Monday 30 October 2017

पी चिदंबरम का बयान - स्वायत्तता या स्वाधीनता - संदर्भ कश्मीर - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

चिंदम्बरम का यह बयान कि कश्मीर में आज़ादी का अर्थ उन्होंने स्वायत्तता समझा है, विवादों के घेरे में है । पी. चिंदम्बरम के शब्द इस प्रकार है ,
"The demand in the Kashmir Valley is to respect the letter and spirit of Article 370, that means they want greater autonomy. My interactions in Jammu and Kashmir led me to the conclusion that when they ask for azadi, mostly, I am not saying all... the overwhelming majority, they want autonomy,"
चिंदम्बरम, देश के गृह मंत्री भी रहे हैं । उनके अनुसार जैसा विभिन्न लोगों से कश्मीर के बारे में विचार विमर्श से मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि कश्मीर के लोग अधिक स्वायत्तता चाहते हैं । वे इसी स्वायत्तता को आज़ादी कह कर व्यक्त करते हैं ।

चिंदम्बरम के इस बयान पर कोई भी प्रतिक्रिया व्यक्त करने के पहले जम्मू और कश्मीर में गठित भाजपा और पीडीपी गठबंधन की सरकार का न्यूनतम साझा कार्यक्रम का भी पारायण करना चाहिये । उक्त साझा कार्यक्रम में, कहा गया है कि,
The government will ensure genuine autonomy of institutions of probity which include the state accountability commission, vigilance commission, which will be re-designated as transparency commission and an organisation which deals with the Right to Information Act.
( सरकार संस्थाओं की वास्तविक और औचित्यपूर्ण स्वायत्तता हो यह सुनिश्चित करेगी । )
यह स्वायत्तता का मुद्दा उस साझे न्यूनतम कार्यक्रम में भी है । पीडीपी प्रारम्भ से ही हुर्रियत , जो पाक परस्त और पाक पोषित संगठन है के नज़दीक रही है । पीडीपी अपने इस रुख को छुपाती भी नहीं है ।

The PDP and the BJP on Sunday released the common minimum programme (CMP) for running the coalition government in Jammu and Kashmir.
Here are the 15 highlights of the CMP:

1) To meet the political and economic objectives of the alliance, it is important to create an environment of peace, certainty and stability.

2) The government will be transformed into a 'smart government' which will be pro-active, transparent and accountable.

3) It shall be the mission of the government to be the most ethical state in the country from the present day position of being the most corrupt state.

4) The overall economic policy will align the economic structure of Jammu and Kashmir with its own resources, skills and society.

5) The government will ensure genuine autonomy of institutions of probity which include the state accountability commission, vigilance commission, which will be re-designated as transparency commission and an organisation which deals with the Right to Information Act.

6) Following the principles of "Insaniyat, Kashmiriyat and Jamhooriyat" of the earlier NDA government led by Atal Bihari Vajpayee, the state government will facilitate and help initiate a sustained and meaningful dialogue with all internal stakeholders which include political groups irrespective of their ideological views and predilections.

The dialogue will seek to build a broad based consensus on resolution of all outstanding issues of the state.

7) The government will examine the need for de-notifying disturbed areas which will as a consequence enable the union government to take a final view on the continuation of the Armed Forces Special Powers Act (AFSPA) in these areas.

😎 Article 370: The present position will be maintained on all constitutional provisions including special status.

9) Dialogue with Hurriyat Conference: The coalition government will facilitate sustained dialogue with all stakeholders irrespective of their ideological views.

10) All the land other than those given to the security forces on the basis of lease, licenses and acquisition under the provision of the land acquisition act shall be returned to the rightful owners except in a situation where retaining the land is absolutely imperative in view of a specific security requirement.

11) The government will work out a one-time settlement for refugees from Pakistan occupied Kashmir of 1947, 1965 and 1971.

12) The government will take measures for sustenance and livelihood of the West Pakistan refugees.

13) It will extend all benefits accruing to the people living on the Line of Control (LoC) to the people living on the international border.

14) It will secure a share in the profits of NHPC emanating from Jammu and Kashmir's waters to the state government.

15) It will reverse all royalty agreements with NHPC.

