Friday 29 March 2019

समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में सरकार अपील क्यों नहीं कर रही है ? / विजय शंकर सिंह

अदालतों द्वारा मुल्जिमों को बरी कर देना कोई अनोखी खबर नहीं है। आपराधिक मामलों में साज़याबी का प्रतिशत बहुत उत्साहजनक नहीं है। पर अनोखी बात यह है कि, समझौता एक्सप्रेस विस्फोट के मामले में असीमानन्द के मामले में एनआईए ने ऊपरी अदालत में अपील करने से मना कर दिया है । क्यों ? जबकि फैसला पढ़ने से साफ साफ यह दिख रहा है कि  सरकारी वकील ने उन महत्वपूर्ण सुबूतों को पेश नहीं किया जो मुक़दमे के फैसले में अहम हो सकते थे। उस फैसले और जज के स्ट्रिक्चर पर अलग से एक लेख होगा।

आपराधिक न्याय व्यवस्था में निचली अदालत के फैसले पर ऊपर की अदालत में अपील करने का एक वैधानिक प्राविधान है। पर सरकार का यह फैसला हैरान करने वाला है। लगता है कि एनआईए को जो दायित्व सौंपा गया था कि मुलजिम बचाओ उसे उसने अपनी तरफ से पूरा कर लिया है। अब अगर अपील होती है तो उसकी चाल खुल भी सकती है।

अगर सभी साक्ष्यों को प्रस्तुत और उसके परीक्षण तथा उस पर बहस के बाद मुलजिम बरी होते तो कोई बात नहीं है। पर जज ने फैसले में जो यह बात कही है कि महत्वपूर्ण सुबूत नहीं रखे गए यह अभियोजन और एनआईए की नीयत को ही संदिग्ध बना देते हैं। ऊपर से अपील न करने की सरकार की घोषणा ने तो सीधे मुलजिम छुड़ाने में मदद करने वाली एनआईए और अभियोजन को ही मुलजिम के कठघरे में खड़ा कर देती है।

यह एक्विटल अगर सही है तो फिर यह विस्फोट किया किसने था ? यह सवाल लोग पूछ रहे हैं। क्या कारण है कि महत्वपूर्ण और हाई प्रोफाइल मामलो में तफ्तीश जेसिका को किसी ने नहीं मारा की तर्ज़ पर अनसुलझी रह जाती है। यह तफ्तीश की कमी है, सुबूत नज़रअंदाज़ करने के कारण है या पहले से ही किसी निश्चित तयशुदा निष्कर्ष पर पहुंचने के कारण है ? यह पुलिस और एनआईए की विफलता तो है ही। पर सुबूत जानबूझकर अदालत तक नहीं पहुंचने देना यह नाकामी और प्रोफेशनल अक्षमता ही नहीं एक आपराधिक षडयंत्र है। यह अपराध है, अपराधी को बचाने का।

इसी असीमानन्द पर मक्का विस्फोट मामले में भी मुक़दमा चला था। वह उस मामले में भी मुल्जिम था। मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में असीमानन्द ने अपना अपराध 164 सीआरपीसी के अंगर्गत स्वीकार भी कर लिया था। पर उस मामले में भी यह बरी हो गया। इस मामले में एक और हैरान करने वाली बात हुयी कि जिम जज साहब की अदालत में यह मुक़दमा चल रहा था उन्होंने इस मामले में मुल्जिमों को बरी करने के बाद ही त्यागपत्र दे दिया । अभियुक्त को बरी करना  फिर त्यागपत्र दे देना संशय को जन्म देता है। हालांकि चार दिन बाद जज साहब ने फिर से काम शुरू कर दिया। वे क्या कारण थे कि जज साहब ने त्यागपत्र दिया और फिर वे काम पर आ गये।

अदालतों से अभियुक्तों का बरी हो जाना एक गंभीर चूक समझी जाती है। इसकी जांच भी होती है और उन कारणों की पड़ताल कर के जिम्मेदारी भी तय की जाती है कि किसकी गलती से यह चूक हुयी है। फिर उसे दंडित तो किया ही जाता है, और एक मज़बूत अपील तैयार करके बड़ी अदालत में दोषमुक्ति के फैसले को चुनौती दी जाती है। पर यहाँ तो सरकार ने बेशर्मी से ही अपील करने से मना कर दिया। एक पुलिस अफसर होने के नाते मेरे लिये यह सचमुच ही हैरान करने वाला निर्णय है।

पिछले पांच सालों में आपराधिक न्याय व्यवस्था का एक और अनोखा ट्रेंड देखने को मिल रहा है। वह है उन मामलों में सरकार द्वारा अपील न करना जिनमे भाजपा और संघ के महत्वपूर्ण लोग मुलजिम है। अमित शाह के भी एक मामले में सरकार ने अपील करने से मना कर दिया और अब एनआईए का यह एक और ताज़ा मामला है। जज लोया का मामला तो अभी बॉम्बे हाईकोर्ट में चल ही रहा है। आपराधिक क्षवि के लोगों को लगभग सभी दल टिकट देते रहते हैं, पर अदालत में मुल्जिमों को बरी होने पर सरकार द्वारा अपील न करने की यह एक नयी परम्परा चल पड़ी है।

© विजय शंकर सिंह

निर्वाचन आयोग की यह बेबसी दुःखद है / विजय शंकर सिंह

" मिशन शक्ति की घोषणा प्रधानमंत्री द्वारा किया जाना आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है। "
यह फैसला निर्वाचन आयोग ने अपनी एक मीटिंग के बाद विचारोपरांत लिया है। सरकारी शब्दावली में विचारोपरांत और जनहित जैसे शब्द सिर्फ इस लिये डाले जाते हैं कि विभाग इन शब्दों की आड़ में बैठ जाय और मुंदहूँ आंख कतहुँ कुछ नाहीं की मुद्रा बनी रहे ।

