Saturday 3 July 2021

असग़र वजाहत का यात्रा वृतांत - यज़्द यात्रा (2)


इतिहास, यात्रा संस्मरण लिखने वालों की शरण स्थली माना जाता है। मतलब यह है कि यात्रा वृतांत लिखने वाले को जब कुछ और नहीं सूझता तो वह इतिहास में चला जाता है और बहुत आराम से कई हजार शब्द लिख डालता है। इस धारणा के अंतर्गत मुझे यज़्द का इतिहास नहीं लिखना चाहिए लेकिन मजबूरी यह है कि हिंदी के पाठक मेरे विचार से ईरान के बारे में, जो पड़ोसी देश है, इंग्लैंड की तुलना में या अमेरिका की तुलना में बहुत कम जानते हैं। इसलिए यज़्द इतिहास पर कुछ लिखना जरूरी हो जाता है। इसलिए भी जरूरी है कि इस्लामपूर्व ईरान का इतिहास विश्व की गौरवशाली परंपरा का एक स्वर्णिम अध्याय है।

यज़्द का इतिहास सासनी साम्राज्य (224-651 AD) से शुरू होता है।  सासनी  साम्राज्य   को ईरानी के इतिहास का एक शिखर माना जाता है। सासानियों ने अपने धार्मिक  विश्वासों के साथ-साथ विभिन्न विश्वासों और संस्कृतियों को सम्मान दिया था । इस उदारता की  कड़ियाँ   ईरान के  प्राचीन सम्राट सायरस आज़म / कोरविश आज़म (600- 530 BC) से भी जुड़ी हुई है  जिन्होने संसार का पहला मानव अधिकार अध्यादेश जारी किया था।

सासानी शासन ने एक जटिल, केंद्रीकृत नौकरशाही बनाई थी । उन्होंने भव्य स्मारक बनवाए थे और सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थानों को बढ़ावा दिया था। उनके साम्राज्य का सांस्कृतिक प्रभाव पश्चिमी यूरोप, अफ्रीका, भारत पर पड़ा था। उनकी कलात्मकता ने यूरोपीय और एशियाई मध्ययुगीन कला को आकार देने में मदद  की थी।यही नहीं सासानी चेतना ने फारसी संस्कृति, इस्लामिक संस्कृति, कला, वास्तुकला, संगीत, साहित्य को प्रभावित किया था।

सासनी साम्राज्य के समय यज़्द में टकसाल थी। उसके बाद यज़्द उस समय फोकस में आया जब ईरान पर अरबो ने विजय प्राप्त कर ली थी और अग्नि  पूजको को यज़्द में पनाह मिली थी । लेकिन यह पनाह मुफ्त नहीं थी। विजेताओं को पैसा देकर हासिल की गई थी ।

इस तरह धीरे धीरे  ईरान में यज़्द अग्नि  पूजको का शहर बनता चला गया। आज शायद संसार के सबसे अधिक अग्निपूजा इस शहर में रहते हैं।

ज़ोरोएस्ट्रियनवाद दैवी संदेशवाहक ज़ोरोस्टर की शिक्षाओं पर केंद्रित है।यह आधुनिक फारसी में अवेस्तान या जरथोस्ट के रूप में भी जाना जाता है।  यह दुनिया का सबसे पुराना और निरंतर प्रचलित धर्मों में से एक है। इनके सब से बड़े देवता अहुर मज़दा हैं जो ज्ञान  और परोपकारी के वाहक माने जाते हैं।  माना जाता है कि इस धर्म के अनेक   विश्वासों  जैसे  एकेश्वरवाद,  स्वर्ग और नरक, मुक्ति आदि ने अनेक धर्मों  जैसे ईसाई धर्म, इस्लाम, बहाई धर्म और बौद्ध धर्म आदि को प्रभावित किया है।


यज़्द  का अग्नि मंदिर एक बड़ी कोठी जैसा लगता है। यहां लगे एक सूचनापट के अनुसार, यज़्द अतिश बेहराम मंदिर का निर्माण 1934 में किया गया था। किसी भारतीय पर्यटक को  चौका देने में  एक जानकारी एक मिलाती है। इस मंदिर को  बनाने के लिए धन भारत के पारसी जोरास्ट्रियन एसोसिएशन दिया था।  हम सब जानते हैं कि भारत के  चहुमुखी विकास में जोरास्ट्रियन (पारसी )  लोगों का क्या योगदान है। केवल एक नाम 'टाटा' इतना भारी पड़ता है कि और सब नाम हल्के हो जाते हैं। उद्योग से लेकर सांस्कृतिक विकास तक के क्षेत्र में पारसी लोगों का अपार योगदान है।

कुछ सीढ़ियां चढ़कर  अर्धचंद्राकार  बरामदे में आ गए।सादगी और सफाई ने प्रभावित किया।यह पूजा घर ही नहीं है बल्कि एक तरह का संग्रहालय भी है यहां तरह-तरह के पुराने जोरास्ट्रियन धर्म ग्रंथों को देखा जा सकता है। पुराने चित्र और पुराने दस्तावेज भी नजर आते हैं। ईरान और अग्नि पूजकों  के प्राचीन इतिहास की भी झलकियां मिलती है। और सबसे बड़ी बात है कि उस अग्नि के दर्शन होते हैं जो 4000 साल पुरानी बताई जाती है । शीशे की दीवार के पीछे सुलगती हुई आग नजर आती हैं । शीशे के पीछे  रखी आग  की तस्वीर लेना  थोड़ा मुश्किल था  क्योंकि  शीशे के ऊपर  तस्वीर लेने वाले की छाया  पड़ जाती थी।  बाहरहाल किसी तरह  इसका एक चित्र लिया।

 इस आग को पहली बार किसी  सासनी सम्राट में प्रारंभ किया था ।उसके बाद यह आग सैकड़ों वर्षो तक कभी इस मंदिर में और कभी उस मंदिर में सुरक्षित रही। समय बीतता गया। इस आग को 1173 में अर्दकन में नाहिद-ए पारस मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया था जहां 300 वर्षों तक यह बनी रही। वहां से यह यज़्द में एक बड़े पुजारी के घर  पहुंची और फिर 1934 में  इस नए मंदिर में  लायी गई।

© असग़र वजाहत
#vss 

No comments:

Post a Comment