Sunday 4 July 2021

असग़र वजाहत का यात्रा वृतान्त - यज़्द (3)

पहले ज़माने में घर बनते थे रहने के लिए। आजकल बनते हैं बेचने के लिए। दोनों में बहुत फर्क है ।और यह समझने के लिए  यज़्द के पुराने शहर को देखना बहुत जरूरी है । यूनेस्को ने सन 2017  इस प्राचीन शहर को वर्ल्ड हेरिटेज  का दर्जा दिया है।

रहने में लिए घर की जरूरत क्यों पड़ती है? असहनीय गर्मी जाड़ा, तूफान और बारिश से बचने के लिए। सुरक्षा के लिए। घर बनाते समय यह ध्यान रखा जाता है कि रहने वालों को आराम मिले,हवा मिले, पानी मिले, मकान में अच्छा लगे और हर मौसम में उसका उपयोग  हो सके। मकान  अच्छा लगे। इसी के साथ साथ मकान बनाने के लिए सामग्री जुटाने के लिए कहीं दूर न जाना पड़े। स्थानीय साधनों से मकान बन जाए।

यज़्द की पुरानी बस्ती में मिट्टी के घर हैं ।लकड़ी के दरवाजे ।छोटी छोटी खिड़कियां है ।घर के अंदर आंगन, बरामदे, दालान और कोठरियां है। रोशनी और हवा आने की पूरी व्यवस्था है। और सबसे बड़ी बात यह है कि सहज सुंदरता है। यज़्द  में बनी मिट्टी की इमारतों की वास्तुकला किसी तरह आधुनिकीकरण से बच निकली है। 
यज़्द शहर मसलों और रेशम रोड के करीब ईरान के रेगिस्तान में स्थित है। यह शहर इस बात का प्रमाण है कि जीवित रहने के लिए रेगिस्तान में सीमित उपलब्ध संसाधनों का समझदारी से  कैसे उपयोग किया जा सकता है। पानी को एक पुरानी करीज़ (Qant) प्रणाली द्वारा शहर में लाया जाता है। शहर का प्रत्येक  हिस्सा एक करीज़ पर बनाया गया है।

मकानों के आंगन न सिर्फ खुलापन एहसास कराते हैं बल्कि मिट्टी की मोटी मोटी दीवारों के बीच एक सुखद वातावरण बनाते हैं ।यूरोप के मकानों से बिल्कुल अलग यहां कोई बेडरूम नहीं होता। जैसा हमारे यहां होता था, मौसम के हिसाब से चारपाई आंगन से दालान में आ जाती थी और फिर कोठरी में चली जाती थी। वैसे ही यहां भी होता है ।

गर्मी से बचने के लिए छतेरी गलियां देखी जा सकती है। इन गलियों में धूप और गर्मी का इतना असर नहीं पड़ता जितना खुली हुई गलियों में पड़ता है। इस तरह की गलियां मैंने लेह में भी  देखीं हैं। लेह में ऐसी गलियां सर्दी से बचने के लिए होती है और यहां गर्मी से बचने के लिए।

मिट्टी की इस बस्ती में एक अजीब तरह की मासूमियत दिखाई देती है जैसे बच्चों के बनाये घरौंदों में नजर आती है।

© असग़र वजाहत
#vss

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