Monday 12 July 2021

राष्ट्रीय पुरस्कार में घालमेल अनुचित है / विजय शंकर सिंह

फ़िल्म अभिनेता गजेंद्र चौहान का एक ट्वीट देखा तो थोड़ी हैरानी हुयी। गजेंद्र चौहान ने अपनी ट्वीट में कहा है कि उन्हें लीजेंड दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया है और वह इस उपलब्धि पर सबका आभार व्यक्त कर रहे थे। 

हैरानी का कारण यह है कि दादा साहब फाल्के अवार्ड तो फ़िल्म जगत का सबसे प्रतिष्ठित और बड़ा पुरस्कार है और अक्सर यह उम्र के अंतिम पड़ाव पर प्रख्यात और अत्यंत प्रतिभाशाली सिनेकर्मी को सरकार द्वारा दिया जाता है। पर गजेन्द्र चौहान न तो उक्त श्रेणी में अभी आये हैं और न ही वे इतने विविध और वरिष्ठ भी हैं कि उन्हें यह पुरस्कार मिले। 

पर जब ट्वीट को गौर से देखा तो अवार्ड का नाम लीजेंड दादा साहब फाल्के अवार्ड दिखा। दादा साहब फाल्के अवार्ड तो सरकारी और वही प्रतिष्ठित अवार्ड है जिसका उल्लेख मैं ऊपर कर चुका हूं, पर यह दादा साहब फाल्के अवार्ड के आगे लीजेंड लगा कर इसे एक और अवार्ड बना दिया गया है। यानी यह वह दादा साहब फाल्के अवार्ड नहीं है, बल्कि उसकी नकल में बनाया गया कोई अन्य अवार्ड है। 

लीजेंड लगा कर भ्रम फैलाने की यह कोशिश एक प्रकार से देश के सिनेजगत के सबसे सम्मानित और प्रतिष्ठित अवार्ड  दादा साहब फाल्के अवार्ड का मज़ाक़ बनाना हुआ। दादा साहब फाल्के तो लीजेंड थे ही और वे भारतीय सिनेमा के पिता कहे जाते हैं। 

दादा साहब फाल्के ( 1870 से 1944 ) ने 1913 में पहली लंबी फीचर फिल्म बनाई थी राजा हरिश्चंद्र। उनकी स्मृति में ही उनके नाम पर दादा साहेब फाल्के अवार्ड 1969 में भारत सरकार द्वारा पहली बार दिया गया। इस अवार्ड से सम्मानित होने वाली पहली अभिनेत्री थी, देविका रानी। दस लाख रुपया नक़द और एक स्वर्ण कमल पुरस्कार के रूप में  इस अवार्ड से सम्मानित होने वाले महानुभाव को दिया जाता है। 

अब तक 52 सिनेकर्मी इस अवार्ड से सम्मानित किए जा चुके हैं। जिनमे, पृथ्वीराज कपूर, सत्यजीत रे, राज कपूर,  दिलीप कुमार, लता मंगेशकर, नौशाद, टी नागी रेड्डी, जेमिनी गणेशन, सोहराब मोदी, एलवी प्रसाद, दुर्गा खोटे, अशोक कुमार, देव आनंद आदि नामचीन लोग है। 

इस प्रकार का भ्रम उत्पन्न करने वाले, केवल नाम के आगे लीजेंड लगा कर, 'लीजेंड दादा साहब फाल्के' अवार्ड बना कर किसी को भी सम्मानित कर देना, न केवल अनुचित है बल्कि यह एक प्रकार का धोखा भी है। सरकार को इस धोखाधड़ी पर संज्ञान लेना चाहिए, ताकि कल, कोई भी राजकीय अवार्ड जैसे पद्मश्री, पद्मभूषण आदि के आगे मनपसन्द विशेषण जोड़ कर उसे किसी को भी देने का समारोह कर के इन पुरस्कारों या अवार्ड्स की महत्ता और पवित्रता का मज़ाक़ न उड़ा सके। 

गजेंद्र चौहान एक अभिनेता हैं और उन्हें कोई किसी सम्मान या अवार्ड से सम्मानित करना चाहे तो इस पर कोई आपत्ति नहीं है। पर आपत्ति है राजकीय सम्मान के साथ घालमेल कर, उसे मिलते जुलते नामों वाले अवार्ड से सम्मानित करके असल और प्रतिष्ठित अवार्ड का मज़ाक़ बनाने पर। सूचना औऱ प्रसारण मंत्रालय को इस भ्रम फैलाने वाले अवार्ड देने वाली कमेटी के खिलाफ कार्यवाही करनी चाहिए। 

© विजय शंकर सिंह

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