वर्तमान निर्वाचन आयोग के इस फैसले पर जिसे हैरानी हो तो हो मुझे तब हैरानी होती जब आयोग पीएम नरेंद मोदी को आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाता और नोटिस जारी करता। ऐसे नोटिस से किसी का कुछ विशेष बनता बिगड़ता नहीं है पर इसका एक सार्थक प्रभाव यह पड़ता है कि आयोग निष्पक्ष कार्य करते हुये दिखता है। पर आयोग से ऐसा करने की उम्मीद ही नहीं थी। क्योंकि अब मुख्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर टीएन शेषन और लिंगदोह जैसे सख्त और कायदे कानून के पाबंद अफसर नियुक्त नहीं हैं।

यकीन मानिए यदि टीएन शेषन और लिंगदोह जैसे अफसर आज होते तो जैसे ही उन्हें पता चलता कि पीएम कोई सार्वजनिक प्रसारण करने जा रहे हैं, वैसे ही वे पीएमओ से उसका डिटेल और टेक्स्ट मांग लेते और बिना अनुमति के सरकार की हिम्मत भी ऐसे प्रसारण की नहीं पड़ती । पर आज आयोग की इतनी हिम्मत नहीं है कि आदर्श आचार संहिता को वह निष्पक्षता और दमखम से लागू कर सके। यह पतन आयोग का ही नहीं बल्कि लगभग सभी संवैधानिक संस्थाओं का हुआ है।

कहीं पीएम टीशर्ट बेच रहे हैं, कहीं टिकुली बिंदी पर छप रहे हैं, कहीं चाय के कागज के कप पर मैं भी चौकीदार लिख कर रेलवे मंत्रालय ट्रेन में उस पर चाय बेच रहा है, और कहीं रेलवे के टिकट में मोदी जी की मधुर क्षवि नज़र आ रही है तो कहीं हवाई यात्रा के बोर्डिंग पास के एक कोने में टँगे हुये हैं। गरज यह है कि लोकप्रियता का नशा इतना तारी है कि जहां जाइयेगा, हमे पाइयेगा का  भाव स्थायी भाव बन गया है और जब सभा में जनता से रूबरू होतें हैं अपना रिपोर्ट कार्ड सुनाने के लिये तो केवल सर्जिकल स्ट्राइक जो उनके अनुसार अंतरिक्ष तक पहुंच गयी है, के अलावा कुछ उनके जेहन में उभरता ही नहीं है !

सच बताइये सर, वे सारे मास्टरस्ट्रोक जो दर्शक दीर्घा में जाकर गिरने थे क्या बाउंड्री पर कैच हो गये ? पांच साल में काम तो बहुत हुये पर क्या क्या हुये यह सरकार बताने की मुद्रा में आज तक नहीं आ पायी है।

© विजय शंकर सिंह

अंतरिक्ष कार्यक्रम और ASAT ए सैट की उपलब्धियां और चुनाव / विजय शंकर सिंह

ए सैट A SAT परीक्षण पर उठे सारस्वत के बयान से अंतरिक्ष कार्यक्रम और उससे जुड़ी अन्य परियोजनाओं की गोपनीयता भंग होने का खतरा हो गया है। कल तक ऐसी उपलब्धियों की चर्चा वैज्ञानिक समुदाय करता था, और लोगों के लिये यह बहुत रोचक और चर्चा का विषय नहीं बनता था। लोग वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि को बिना किसी राजनीतिक चश्मे के सराहते थे, प्रशंसा करते थे और फिर अपने काम मे लग जाते थे।

पर अब जब चुनाव है और चुनाव आचार संहिता के बीच एक अत्यंत आवश्यक प्रसारण की सूचना कह कर के प्रधानमंत्री स्वयं  इसकी घोषणा करेंगे और डीआरडीओ के पूर्व प्रमुख सार्वजनिक रूप से यह गोपनीय संवाद टीवी चैनलों पर उद्घाटित करेंगे कि हम तो 2012 में ही यह कर सकते थे और करना चाहते थे पर सरकार ने यह नहीं करने दिया उसमे राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी, आदि आदि तो विरोधी और सजग नागरिक इस गोपन के सार्वजनिक होने की जांच और प्रतिवाद स्वतः करने लगेंगे। अब हुआ भी यही है।

यूपीए 2 की सरकार के समय मे एनएसए रहे शिवशंकर मेनन ने सारस्वत के इस बयान पर संदेह खड़ा कर दिया है। ए सैट परीक्षण पर डीआरडीओ के अध्यक्ष वीके सारस्वत ने कहा है कि उन्होंने यह परीक्षण करने की अनुमति 2012 में यूपीए सरकार से मांगी थी, पर सरकार ने नहीं दी। सरकार में राजनीति इच्छा शक्ति की कमी थी। आज तत्कालीन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने पूछा है कि यह अनुमति सारस्वत ने कब मांगी थी और किससे मांगी थी ? शिवशंकर मेनन के ही शब्दों में,
" यह मैं पहली बार सुन रहा हूँ। सारस्वत ने कभी भी ASAT के परीक्षण की अनुमति नहीं मांगी थी । "

द वायर के अनुसार,
" Refuting reports that the Manmohan Singh government refused to allow the Defence and Research Development Organisation (DRDO) to conduct a test of its anti-satellite capabilities, former national security adviser Shivshankar Menon told The Wire, “This is the first I have ever heard of it. Saraswat never asked me for permission for an ASAT test.”

