Monday, 28 December 2020

शब्दवेध (48) सभी द्रव पानी हैं

जब रंग, प्रकाश और आग पानी हो सकते है तो सभी द्रव पानी हों, यहाँ तक कि सभी आर्द्र पदार्थ पानी हों, इसमें हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए।   परेशानी यह सोच कर होती है कि  भाषा का काम है फर्क करना-  विष और अमृत दोनों को पानी तो नहीं कहा जा सकता।  

यह सही है  कि  विशेष शब्दों को  इनके लिए रूढ़ कर दिया गया, परंतु उसके बाद इनका प्रयोग पानी के लिए तो नहीं होना चाहिए था।  ऐसा है,  पर क्यों है,  इसे समझना, भाषा की कुछ बुनियादी समस्याओं को समझने जैसा है। यह  वाक् (language), व्यावहारिक भाषा या जबान (vernacular), तकनीकी भाषा (jargon), वाणी (ideolect) के जटिल संबंधों की समस्या है। यह, सच कहें तो, भाषा की समस्या न हो कर पारस्परिक संपर्क में आने वाले समुदायों की समस्या है जो एक  ही भाषा नहीं बोलते फिर भी आर्थिक, प्रशासनिक और सांस्कृतिक कारणों से न्यूनाधिक जुड़े रहते हैं और जहाँ एक ही भाषा बोलते दिखाई देते हैं वहाँ भी सामाजिक हैसियत, आर्थिक औकात, पेशे, रुचि यहाँ  तक कि वय और लैंगिकता के आधार पर अलग अलग भाषाएं बोलते हैं 

इस लिए बहुत सारे परिवर्तन उनके अपने दायरे में होते हैं जिनसे शेष समाज अछूता रह जाता है। इनमें कुछ, जिनमें जान होती है, धीरे धीरे छन कर, सभी स्तरों तक पहुँचते और स्वीकार कर लिए जाते है परंतु यह यात्रा  अधूरी रह जाती है।  इसका उल्लेख मात्र यह स्पष्ट करने के लिए किया कि साहित्यिक भाषा, यहाँ तक कि संस्कृत जैसी नियंत्रित और निखोट मान ली जाने वाली भाषा तक में रूपावली से ले कर लिंग आदि  के अनियमित प्रयोग क्यों होते रहे, इसे भी इस तर्क से ही समझा जा सकता है। हम इस जटिल विषय की पड़ताल में नहीं जाएँगे। हमारा उद्देश्य केवल इतने से सिद्ध हो जाता है कि अनियमितताओं का भी अपना तर्क होता है।

पानी के कितने पर्याय हो सकते हैं  इसकी गणना असंभव है।  भाषा कहती है, ‘मैं मनुष्यों आवेगो और विचारों से   भर देती है, मेरा प्रवेश धरती और आकाश सभी में  है - अहं जनाय समदं कृणोमि अहं द्यावापृथिवी आ विवेश और  ‘मेरी उत्पत्ति जल से है’ - मम योनिः अप्सु अन्तः समुद्रे। समस्त नाम,  जल के नाम।    परंतु द्रव पदार्थों की गणना संभव है  और समस्या यहां भेद  और अभेद की है।  विशिष्ट कार्यों और वस्तुओं में रूढ  हो जाने के बाद भी उन शब्दों के जल वाचक बने रहने में है।

नून  का प्रयोग लवण  के लिए होने के बाद जल के लिए या किसी ऐसे भाव और विचार जिससे जल की याद आए, इसका प्रयोग नहीं होना चाहिए. परंतु होता है जैसे नमक के लिए राम रस का प्रयोग होता है। देवरिया जिले में एक स्थान का नाम नूनखार है- अर्थात् वह स्थान जहाँ का पानी खारा है।  दूसरे भी कई शब्द है जिनमें नून  का भाव पानी  में बचा रह गया है ।                                                                        

घी  <> घृत - 
ऋग्वेद में सामान्यतः घी के लिए घृत का प्रयोग  देखने में आता है.  परंतु साथ ही  जल के लिए इसका प्रयोग होता है। इस दुहरे प्रयोग का ध्यान रखते हुए  धातुकारों ने  ‘घृ’  का अर्थ किया  (क्षरण) वह जो छलकता है,  बहता है। पश्चिमी अनुवादक नियमित रूप से ‘घी’ ही करते हैं जिसे (अव स्मयन्त विद्युतः पृथिव्यां यदी घृतं मरुतः प्रुष्णुवन्ति ।। 1.168.8 के अनुवाद में देखा जा सकता है। कृषि के अनुरूप  वर्षा का  बहुत मार्मिक चित्रण किया गया है,  जब मरुद्गण धरती को  सिंचित कर रहे हैं, बिजलियां धरती की ओर नीचे देखती हुई हँस रही हैं।  ग्रिफिथ महोदय का अनुवाद है: the lightnings laugh upon the earth beneath them, what time the Maruts scatter forth their fatness, शब्द अनुवाद में कोई चूक नहीं,  कोई यह नहीं कह सकता कि उसे वैदिक भाषा नहीं आती, संदर्भ की चिंता नहीं,   इससे यदि अनुवाद में अटपटी लगती है तो यही उनका उद्देश्य था, परंतु साथ  ही यह भी स्वीकार करना होगा सायण के अनुवाद की कमियों को पहचानते हुए अनेक स्थलों पर उन्होंने अधिक सही अनुवाद किया है।

तेल
तेल के विषय में एक बहुत गलत धारणा पाई जाती है कि यह पहले  तिल से निकाला गया इसलिए इसे तेल की संज्ञा मिली ।  ज्ञानमंडल के कोश में इसका अर्थ दिया गया है बीज, वनस्पतियों आदि से निकलने या विशेष उपाय द्वारा निकाला जाने वाला तरल पदार्थ इसलिए उसमें  तैल  का अर्थ   आ गया है  तिल को पेर कर निकाला हुआ तेल। यह अर्थ गलत है क्योंकि तिल का अर्थ ही था, जल।  ल-कार प्रियता के कारण  तिर का तिल हो गया, और नम भूमि के लिए तिल्विल (तिलु नम + इल - धरती - तिल्विल) = सिंचित भूमि।  भद्रे क्षेत्रे निमिता तिल्विले वा … 5-62-7 में  स्थूणायूपयष्टिरवस्थित  -जिससे खूँटी-खूँट् निकाले जा चुके हैं ऐसे सुथरे नम खेत में। 
 
हम भी बचपन में  बरसात के बाद पानी में डूबे हुए भाग से पानी हटने के बाद जमीन के नीचे से जगह-जगह पानी ऊपर निकलता था  उसे  तेलगगरा कहते थे।  नदी के या पानी के पास  की  कतिपय बस्तियों के नाम  तिल से आरंभ होते हैं जैसे तिलसर।

भगवान सिंह
( Bhagwan Singh )


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