अंधेरे के लिए तम का प्रयोग नासदीय सूक्त में भी हुआ है- पहले तम के भीतर तम छिपा हुआ था - तम आसीत तमसा गूढ़ं अग्रे। परंतु तमसा एक नदी का भी नाम था जिसे आजकल टोंस कहते हैं।[1] अब कुछ दूसरे शब्दों पर ध्यान दे सकते हैं जिनसे लालिमा, आवेश, उल्लास आदि का भाव प्रकट होता है - तामर- पानी, तूँबा/तुमड़ी - जलपात्र; *तमतम> टमटम- चलने वाला, वाहन: तमक- आवेश, तमतमाना, तामा > सं. ताम्र, तामझाम, तामरस- 1.कमल, 2.ताँबा, 3.सुवर्ण; तमस्विनी का एक अर्थ रात है तो दूसरा हल्दी। फा. तमाशा, अ. तमन्ना - आकांक्षा । पराकाष्ठा सूचक प्रत्यय -तम पर भी हमारी दृष्टि जानी चाहिए क्योंकि लघुता और महिमा सूचक सभी शब्द जल के पर्याय हैं। ध्यान तुलनात्मक -तर प्रत्यय पर भी जाना चाहिए, जो भी जलार्थक तर ही है। हमें लगता ‘तम’ और temp, temper, tempest, tame, timid, time, temporary, Tames आदि शब्दों के संबंध पर पर नए ढंग से विचार किया जा सकता है, परंतु हम इसका खतरा नहीं उठाएंगे।
हम पाते हैं कि तम मूलतः अंधकार का द्योतक नहीं था और इसको नकारात्मक आशय में प्रयोग में लाया जाने लगा और अनेक नकारात्मक भावों - तमोगुण, तामसी स्वभाव, तमोवृध- निशाचर, तंबू> tomb आदि से भी जब कि उसी के समानान्तर लोक व्यवहार में, उसी मूल से निकले के शब्द दूसरे आशयों में प्रयोग में आते रहे।
---------------------------------
[1] विरल अपवादों, जैसे अचिरावती- निरंतर धारा बदलने वाली, को छोड़कर, सभी नदियों के नाम का अर्थ है जलवाली, सुजला या प्रवहमान है, इसलिए नदियों के नाम के विश्लेषण से भी हम जल के पर्यायों को समझ सकते हैं। सामान्यतः इसका ध्यान विद्वान भी नहीं रख पाते। उदाहरण के लिए सुनीति बाबू की मान्यता थी कि गंगा का अर्थ नदी होता है और यह आस्त्रिक भाषा का है, मुझे उनको यह समझाने में कुछ समय लगा कि गंगा का अर्थ सुजला होता है, कि गं/कं का अर्थ जल है। समय इसलिए लगा कि उस समय मैं तटीय नामों के आधार कर अपना पक्ष रख रहा था। अधिक सटीक उदाहरणों- कं-ज= जलज; कनई, *गंगरा (गगरा), गगरी, गंगाल, की ओर हमारा भी ध्यान न था। आज भी गोमती, गोमल के साथ गाय का आशय जोड़ लिया जाता है, जब कि अर्थ है - जलवाली। गो का अपना नामकरण जल की गतिशीलता से प्रेरित है। गो हो या कम दोनों का अर्थ ‘चल’ है और इसलिए गोट और काउ का शाब्दिक अर्थ है चलने वाला, जैसे सर्प > सर्पेंट का अर्थ है सरकने वाला और ये भी सर- जल, > सरकना> सर्प, सरीसृप, सर्पेंट क्रम से उत्पन्न हैं।
______________________________________________________
तिमिर
तिम - जल; तिमि - समुद्र, तिमिंगल - महामत्स्य; टीमटाम - सजावट, दिखावा; टिमटिमाना; टेम- दीपशिखा ।
****
धूम/ धाम/ धुँआ/ धुंध/ धुँधला