2012 में सारस्वत कहते हैं कि डीआरडीओ ने यह तकनीक विकसित कर ली है, पर भारत यह परीक्षण इस लिये नहीं करेगा क्योंकि इससे अंतरिक्ष मे घातक खतरा फैल सकता है। अब जब वे नीति आयोग में दुबारा नौकरी पा गये हैं तो कह रहे हैं कि सरकार के पास राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी। 

वेब पोर्टल सत्याग्रह के अनुसार, यूपीए सरकार के समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) रहे शिवशंकर मेनन ने एंटी-सैटेलाइट (ए-सैट) मिसाइल परीक्षण को लेकर हो रहे हंगामे के बीच महत्वपूर्ण जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि मनमोहन सिंह सरकार ने रक्षा एवं अनुसंधान विकास संगठन (डीआरडीओ) को ए-सैट परीक्षण करने की अनुमति नहीं दी थी. खबर के मुताबिक शिवशंकर मेनन ने कहा, ‘मैं पहली बार ऐसा सुन रहा हूं. (वीके) सारस्वत (पूर्व डीआरडीओ प्रमुख) ने कभी भी ए-सैट परीक्षण की अनुमति को लेकर मुझसे नहीं पूछा.’

गौरतलब है कि 2013 में डीआरडीओ प्रमुख के पद से रिटायर होने के बाद वीके सारस्वत को मोदी सरकार में नीति आयोग का सदस्य बनाया गया था. बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ए-सैट परीक्षण करने की घोषणा के बाद वीके सारस्वत ने कहा था कि पिछली सरकार ने इस तरह के लाइव टेस्ट की इजाजत नहीं दी थी. सारस्वत के मुताबिक उन्होंने यूपीए सरकार के समक्ष इस तरह के परीक्षण का प्रस्ताव रखा था, लेकिन उसमें ‘राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी’ थी । इकोनॉमिक टाइम्स के मुताबिक सारस्वत ने कहा, ‘मुझे याद है कि मैंने मंत्रियों और एनएसए के सामने भी प्रेजेंटेशन दिए थे, लेकिन इसकी मंजूरी कभी नहीं मिली. इसकी कोई वजह नहीं दी गई। 

सब चुप थे. दुनियाभर में होने वाले रक्षा और अंतरिक्ष से जुड़े कार्यक्रम गोपनीय रखे जाते हैं। इसका कारण ही यह होता है कि दुनिया के किसी और मुल्क को भनक न लगे। भारत मे भी जब 1974 और 1999 में परमाणु परीक्षण हुआ था तो उसकी भी कोई भनक किसी को नहीं रही। ASAT तकनीकी से हम सम्पन्न हो गए हैं यह भनक भी जिन्हें इस क्षेत्र में रुचि है उन्हें हो तो हो पर आम जनता को नहीं थी। परीक्षण की सफलता की गोपनीयता की बात मैं नहीं कर रहा हूँ। परीक्षण होते ही हम घोषित करें या नहीं दुनियाभर के बड़े और असरदार देश यह जान जाएंगे। पर सारस्वत के यह बताने के बाद वे पहले 2012 में ही यह परीक्षण कर सकते थे पर राजनीतिक इच्छाशक्ति के कारण उन्हें अनुमति नहीं मिली तुरन्त राजनीतिक रंग ले लेगा और इस बयान ने  यह रंग ले भी लिया। आज शिवशंकर मेनन ने उनके बयान का प्रतिवाद किया कल हो सकता है इस बारे में और भी कुछ पोशीदा हो वह सार्वजनिक हो जाय।

अब जरा इसरो के पूर्व प्रमुख जी माधवन नायर के बारे में । जी माधवन नायर के खिलाफ एंट्रिक्स देवास मामले में उक्त कम्पनी को 578 करोड़ रुपये का गलत लाभ पहुंचाने के मामले में सीबीआई ने जांच के बाद दोषी पाया और उनके खिलाफ आरोप पत्र दिया। अदालत में दाखिल इस आरोप पत्र में अंतरिक्ष विभाग के सचिव वीणा इस राव, पूर्व निदेशक इसरो भास्कर नारायण राव, और एंट्रिक्स के अन्य अधिकारी भी शामिल थे। माधवन नायर सहित सभी अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार विरोधी कानून के अंतर्गत भी कार्यवाही की गयी है। इन अधिकारियों ने जी सैट 6 ( GSAT - 6 ) और जी सैट 6 ( GSAT - 6A ) उपग्रहों में लगने वाले उपकरणों की आपूर्ति देने में देवास कम्पनी को अनधिकृत रूप से लाभ पहुंचाया। इससे इसरो को 578 करोड़ रुपये की हानि हुयी। 2016 में आरोप पत्र सीबीआई द्वारा दाखिल कर दिए जाने के बाद माधवन नायर ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली।

ऐसे महत्वपूर्ण अनुसंधान और कार्यक्रमो को चुनाव की राजनीति से दूर रखा जाना चाहिये था। पर यह भी सरकार और भाजपा की मजबूरी है कि वे आखिर अपनी उपलब्धियों को बताएं तो कैसे बतायें। नोटबंदी, जीएसटी, पठानकोट, उरी, पुलवामा हमलों की सुरक्षा चूक, बेरोजगारी, संकल्पपत्र 2014 के वादे, गिरती जीडीपी आदि आदि पर आखिर वे कहें भी तो क्या कहें । अब वक्त भी तो नहीं बचा। जब दो महीने ही शेष बचे तो आलम ए बदहवासी में सोचा गया कि चलो 2012 की ही बंदूक दाग दें। उधर यह परीक्षण हुआ, इधर पीएम नरेंद्र मोदी घर घर मे नमूदार हुये, और उधर शांतिपर्व में आ चुके सारस्वत के कंठ से सरस्वती फूट पड़ीं। पर सारस्वत और माधवन नायर के किसी भी बयान के पढ़ने के पूर्व यह तथ्य भी जान लें कि माधवन साहब 2016 के एक मामले में सीबीआई द्वारा आरोपित हैं और उसके बाद उन्होंने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली है। अब वे भाजपा के सदस्य हैं, और सारस्वत, NITI आयोग के सदस्य ।