चिंदम्बरम के बयान को अलगाववाद से जोड़ कर देखा जा रहा है। किसी भी व्यक्ति के बयान का मीन मेख निकाला जाना चाहिये । कश्मीर एक संवेदनशील मुद्दा है और आज़ादी के बाद से ही पाकिस्तान की गिद्ध दृष्टि उस पर लगी है । सरकार को चाहिये कि चिंदम्बरम से बयान की समीक्षा करे और अगर यह बयान देश के किसी कानून का उल्लंघन है तो कार्यवाही करे। चिंदम्बरम को भी स्वायत्तता और आज़ादी का अर्थ समझाते हुये अपनी बात रखनी चाहिये । सामान्यतः स्वायत्तता , स्वतंत्रता नहीं है । स्वायत्तता किसी नए संविधान या संप्रभुता की बात नहीं करता है । भाजपा ने खुद ही स्वायत्तता पर विचार करने की सहमति पीडीपी के साथ अपने न्यूनतम साझा कार्यक्रम में किया है । इसी कार्यक्रम में संविधान की धारा 370 को भी जस का तस रखने की सहमति है।

© विजय शंकर सिंह

Sunday 29 October 2017

अल्लामा इक़बाल की एक नज़्म - दुआ / विजय शंकर सिंह

कोई उरूज़ दे न ज़वाल दे, मुझे सिर्फ इतना कमाल दे,
मुझे अपनी राह में डाल दे, कि ज़माना मेरी मिसाल दे ।

तेरी रहमतों का नुज़ूल हो, मुझे मेहनतों का सिला मिले,
मुझे माल ओ ज़र की हवस नहीं, मुझे बस तू रिज़्क़ ए हलाल दे ।

मेरे जेहन में तेरी फिक्र हो, मेरी सांस में तेरा ज़िक्र हो,
तेरी खौफ मेरी निजात हो, सभी खौफ दिल से निकाल दे ।

तेरी बारगाह में ऐ खुदा, मेरी रोज़ ओ शब है यही दुआ,
तू रहीम है तू करीम है, मुझे मुश्किलों से निकाल दे ।
****

अल्लामा इक़बाल, सर मुहम्मद इक़बाल ( 9 नवम्बर 1877 – 21 अप्रैल 1938 ) अविभाजित भारत के प्रसिद्ध कवि, नेता और दार्शनिक थे।उर्दू और फ़ारसी में इनकी शायरी को आधुनिक काल की सर्वश्रेष्ठ शायरी में गिना जाता है।

इकबाल के दादा सहज सप्रू हिंदू कश्मीरी पंडित थे जो बाद में सिआलकोट आ गए। इनकी प्रमुख रचनाएं हैं: असरार-ए-ख़ुदी, रुमुज़-ए-बेख़ुदी और बंग-ए-दारा, जिसमें देशभक्तिपूर्ण तराना-ए-हिन्द (सारे जहाँ से अच्छा) शामिल है। फ़ारसी में लिखी इनकी शायरी ईरान और अफ़ग़ानिस्तानमें बहुत प्रसिद्ध है, जहाँ इन्हें इक़बाल-ए-लाहौर कहा जाता है। इन्होंने इस्लाम के धार्मिक और राजनैतिक दर्शन पर काफ़ी लिखा है। दुआ उनकी एक प्रसिद्ध नज़्म है ।

वृंदावन और बरसाना नये तीर्थ नहीं हैं / विजय शंकर सिंह

सरकार ने एक फरमान जारी किया है कि, बरसाना और वृंदावन तीर्थ स्थल माने जाएंगे । यह घोषणा न केवल हास्यास्पद है बल्कि यह सरकार की अज्ञानता को प्रदर्शित कर रही है । दर असल सरकार इस ग्रन्थि से पीड़ित है कि उसके आने के पूर्व देश मे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है जिसे सनातन धर्म या हिन्दू धर्म का हित हुआ हो । खुद को एकमात्र धर्म का रक्षक प्रदर्शित करने की यह कसरत अक्सर सरकार से ऐसे फैसले कराती है जिस से वह खुद को असहज परिस्थितियों में पाने लगती है । इसी फैसले को लें । यह फैसला मथुरा वृंदावन को ले कर है । मथुरा सात पवित्र पुरियों नगर में पौराणिक काल से ही मानी जाती रही है । यह सात पवित्र नदियों में से एक यमुना के किनारे स्थित है । यह सनातन अवतारों में से एक, पूर्णावतार कृष्ण की जन्म स्थली रही है । हज़ारों साल से ब्रज चौरासी की यात्राएं चलती रही है । ये नगर या कोई भी सनातन धर्म से जुड़ा तीर्थ या स्थान किसी सत्ता के राज्याश्रय की अपेक्षा नहीं करता है ।

वृंदावन और बरसाना तो प्राचीनकाल से ही तीर्थ रहे हैं। यह कृष्ण की लीलास्थली है। हरिवंश पुराण, श्रीमद्भागवत, विष्णु पुराण आदि में वृन्दावन की महिमा का वर्णन किया गया है। कालिदास ने इसका उल्लेख रघुवंश में इंदुमती-स्वयंवर के प्रसंग में शूरसेनाधिपति सुषेण का परिचय देते हुए किया है इससे कालिदास के समय में वृन्दावन के मनोहारी उद्यानों की स्थिति का ज्ञान होता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार गोकुल से कंस के अत्याचार से बचने के लिए नंदजी कुटुंबियों और सजातीयों के साथ वृन्दावन निवास के लिए आये थे। विष्णु पुराण में इसी प्रसंग का उल्लेख है। विष्णुपुराण में अन्यत्र वृन्दावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन भी है।

