार यह सोचती है कि निजी क्षेत्र औऱ कॉरपोरेट किसान का जीवन खुशहाल बनाएंगे तो यह उसका भ्रम है। हालांकि सरकार भ्रम में नहीं है। वह आज कॉरपोरेट का एजेंडा ही पूरा कर रही है। आप को संशय हो तो हो, मुझे सरकार की नीयत पर कोई संशय नहीं है। 

आज कॉरपोरेट विरोधी दिवस मनाया जा रहा है और साथ ही आज सरकार, किसानों से बात भी कर रही है। हमे उम्मीद करनी चाहिए कि, सरकार यह तीनों कृषि कानून वापस लेगी और अगर किसी प्रकार के कृषि सुधार की ज़रूरत है तो वह किसान संगठनों को विश्वास में लेकर आगे बढ़ेगी। सोशल मीडिया पर आदिवासी दर्शन पेज  ने कुछ सवाल उठाए है, उन्हें पढ़ना और उनके उत्तर ढूंढना समीचीन होगा। आप सब ताजा ताजा बने तीन कृषि कानूनों के समर्थकों से निम्न 15 सवाल जरूर पूछिये। 

● अगर सरकार की एमएसपी को लेकर नीयत साफ है तो वो मंडियों के बाहर होने वाली ख़रीद पर किसानों को एमएसपी की गारंटी दिलवाने से क्यों इंकार कर रही है?
● एमएसपी से कम ख़रीद पर प्रतिबंध लगाकर, किसान को कम रेट देने वाली प्राइवेट एजेंसी पर क़ानूनी कार्रवाई की मांग को सरकार खारिज क्यों कर रही है?
● कोरोना काल के बीच इन तीन क़ानूनों को लागू करने की मांग कहां से आई? ये मांग किसने की? किसानों ने या औद्योगिक घरानों ने?
● देश-प्रदेश का किसान मांग कर रहा था कि सरकार अपने वादे के मुताबिक स्वामीनाथन आयोग के सी-2 फार्मूले के तहत एमएसपी दे, लेकिन सरकार ठीक उसके उल्ट बिना एमएसपी प्रावधान के क़ानून लाई है। आख़िर इसके लिए किसने मांग की थी?
● प्राइवेट एजेंसियों को अब किसने रोका है किसान को फसल के ऊंचे रेट देने से? फिलहाल प्राइवेट एजेंसीज मंडियों में एमएसपी से नीचे पिट रही धान, कपास, मक्का, बाजरा और दूसरी फसलों को एमएसपी या एमएसपी से ज़्यादा रेट क्यों नहीं दे रहीं ?
● उस स्टेट का नाम बताइए जहां पर हरियाणा-पंजाब का किसान अपनी धान, गेहूं, चावल, गन्ना, कपास, सरसों, बाजरा बेचने जाएगा, जहां उसे हरियाणा-पंजाब से भी ज्यादा रेट मिल जाएगा? 
● सरकार नए क़ानूनों के ज़रिए बिचौलियों को हटाने का दावा कर रही है, लेकिन किसान की फसल ख़रीद करने या उससे कॉन्ट्रेक्ट करने वाली प्राइवेट एजेंसी, अडानी या अंबानी को सरकार किस श्रेणी में रखती है- उत्पादक, उपभोक्ता या बिचौलिया?
● जो व्यवस्था अब पूरे देश में लागू हो रही है, लगभग ऐसी व्यवस्था तो बिहार में 2006 से लागू है। तो बिहार के किसान इतना क्यों पिछड़ गए?
● बिहार या दूसरे राज्यों से हरियाणा में धान जैसा घोटाला करने के लिए सस्ते चावल मंगवाए जाते हैं। तो सरकार या कोई प्राइवेट एजेंसी हमारे किसानों को दूसरे राज्यों के मुकाबले मंहगा रेट कैसे देगी?
● टैक्स के रूप में अगर मंडी की आय बंद हो जाएगी तो मंडियां कितने दिन तक चल पाएंगी?
● क्या रेलवे, टेलीकॉम, बैंक, एयरलाइन, रोडवेज, बिजली महकमे की तरह घाटे में बोलकर मंडियों को भी निजी हाथों में नहीं सौंपा जाएगा?
● अगर ओपन मार्केट किसानों के लिए फायदेमंद है तो फिर "मेरी फसल मेरा ब्योरा" के ज़रिए क्लोज मार्केट करके दूसरे राज्यों की फसलों के लिए प्रदेश को पूरी तरह बंद करने का ड्रामा क्यों किया?
● अगर हरियाणा सरकार ने प्रदेश में 3 नए कानून लागू कर दिए हैं तो फिर मुख्यमंत्री खट्टर किस आधार पर कह रहे हैं कि वह दूसरे राज्यों से हरियाणा में मक्का और बाजरा नहीं आने देंगे?
● अगर सरकार सरकारी ख़रीद को बनाए रखने का दावा कर रही है तो उसने इस साल सरकारी एजेंसी एफसीआई की ख़रीद का बजट क्यों कम दिया? वो ये आश्वासन क्यों नहीं दे रही कि भविष्य में ये बजट और कम नहीं किया जाएगा?
● क्या राशन डिपो के माध्यम से जारी पब्लिक डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम, ख़रीद प्रक्रिया के निजीकरण के बाद अडानी-अंबानी के स्टोर के माध्यम से प्राइवेट डिस्ट्रीब्युशन सिस्टम बनने जा रहा है।

एक बात हम सबको साफ समझ लेना चाहिए कि, यह तीनों कृषिकानून, सरकारी राशन की दुकान, पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम, खाद्य सुरक्षा कानून, गरीबों के लिये चलाई जाने वाली सस्ते अनाज की तमाम योजनाएं धीरे धीरे खत्म कर देंगी। किसान और खेतिहर मजदूर दोनो ही बर्बाद हो जाएंगे। 

( विजय शंकर सिंह )

1 comment:

  1. बेहद शानदार और विचारोतेज्जक!

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