ISRO इसरो की सफलता और उसके वैज्ञानिकों की मेहनत पर कोई सवाल नहीं उठा रहा है और न उठाएगा। क्योंकि यह प्रगति निरन्तर हो रहे शोधों और अनुसंधान का परिणाम है। आज भारत निःसंदेह दुनिया की चौथी ताकत बन गया है जो अंतरिक्ष मे किसी उपग्रह को नष्ट कर सकता है। सरकार और सरकार के मुखिया भी ऐसी उपलब्धि के लिये श्रेय ले सकते हैं। जब हम तमाम विफलताओं के लिये सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं तो निश्चय ही उपलब्धियों के लिये सरकार की तारीफ करनी चाहिये। लेकिन जब ऐसी उपलब्धि चुनाव के लिये मुद्दा बनायी जाएगी तो उस की आलोचना, निंदा, और उसकी जांच पड़ताल भी होगी और फिर वह सब भी खुल कर सामने आ सकता है जो देश हित मे जानबूझकर गोपनीय रखा गया हो।

© विजय शंकर सिंह

Thursday 28 March 2019

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज की गिरफ्तारी और उनकी चर्चा / विजय शंकर सिंह

झारखंड में गढ़वा के बिशुनपुर थाना की पुलिस ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज को हिरासत में ले लिया है. उनको बिशुनपुर थाना में रखा गया है.ज्यां द्रेज  अपने साथियों के साथ बिशुनपुर बाजार में एक कार्यक्रम में थे। पुलिस के अनुसार, आचार संहिता लागू है और बिना प्रशासनिक अनुमति के यह कार्यक्रम किया जा रहा था। मामले की जानकारी एसडीओं और दंडाधिकारी को दे गी गयी है. उनके आने पर सभी को मुक्त करने पर फैसला लिया जायेगा.

अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज के अनुुुसार, बिशुनपुर बाजार में राईट टू फुड (भोजन के अधिकार) को लेकर कार्यक्रम का आयोजन था. इसकी जानकारी प्रशासन को दी गयी थी. तय समय पर कार्यक्रम शुरू हुआ. जिसके कुछ देर बाद पुलिस पहुंची और उन्हें थाना ले आया गया। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि यह हो सकता है कि ज्यां द्रेज की टीम ने कार्यक्रम की जानकारी प्रशासन को दी हो. लेकिन उन्हें कार्यक्रम की अनुमति नहीं मिली  है. यही कारण है कि उन्हें हिरासत में लिया गया है. अभी उन्हें थाना में ही रखा गया है। अभी खबर आयी है कि उन्हें छोड़ दिया गया है। 

ज्यां द्रेज 1959  में बेल्जियम में पैदा हुए थे. पिता जैक्वेस ड्रीज अर्थशास्त्री थे। ज्यां 20 साल की उम्र में भारत आ गए. 1979 से भारत में ही रह रहे हैं. भारत की नागरिकता उन्हें 2002 में मिली. इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टिच्यूट, नई दिल्ली से अपनी पीएचडी पूरी की है । लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स सहित देश-दुनिया की कई यूनिवर्सिटी में पिछले 30 साल से विजिटिंग लेक्चरर हैं। अर्थशास्‍त्र पर ज्यां द्रेज की अब तक 12 किताबें छप चुकी हैं।अर्थशास्त्र के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन के साथ मिलकर भी कई किताबें लिख चुके हैं। इसके अलावा ज्यां के लिखे 150 से ज्यादा एकैडमिक पेपर्स, रिव्यू और अर्थशास्त्र पर लेख अर्थशास्त्र में दिलचस्पी रखने वालों की समझ बढ़ाने के लिए काफी हैं. वो भारत में भूख, महिला मुद्दे, बच्चों का स्वास्थ्य, शिक्षा और स्त्री-पुरुष के अधिकारों की समानता के लिए काम कर रहे हैं।


भारतीय अर्थ व्यवस्था के संबंध में ज्यां द्रेज की कुछ अवधारणा, 
* किसी भी इकॉनमी का पूरी तरह से कैशलेस होना संभव नहीं है.आइडिया है लेस कैश. इससे आम लोगों को बहुत फायदा नहीं होने वाला है.


* लोग कैश में काला धन कभी कभार ही रखते हैं.


* यह दावा करना कि भारत देश की स्थिति बुनियादी तौर पर बदल चुकी है, एक बड़ी भूल होगी. (देश में सुविधाएं बढ़ने के मामले में)


* सार्वजनिक सुविधाओं के समानतापूर्ण और कारगर वितरण के मामले में कुछ राज्यों, मिसाल के लिए तमिलनाडु, का रिकार्ड बहुत अच्छा है तो कुछ राज्य, जैसे उत्तरप्रदेश, इस मामले में ‘हम नहीं सुधरेंगे’की नज़ीर पेश करते हैं.


* अगर गुजरात ‘मॉडल’ है, तो केरल-तमिलनाडु ‘सुपर मॉडल’ हैं


* खाद्य सुरक्षा कानून देर से लागू होने के बावजूद इसका फायदा आधे-अधूरे तरीक़े से लोगों को मिल पा रहा है. जबकि सूखे की वजह से लोगों की परेशानी पहले से बढ़ी है.


* अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ झारखंड सरकार के हालिया कार्यों जैसे, इस विज्ञापन का प्रकाशन और बूचड़खानों पर कार्रवाई को देखकर मुझे लगता है कि राज्य की नीतियां आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित हैं.


* तकलीफ मुझे नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को है.


* चलन अब भी ‘जो है सो है’ वाला ही प्रतीत होता है और यह चलन भारी कठिनाई झेल रहे और जानोमाल का नुकसान उठा रहे लोगों को आगे और गरीबी के जाल में धकेलने वाला साबित हो रहा है.