वृंदावन के स्थान विशेष पर विवाद भी है। कहते है कि वर्तमान वृन्दावन असली या प्राचीन वृन्दावन नहीं है। श्रीमद्भागवत के वर्णन तथा अन्य उल्लेखों से जान पड़ता है कि प्राचीन वृन्दावन गोवर्धन के निकट था। गोवर्धन-धारण की प्रसिद्ध कथा की स्थली वृन्दावन पारसौली (परम रासस्थली) के निकट था। अष्टछाप कवि महाकवि सूरदास इसी ग्राम में दीर्घकाल तक रहे थे। सूरदास जी ने वृन्दावन रज की महिमा के वशीभूत होकर गाया है-हम ना भई वृन्दावन रेणु | कुछ लोग नन्दगाँव और बरसाना से थोड़ी दूर स्थित आदि वृंदावन को मूल वृंदावन मानते है। 

15वीं शती में चैतन्य महाप्रभु ने अपनी ब्रजयात्रा के समय वृन्दावन तथा कृष्ण कथा से संबंधित अन्य स्थानों को अपने अंतर्ज्ञान द्वारा पहचाना था। रासस्थली, वंशीवट से युक्त वृन्दावन सघन वनों में लुप्त हो गया था। कुछ वर्षों के पश्चात शाण्डिल्य एवं भागुरी ऋषि आदि की सहायता से श्री वज्रनाभ महाराज ने कहीं श्रीमन्दिर, कहीं सरोवर, कहीं कुण्ड आदि की स्थापनाकर लीला-स्थलियों का प्रकाश किया। किन्तु लगभग साढ़े चार हज़ार वर्षों के बाद ये सारी लीला-स्थलियाँ पुन: लुप्त हो गईं, महाप्रभु चैतन्य ने तथा श्री रूप-सनातन आदि अपने परिकारों के द्वारा लुप्त श्रीवृन्दावन और ब्रजमंडल की लीला-स्थलियों को पुन: प्रकाशित किया। श्री चैतन्य महाप्रभु के पश्चात उन्हीं की विशेष आज्ञा से श्री लोकनाथ और श्री भूगर्भ गोस्वामी, श्री सनातन गोस्वामी, श्री रूप गोस्वामी, श्री गोपालभट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथ भट्ट गोस्वामी, श्री रघुनाथदास गोस्वामी, श्री जीव गोस्वामी आदि गौड़ीय वैष्णवाचार्यों ने विभिन्न शास्त्रों की सहायता से, अपने अथक परिश्रम द्वारा ब्रज की लीला-स्थलियों को प्रकाशित किया है । वर्तमान वृन्दावन में प्राचीनतम मंदिर राजा मानसिंह का बनवाया हुआ है। यह मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में बना था। मूलत: यह मंदिर सात मंजिलों का था। ऊपर के दो खंड औरंगज़ेब ने तुड़वा दिए थे। कहा जाता है कि इस मंदिर के सर्वोच्च शिखर पर जलने वाले दीप मथुरा से दिखाई पड़ते थे। 

वृंदावन में निधिवन, बिहारी जी का मंदिर आदि तो बहुत ही पुराने हैं । अब तो इस्कॉन, रंग जी का मंदिर, पागल बाबा का मंदिर आदि अनेक मंदिरों सहित बहुत से आश्रम और धर्मशालाएं खुल गयी है । वहाँ आमिष भोजन तो पहले से ही वर्जित है । वहां अगर आमिष भोजन खाने वाला जाता भी है वह निरामिष भोजन ही ग्रहण करता है । वृंदावन महान संगीत साधक स्वामी हरिदास की भी कर्मभूमि है। उनके सम्मान में हर साल यहां स्वामी हरिदास संगीत सम्मेलन का आयोजन होता है । एक सप्ताह तक चलने वाले इस पर्व में गायन वादन और नृत्य की विधा के अनेक महान कलाकार निःशुल्क आते हैं । मैंने खुद कथक के उस्ताद बिरजू महाराज, बाँसुरी वादक हरिप्रसाद चौरसिया, सरोद के उस्ताद अमज़द अली खान, नृत्य के यामिनी कृष्णमूर्ती को सुना और देखा है ।

