Saturday 10 July 2021

हफ़ीज़ किदवई - संस्कृति - शिव

वो जिसने देवता क्या राक्षसो का भी ख्याल किया।सबको बराबर की मोहब्बत दी।उन सबके हिस्सों का ज़हर खुद पी लिया।वो जिनको मानने में देवता,इंसान,जानवर,राक्षस,संत सब हैं।आप सबको शिव त्रिशूल में दिखते होंगे हमे तो हर कोमल ह्रदय में शिव दिखते हैं।जिनको सबके जज़्बात का एहसास है।जो बिना किसी चालाकी के सबके अपने हैं।हर एक की पहुँच में हैं। पाप पुण्य से ऊपर,वही तो शिव हैं।

शिव की तीसरी आँख से पहले कोमल दिल को देखो।आँख तो एक झटके में दिख जाएगी मगर बर्फ़ से ठंडे बदन में दिल तब दिखेगा जब दिल से देखोगे।मासूमियत तब दिखेगी जब दिल में शिव के लिए सच्ची मोहब्बत होगी।

उनके दिल में उतारे बिना मानने वाले ज़हर उगल सकते हैं मगर उनसे मोहब्बत करने वाले,उन्हें अपने दिल में जगह देने वाले तो ख़ुद ज़हर पीते हैं।इंसानियत की ख़ुशी के लिए हम ज़हर पी ले तभी तो हम शिव के हैं और शिव हमारे हैं।

बिना फ़र्क किये सबको गले लगाए तभी तो आपमे शिव होंगे। सांप जिनके गले में लिपटकर अपने को सुरक्षित महसूस करे और गंगा का शीतल जल उस एक ही जिस्म में बसे,ऐसे विशाल ह्रदय के हैं मेंरे शिव। हाँ मेरे शिव, हम तो उनसे मोहब्बत करते हैं।

मैं पलट कर देखता हूँ तो सर झुक जाता है की शिव का दिल कितना बड़ा और मासूम था।कौन नही था जो शिव तक आसानी से पहुँच जाता था,किसे आखिर शिव हासिल नही थे।उनको पाने में न कोई शर्ते,न बन्धन,न नियम वोह तो सबके हैं।नीले जिस्म में मौजूद सफ़ेद रँग सा ठहराव ऊपर से चेहरे पर दूर तक बिखरी मुस्कान अपने आप में सारा संसार लपेटे हुए।

पार्वती को अपने समक्ष बैठा कर औरत के बराबरी के दर्जे की हिमायत करते शिव आखिर हमें क्यों नही दिखते।प्रकृति के हर सजीव में कोई विभेद किये बिना वोह सबके हैं।जानवर,कीड़े मकौड़े,पक्षी,मछली,इंसान सब तो शिव की चौखट तक आसानी से पहुँच सकते हैं, क्योंकि शिव आकार, लिंग,विचार सबको पार करके ही तो गले लगाते हैं।मुझे शिव से मोहब्बत।शिव को मुझसे मोहब्बत है।जहाँ मोहब्बत होगी वहाँ किसी तरह का भेद नही होगा।वही तो शिव होंगे।

मोहब्बत शिव में है, शिव मोहब्बत में है।हो सके तो उनके नाम लेकर चीख़ पुकारने से अच्छा है, उनके ह्रदय के गुलाबीपन को महसूस करयेगा।मेरे शिव बड़ी आसानी से मोहब्बत वाले दिल में उतर जाते हैं।जिस दिन तुम्हारी ज़बान से शिव या भोले,तुम्हारे ह्रदय में उतर जाएँगे वही दिन महाशिवरात्रि होगी।वही मेरे शिव का पर्व होगा,मोहब्बत का पर्व,निर्माण का पर्व,ज़हर पीकर दूसरे को ज़िन्दगी देने का पर्व,मेरे शिव का मूल यही तो है। शिव इस मिट्टी की  संस्कृति की महक हैं। 

हफ़ीज़ किदवाई
© Hafeez Kidwai
#vss

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