*.जब तक केंद्र सरकार यह नहीं मान लेती कि मनरेगा में और ज़्यादा रकम लगाने की ज़रूरत है, मनरेगा में रोजगार सृजन को एक बार फिर सिकुड़ना ही है या फिर मजदूरी के भुगतान को कुछ समय के लिए टालना पड़ेगा.


मनरेगा की ड्राफ्टिंग ज्यां ने ही की थी। ज्यां द्रेज. यूपीए यूपीए शासनकाल के दौरान ये नेशनल एडवाइजरी कमिटी के मेंबर थे. यूपीए की सबसे महत्वाकांक्षी योजना मनरेगा की ड्रॉफ्टिंग ज्यां ने की थी। देश में अब तक के महत्वपूर्ण कानूनों में से एक माने जाने वाले आरटीआई कानून को लागू करवाने में भी ज्यां द्रेज की भूमिका रही है। ज्यां देश-दुनिया के अच्छे अर्थशास्त्रियों में गिने जाते हैं. फिलहाल रांची यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं और दिल्ली यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जीबी पंत सोशल साइंस में भी ज्यां विजिटिंग प्रोफेसर रहे हैं. उस वक्त वे झूंसी से यूनिवर्सिटी तक साइकिल से ही आते जाते थे। 


ज्यां द्रेज पर अक्सर नक्सल समर्थक होने के आरोप लगते रहे हैं. छत्तीसगढ़ के बस्तर के जदलपुर की सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ज्यां द्रेज की पत्नी हैं. बेला भाटिया पर कई बार नक्सल समर्थक होने और उनकी मदद करने के आरोप लगते रहे हैं. झारखंड को लेकर ज्यां ने कहा था,


" झारखंड में नक्सली गतिविधियों का प्रमुख कारण गैर-बराबरी है. भारत में गैर-बराबरी तो हर जगह है लेकिन हर जगह नक्सली गतिविधियां तो नहीं हैं. नक्सली गतिविधियों का एक संभावित कारण है- परले दर्जे का शोषण और सरकारी उत्पीड़न। "


© विजय शंकर सिंह 


आप की मेरे सवालों पर जवाबदेही बनती है सरकार / विजय शंकर सिंह

अंतरिक्ष में अब हम चौथी ताकत बन गए हैं। सारा श्रेय सरकार का है। यह मैं मान लेता हूँ। अब जरा ज़मीन पर आइए सरकार और  अब यह बता दीजिये कि, निम्न सवालों की जवाबदेही किसकी है ?

* नोटबंदी से क्या हासिल हुआ।
* नोटबंदी का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ा।
* क्या कैश का चलन कम हुआ और कैशलेस अर्थव्यवस्था या लेस कैश अर्थव्यवस्था में सरकार के अनुसार कितना परिवर्तन हुआ।

* 2016 के नोटबंदी के बाद आतंकी घटनाओं पर क्या असर पड़ा।
* क्या आतंकी घटनाओं और उन हमलों में मरने वाले सैनिकों और सिविलियन में कोई कमी आयी ?

* क्या नोटबंदी से भ्रष्टाचार या रिश्वतखोरी पर कोई रोक लगी है ?.
* ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल के आंकड़ों में हम कुछ बेहतर हुये हैं या लुढ़के हैं ?

* नोटबंदी का असर लघु माध्यम औद्योगिक इकाइयों पर सार्थक पड़ा है या कम पड़ा है ।
* इसका बेरोजगारी पर क्या प्रभाव पड़ा है।
* 2016 से बेरोजगारी के आंकड़े देना सरकार ने क्यों बंद कर दिए गए ?
* अब सरकार के पास कौन सा पैमाने है कि जिससे वह कह सके कि बेरोजगारी दर में कमी आयी है ?.

* किसानों के एमएसपी  न्यूनतम समर्थन मूल्य में जो वादा स्वामीनाथन आयोग की रपट लागू करने का था उस पर क्या कार्यवाही की गयी ?
* अगर स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट लागू करना व्यवहारिक नहीं था तो क्या सरकार यह बता सकती है कि अमुक अमुक कारणों से इस कमेटी की रिपोर्ट लागू करना व्यावहारिक नहीं है ?
* किसानों की आत्महत्या को रोकने के लिए क्या कार्यवाही की गयी ?

* गौरक्षा के गुंडो की गुंडई पर खुद पीएम नाराज़ थे और उन्होंने इसे रोकने की ज़िम्मेदारी सरकार की मानी। मॉब लिंचिंग के कितने मामलो में कार्यवाही की गई और क्या भीड़ हिंसा के मामलों में कमी आयी ?.
* क्या भीड़ हिंसा रोकने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कोई कार्यवाही की गयी ?

* सरकार के विभागों में रिक्त पदों को भरने के लिये क्या क्या कार्यवाही की गयीं।
* पुलिस, रेलवे, शिक्षा आदि सभी महत्वपूर्ण विभागों में लंबे समय से रिक्तियां चल रही हैं, क्या उन्हें भरने की कोई कार्यवाही की गयी ?

* जीएसटी को बड़े धूम धड़ाके से आधी रात को घन्टा बजा कर शुरू किया था। जीएसटी का क्या असर भारतीय बाजार पर पड़ा ?.
* इससे व्यापार की गति बढ़ी या कम हुयी ?
* कर संग्रह के क्षेत्र में इजाफा हुआ या नहीं ?

* बैंकों के एनपीए क्यों बढ़े ?.कहा जाता है कि यूपीए के समय अनाप शनाप तरीके से बैंकों ने सरकार और मंत्री की सिफारिश पर लोन दिये थे जो डूब गए। यह आरोप हो सकता है सच हो । यूपीए 2 की सरकार के हारने का कारण भ्रष्टाचार था।
* क्या सरकार ने ऐसा कोई अध्ययन या जांच दल गठित किया जिससे यह जिम्मेदारी तय की जा सके कि किसकी गलती और मिलीभगत से बैंकों ने लोन दिए।
* जिन बैंकों के अधिकारियों ने नियम विरुद्ध लोन दिए उनके खिलाफ क्या कार्यवाही की गयी ?
* एनपीए वसूली के लिये सरकार ने क्या कार्यवाही की ?