धू-धू कर आग जलना, धूमधाम से कोई उत्सव मनाना संदेह पैदा करता है कि धूम शब्द कालिमा का द्योतक रहा हो सकता है। शब्द जिस चीज के लिए टैग के रूप में प्रयोग में आता है, उसके रंग का शब्द पर आरोपण करने के कारण हम अपने को आश्वस्त कर लेते हैं कि इसका शाब्दिक अर्थ काला होगा। परंतु ऋग्वेद में ललौहे धुँए का भी उल्लेख है (अच्छा द्यां अरुषो धूम एति, Aloft to heaven thy ruddy smoke ascendeth, ग्रि.) धुँए का रंग सदा काला नहीं दिखता। कभी कभी सफेद भी लगता है। धाम का प्रयोग ऋ. में स्थान और निवास के लिए, पर अनेक बार तेज के लिए भी हुआ है - ‘पुरुहूतस्य धामभिः’ पुरुहूत इन्द्र के तेजों के साथ;’ धामसाचं अभिषाचं स्वर्विदम्’ स्वर्गीय तेजस्विता प्रदान करने और समस्त तेजो के साथ ‘सप्त धामभिः’ जैसे प्रयोग देखने में आते हैं।
यदि इस तरह की अनेकार्थता है तो धू/ धम् का स्रोत जल होना चाहिए। पहले मुझे कुछ सूझा नहीं। परन्तु यदि हमने जो नियम स्थिर किए हैं वे निरपवाद हैं तो कोई शब्द होगा अवश्य। तब मेरा ध्यान ‘धोना’ क्रिया पर, ‘धवल’ वर्ण पर तो जाना ही था। नदियों का एक पर्याय ‘धौती’ का ऋग्वेद में केवल एक बार प्रयोग हुआ है- ‘यो धौतीनां अहिहन् अरिणक् पथः-2.13.5 (‘धौतीनां चलन्तीनां नदीनाम्’ , सायण)।
अब धम् के वे अर्थ सामने आए जिनकी ओर पहले ध्यान नहीं गया था : (1) चालन (धमन्तो बाणं, ऋ. 1.85.10), बाण चलाते हुए; (वि सप्तरश्मिः अधमत् तमांसि, ऋ. 4.50.4), अपनी सातों रश्मियों से सभी प्रकार के अंधकारों को दूर भगा दिया (2) वध, (अभि दस्युं बकुरेणा धमन्तोरु ज्योतिश्चक्रथुरार्याय, ऋ. 1.117.21), अपने प्रज्वलित क्षेप्यास्त्र से रहजनों का वध करते हुए सौदागरों के लिए प्रकाश फैला दिया, (3) ध्वनित करना, (इन्द्रेषितां धमनिं पप्रथन् नि, ऋ 2.11.8), इन्द्र प्रेरित ध्वनि करते रहे - धमनिं - शब्दं कुर्वाणां, सायण;; (4) विदीर्ण करना, (भृमिं धमन्तो अप गा अवृण्वत्, ऋ. 2.34.1) भागते हुए बादलों को विदीर्ण करके जल को मुक्त किया; और (5) प्रवाह, (ये द्रप्सा इव रोदसी धमन्ति अनु वृष्टिभिः, उत्सं दुहन्तो अक्षितम्, 8.7.16), They who like fiery sparks with showers of rain blow through the heaven and earth, Milking the spring that never fails ग्रि.. और इस अंतिम तर्क से ही हमारी रक्तवाहिकाओं का नाम धमनी पड़ा है। यूँ तो शिराएँ भी वाहिकाएँ ही हैं, परंतु हम केवल धू और धम् के अर्थविकास पर विचार कर रहे हैं।
आप भले पैंट या पाजामा पहनते हों, कभी कभार धोती तो पहना होगा, न पहना हो तो कुछ पुरुषों-स्त्रियों को धोती पहने तो देखा होगा, पर संभव है इसके अर्थ पर विचार न किया हो। धोती में जल का नहीं आवरण, आवास की तरह लिबास, या निवास की तरह वस्त्र का भाव है। धू से धूम/धुन/ धुआँ ही नहीं धूप शब्द भी निकला है।
भगवान सिंह
( Bhagwan Singh )
No comments:
Post a Comment