सर्जिकल स्ट्राइक 1 और 2 का श्रेय सरकार को है। यह बात स्वीकार है । पर यह सर्जिकल स्ट्राइक तीन बड़े सुरक्षा विफलता का परिणाम है। ये हैं, पठानकोट, उरी और पुलवामा के हमले।
* पठान कोट, उरी और पुलवामा हमलों में जो सुरक्षा चूक हुयी है उसकी जिम्मेदारी किस पर आएगी ?
* उस चूक में खुफिया विफलता थी कि सुरक्षा बलों के अफसरों की विफलता थी ?.
* क्या इन हमलों में जिस भी अफसर पर चाहे वह सुरक्षा बल का हो या सचिवालय का, किसी की जिम्मेदारी तय की गयी है ?.
* क्या सरकार को जो इन सुरक्षा विफलता के कारण की गयी सर्जिकल स्ट्राइक 1 और 2 का श्रेय ले रही है, इन विफलताओं के कारण पठानकोट, उरी और पुलवामा हमलों की जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिये ?

* कश्मीरी पंडित सत्तारूढ़ दल का मुख्य एजेंडा रहा है और आज भी है । क्या सरकार ने पिछले पांच सालों में कोई ऐसी कमेटी या आयोग गठित किया जिससे कश्मीरी पंडितों की सकुशल कश्मीर वापसी का कोई रोड मैप बन सके ?
* जम्मू कश्मीर और भारत मे यह पहला अवसर है जब कि सरकार भाजपा की है। क्या राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने कभी भी इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार कर कोई कार्यवाही शुरू की ?

अगर सरकार ने कुछ भी नहीं किया तो इसे महज एक चुनावी मुद्दा ही क्यों न कहा जाय ?

© बिजय शंकर सिंह

Wednesday 27 March 2019

भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की उपलब्धियां / विजय शंकर सिंह

पीएम नरेंद्र मोदी ने बुधवार को राष्ट्र के नाम संदेश में भारत का अपना स्वदेश विकसित एंटी सैटेलाइट सिस्टम राष्ट्र को समर्पित किया।ISRO ने अपने गठन के दिन से ही कई उपलब्धियां हासिल की है। ऐसा उसके वैज्ञानिकों की प्रतिभा और मेधा से ही संभव हो सका है। आज एक और कामयाबी हासिल हुयी है। जिसकी शुभ सूचना पीएम ने दी। निश्चय ही यह हम सबके लिये गर्व का क्षण है। पर इसरो के उपग्रह प्रक्षेपण कार्यक्रम में भी सरकार के चहेते पूंजीपति घुसना चाहते हैं यह खबर कुछ दिन पहले आयी थी। इधर क्या हुआ कुछ पता नहीं चला।

पीएम ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में यह नहीं बताया कि भारत ने 2012 में ही ए-सैट क्षमताओं को हासिल कर लिया था। प्रधानमंत्री ने बुधवार सुबह राष्ट्र के नाम संदेश में कहा ,‘‘मिशन शक्ति के तहत स्वदेशी एंटी सैटेलाइट मिसाइल ‘ए-सैट’ से तीन मिनट में एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराया गया।’’ उन्होंने कहा कहा कि भारत अंतरिक्ष में निचली कक्षा में लाइव सैटेलाइट को मार गिराने की क्षमता रखने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह क्षमता केवल अमेरिका, रूस और चीन के ही पास थी।

लेकिन मीडिया ने यह नहीं बताया कि भारत ने यह क्षमता वर्ष 2012 में ही हासिल कर ली थी जब अग्नि-5 मिसाइल का परीक्षण किया गया था लेकिन आरोप है कि राजनीतिक इच्‍छाशक्ति की वजह से इसके परीक्षण की अनुमति नहीं दी गई थी। इंडिया टुडे से बात करते हुए, रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के प्रमुख वीके सारस्वत ने खुद इसका खुलासा किया था।

वीके सारस्वत के अनुसार,
" अग्नि-5 के परीक्षण के बाद भारत के पास सैटलाइट को मार गिराने की क्षमता है. ऐंटी सैटलाइट सिस्‍टम को अच्‍छे बूस्‍ट की जरूरत होती है. यह करीब 800 किलोमीटर है. अगर आप 800 किलोमीटर तक पहुंच सकते हैं और आपके पास निर्देशन प्रणाली है तो अंतरिक्ष में सैटलाइट को मार गिराया जा सकता है. भारत ने ऐंटी मिसाइल टेस्‍ट करके अपनी निर्देशन प्रणाली का टेस्‍ट पहले ही कर लिया है. हालंकि भारत इस तरह के टेस्ट नहीं करेगा. इस तरह के परीक्षण से अंतरिक्ष में मौजूदा उपग्रहों को नुकसान पहुंच सकता है। "

उन्होंने कहा था कि भारत ने कम पृथ्वी और ध्रुवीय कक्षाओं में शत्रुतापूर्ण उपग्रहों को बेअसर करने के लिए एक विरोधी उपग्रह हथियार को एकीकृत करने के लिए सभी भवन ब्लॉकों को प्राप्त कर लिया है। सारस्वत ने यह भी कहा था कि भारत की एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल (एबीएम) रक्षा कार्यक्रम का उपयोग अग्नि श्रृंखला के मिसाइलों के साथ-साथ ए-सैट हथियार के रूप में किया जा सकता है।

इसकी डीआरडीओ द्वारा पुष्टि की गई थी, जिसमें कहा गया था कि भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा कार्यक्रम उपग्रह-विरोधी हथियार विकास को शामिल कर सकता है।विशेषज्ञों के मुताबिक, ए-सैट मिसाइल सिस्‍टम अग्नि मिसाइल और एंडवांस्‍ड एयर डिफेंस (AAD) सिस्‍टम का मिश्रण है। भारत ने वर्ष 2012 के आसपास ही इन दोनों को मिलाकर अपना एंटि सैटलाइट ए-सैट मिसाइल सिस्‍टम बना लिया था।

आज जब इस उपलब्धि से हम सब गर्व का अनुभव कर रहे हैं, तो इसरो के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू , महान वैज्ञानिक विक्रम साराभाई और भारत रूसी अंतरिक्ष सहयोग कार्यक्रम की भी याद कर लेनी चाहिये। सैटेलाइट मार गिराने की क्षमता पर पीएम नरेंद्र मोदी और इसरो के वैज्ञानिक समुदाय को इस उपलब्धि की बधाई।

A-SAT काफी उन्नत तकनीक की प्रणालि है, जो अंतरिक्ष में किसी भी देश की सैन्य ताकत को दर्शाती है। संक्षेप में इस सिस्टम को इस बारे में निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।

* यह अंतरिक्ष में इस्तेमाल किए जाने वाले हथियार हैं, जिन्हें मुख्य रूप से रणनीति सैन्य गतिविधियों के लिए इस्तेमाल होने वाली दुश्मन देशों की सैटेलाइट को नष्ट करने के लिए किया जाता है।

* वर्तमान में A-SAT सिस्टम अमेरिका, चीन और रूस के पास उपलब्ध हैं। आज A-SAT के परीक्षण के साथ ही भारत इस कतार में चौथा देश बन गया है।

* अमेरिका ने 1950 में सबसे पहले इस तरह का हथियार विकसित किया। 1960 में रूस ने भी इस तरह का हथियार विकसित किया। 1963 अमेरिका ने अंतरिक्ष में जमीन से छोडे़ हुए एक परमाणु विस्फोट का परीक्षण किया, लेकिन इस परीक्षण की वजह से अमेरिका और रूस की कई सैटेलाइट खराब हो गई थीं। इसके बाद 1967 में आउटर स्पेस ट्रीटी में तय किया गया कि अंतरिक्ष में किसी तरह के विस्फोटक हथियारों को तैनात नहीं किया जाएगा।

* भारत के अलावा इजरायल A-SAT सैटेलाइट विकसित करने की प्रक्रिया में है। डीआरडीओ के डायरेक्टर जनरल डॉ. वी.के. सारस्वत ने 2010 में एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि उसके पास A-SAT विकसित करने के सभी जरूरी चीजें उपलब्ध हैं। इजरायल की एरो 3 या हत्ज 3 एंटी बैलिस्टिक मिसाइल है, जिसे कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वह एंटी सैटेलाइट के तौर पर इस्तेमाल कर सकता है।

* अमेरिका का 80 फीसदी से भी ज्यादा कम्यूनिकेशन और नैविगेशन सिस्टम सैटेलाइट पर आधारित है। इनके जरिये वह पूरी दुनिया पर नजर रखता है। इस तरह की सैटेलाइट विकसित करने की जरूरत इन सैटेलाइट की सुरक्षा करने के लिए जरूरी है। हालांकि अब तक किसी युद्ध में A-SAT सिस्टम का इस्तेमाल नहीं किया गया है। कई देशों ने अपने ही बेकार हो चुके सैटेलाइट को मार गिराने के लिए इनका परीक्षण किया है। इनमें चीन भी शामिल है।

संक्षेप में भारत के अंतरिक्ष केे कार्यक्रम के निम्न प्रमुख चरण रहे हैं।
1961- प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु ऊर्जा विभाग की स्थापना की ।
1962 - नेहरू ने इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च (इनकोस्पार- INCOSPAR) की स्थापना की।
1969 - इंदिरा गांधी ने इनकोस्पार से और ऊपर बढ़ इसरो की स्थापना की)
1975 - भारत ने पहला उपग्रह छोड़ा।
1979 - पहला एसएलवी 3 छोड़ा गया।
1993 - पहला पोलर सैटेलाइट लांच वेहिकल माने पीएसएलवी छोड़ा गया।
2013 - 25 वां पीएसएलवी छोड़ा गया।
2019 - 40वां संचार उपग्रह जियोसैट 31।लांच हुआ।
साल दर साल यह कार्यक्रम प्रगति करता रहा और भारत ने 2 अप्रैल 1984 में राकेश शर्मा को अंतरिक्ष यात्री बना कर दुनिया के अंतरिक्ष शक्ति सम्पन्न देशों में अपना स्थान बनाया है।

© विजय शंकर सिंह

विपन्नता के सागर में उभरते समृद्धि के द्वीप गिरोहबंद पूंजीवाद के दुष्परिणाम हैं / विजय शंकर सिंह

निजी क्षेत्र के तरफदार बहुत ही मासूम तर्क देते हैं कि सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की तुलना में उनका प्रबंधन अधिक कुशल होता है। पर यह तर्क तब कहां चला जाता है जब निजी क्षेत्र की बड़ी बड़ी कंपनियां या तो अपने डायरेक्टर साहबान की लालच से या अकुशल प्रबंधन से धीरे धीरे बैठने लगती हैं।वे अपना उद्योग और बढ़े इस निमित्त वे लोभ में आ जाने वाले राजनेताओं और नौकरशाहों को तरह तरह के लालच धन उपहार या अन्य तरह से उपकृत कर के एक ऐसा गिरोह तैयार कर लेते हैं कि उसके विरुद्ध खड़ा होना मुश्किल हो जाता है।

यह पूंजीवाद का निकृष्ट रूप है जिसे अंग्रेजी में क्रोनी कैपिटलिज़्म और मैं इसे हिंदी में गिरोहबंद पूंजीवाद कहता हूं। पूंजीपतियों का उद्योग, कंपनी साझेदार शेयर होल्डर और काम करने वाले कामगार डूबते तो हैं, पर पूंजीपति घराने के लोग उस विपत्ति में भी लाइफ जैकेट पहन कर निकल जाते हैं और फिर वे अपने उसी राजनेता नौकरशाही गिरोह के बलबूते एक नए धंधे की शुरुआत कर देते हैं। उनके पिछले उद्योग क्यों नहीं चले, कैसे डूब गए, उनसे जुड़े कामगारों का क्या हुआ, इस पर कोई न तो कोई कुछ कहता है और अगर कुछ पूछताछ की भी जाती है उसका जवाब नहीं मिलता है।

जब निजी क्षेत्रों के उद्योग धंधे डूबने लगते हैं तो, निजी क्षेत्र के झंडाबरदार और उफ्योगपति इससे हज़ारों लोग बेकार हो जाएंगे, बेरोजगारी बढ़ जाएगी, अर्थ व्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, इससे समाज मे अपराध बढ़ जाएगा आदि आदि तर्कों के सहारे सरकार से कभी कर्ज़ माफी तो कभी अनुदान तो कभी बेहद आसान दर पर ऋण लेने लगते है। तब हम यह भूल जाते हैं यह धन जनता के हित के लिये भी है न कि केवल चहेते पूंजीपतियों के लिये। वैसे भी  निजी क्षेत्र को व्यापार संवर्धन और विकास के नाम पर सरकारें न केवल सस्ती ज़मीन, और करों में तरह तरह छूट देती रहती है बल्कि उन्हें श्रमिक कानून में ढील दे कर और कानूनों के उल्लंघन को नज़र अंदाज़ कर कामगारों के शोषण का भी राह आसान बना देती हैं। एक ऐसा नैरेटिव बनाने की कोशिश की जाती है कि, यह निजी क्षेत्र यह उद्योगपति हमे सभी संकटों से मुक्त कराने के लिये ही अवतरित हो रहे हैं।

अब जेट एयरवेज का ही उदाहरण ले लें। जेट एयरवेज़ बैठने जा रही है। पंख समेट कर यह ज़मीन पर आ गयी है। सरकार ने 1500 करोड़ की मदद देने का निश्चय किया है। यह तो व्यापार है। नफा नुकसान लगा ही रहेगा। पर सरकार का यह अनुग्रह क्यों है। इसका एक बड़ा कारण है राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा जिसकी घोषणा न राजनीतिक दल को करनी पड़ती है और न ही सूचना के अधिकार के अंतर्गत जनता इसका विवरण जान सकती है। सारे राजनीतिक दल भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते दिखते हैं। पर इस एक प्रस्ताव पर कि राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा आरटीआई के दायरे में लाया जाए औऱ इसे सार्वजनिक वेबसाइट पर जनता के सूचनार्थ रखा जाय, खामोशी ओढ़ लेते हैं। क्यों ?

गिरोहबंद पूंजीवाद की संक्रामकता से केवल भाजपा और मोदी सरकार ही नहीं रुग्ण है बल्कि कांग्रेस भी अपवाद नहीं है। 1991 के बाद आने वाली मुक्त अर्थव्यवस्था ने देश के अर्थ जगत और जनता के आर्थिक स्तर की कायापलट तो की पर पूंजीपति, नौकरशाही और राजनीतिक सत्ता के गठजोड़ ने जो एक धुरी बनायी वह गिरोहबंद पूंजीवाद बना। इसे क्रोनी कैपिटलिज़्म कहते हैं। कहीं कहीं इसे हिंदी में इसे याराना पूंजीवाद कहते हैं। मैं इसे गिरोहबंद पूंजीवाद कहता हूं। राजनीतिक सत्ता, चहेते पूंजीपतियों और राजसत्ता के करीबी तथा भ्रष्ट नौकरशाही का यह कॉकटेल सारे कायदे कानून को ताक पर रख केवल कुछ चहेते पूंजीपतियों के लाभ के लिये जो तँत्र खड़ा होता है वह पूंजीवाद का निकृष्टतम रूप होता है। यही व्याधि छत्तीसगढ़ की नयी कांग्रेस सरकार के राज में भी आ धमकी है।

यह केवल एक यूटोपिया है कि निजी क्षेत्र और पूंजीवाद एक स्वस्थ प्रतियोगिता करता है और वह सरवाइवल ऑफ द फिटेस्ट के सिद्धांत पर जो सबसे बेहतर है वही समाज को देता है। सच तो यह है कि निजी क्षेत्र स्वार्थ में सिकुड़ते सिकुड़ते एक ऐसा ककून गढ़ लेता है जो दीवार के पार न कुछ देख पाता है और न कुछ सुन पाता है। यह ककून स्वार्थांधता, लोभ, जहां तक मैं देखता हूँ, वहां तक मेरा ही साम्राज्य है, की मानसिकता का है। वह प्रचार, प्रोपेगैंडा और चमक का मायाजाल रच देता है, और उस चमक भरे वृत्त के अंदर सब कुछ सुंदर और दैव निर्मित लगने लगता है। उस वृत्त से परे अव्वल हो हम कुछ देखना नहीं चाहते हैं और दिखता भी है तो सड़क के चौराहे पर खड़ी कार के शीशे से झांकते हुये भिखारी को देख कर जैसे हम निर्विकार बन जाते हैं वैसे ही हो जाते हैं।

एक दिन चंद लोगों की यही समृद्धि जो विपन्नता, अभाव, शोषण, असमानता का परिणाम है, महासागर में स्थित एक द्वीप मे  तब्दील हो जाती है और जब भी कभी जनता के धीरज का बांध तोड़ कर विक्षोभ उभरता है तो उस सुनामी से समृद्धि और चकाचौंध भरा यह द्वीप तहस नहस हो जाता है। कालचक्र कभी नहीं थमता है।

© विजय शंकर सिंह