इसी प्रकार बरसाना जो राधा जिसे श्री जी भी कहते है का गांव है । यह भी तीर्थ है । गांव के पश्चिम में ही एक बड़े से टीले पर जयपुर राज का बनवाया हुआ श्री जी का मंदिर है । वृंदावन की अपेक्षा यहां यात्री कम आते हैं । इसका एक कारण है यह मथुरा से दूर है। वृंदावन तो एनएच 2 पर है और अधिक प्रसिद्ध हैं । अब बरसाना में कई धर्मशालाएं खुल गयी हैं । ब्रज क्षेत्र के लोग अधिकतर  निरामिष भोजन ही ग्रहण करते हैं । इसका कारण यहाँ वैष्णव परंपरा का प्रभाव है । यहां की लठामार होली तो जगत प्रसिध्द है । इसका जीवंत प्रसारण दूरदर्शन पर प्रारम्भ से ही होता रहा है ।

मथुरा के आसपास के तीर्थो में इनके अतिरिक्त गोवर्धन, जहां हर पूर्णिमा को गिरिराज जी की परिक्रमा होती है , बलदेव जो होली के अवसर पर दाऊ जी का हुरंगा के लिये प्रसिद्ध है, गोकुल जो जहां कृष्ण के बालपन के दिन गुजरे थे आदि ब्रज चौरासी की परिक्रमा क्षेत्र में आते हैं । यह सब तीर्थ हैं । मथुरा तो कृष्ण की जन्मभूमि है ही।

सरकार ने इन तीर्थों को पुनः तीर्थ घोषित किया है , जब कि ये सभी तीर्थ पहले से ही वैष्णव परम्परा में मान्य तीर्थ है । सरकार का पर्यटन विभाग भी इनको पहले से ही तीर्थ मान रहा है । लेकिन इन देशी तीर्थो के ऊपर सरकार का नहुत ध्यान नहीं है । वृंदावन तो नगर पालिका है पर और तीनों तीर्थ टाउन एरिया है । यह एक दुःखद स्थिति है कि सरकार के पर्यटन विभाग उन्हीं स्थानों की देखभाल पर अधिक ध्यान डेता है जहां विदेशी पर्यटक अधिक आते हैं  । सरकार का ध्यान इन तीर्थों को साफ सुथरा, अपराध से मुक्त करने और जनापेक्षित शासन व्यवस्था देने की ओर भी होना चाहिये । 

© विजय शंकर सिंह 

नागार्जुन की एक कविता - शासन की बंदूक / विजय शंकर सिंह

उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक

बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक

सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक
जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक

जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक
बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक ।

#नागार्जुन ( 30 जून 1911 - 5 नवंबर 1998 ),  हिन्दी और मैथिली के अप्रतिम लेखक और कवि थे। उनका असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था परंतु हिन्दी साहित्य में उन्होंने नागार्जुन तथा मैथिली में यात्री उपनाम से रचनाएँ कीं। उनकी यह कविता, 1975 से 77 तक आपातकाल के दिनों की है । आपातकाल, इतिहास का केवल एक कालखंड ही नहीं है बल्कि यह बेहया और खुदगर्ज़ी भरे लोकतांत्रिक सत्ता का के अधोपतन का एक दस्तावेज भी है । इनकी कविताएं जन समस्याओं को स्वर देती हैं । नागार्जुन को 1968 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से उनके ऐतिहासिक मैथिली रचना पत्रहीन नग्न गाछ के लिए नवाजा गया था। उन्हें साहित्य अकादमी ने 1994 में साहित्य अकादमी फेलो के रूप में नामांकित कर सम्मानित भी किया था। आपातकाल पर नागार्जुन ने बहुत ही सुंदर कविताएं लिखी है । उनकी एक कविता, ' आओ रानी हम ढोएंगे पालकी ' और यह कविता,  शासन की बंदूक ' बहुत ही लोकप्रिय हुयी है । जिस तरह की अभिव्यक्ति पर बौखलाहट भरे कदम उठा कर सरकार गिरफ्तारी आदि की कार्यवाही कर रही है वह आपातकाल के दिनों को ही याद दिलाती है ।

© विजय शंकर सिंह

Saturday 28 October 2017

ईसा मसीह तमिल ब्राह्मण थे - गणेश दामोदर सावरकर - एक चर्चा / विजय शंकर सिंह

1946 में एक किताब में यह दावा आरएसएस के प्रारंभिक पांच संस्थापकों में से एक गणेश दामोदर ( बाबूराव ) सावरकर ने किया है,  कि जीसस क्राइस्ट #ईसामसीह मूलतः तमिलनाडु के थे और वे विश्वकर्मा #ब्राह्मण थे । यह शोध, बेथेलहेम, यरूशलेम , मरियम, तारे की तलाश और न्यू टेस्टामेंट के सभी तथ्यों को उलट पुलट देता है । मराठी में लिखी यह पुस्तक 26 फरवरी 2017 को स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक द्वारा दुबारा विमोचित की गयी है । उनके निष्कर्ष इस प्रकार हैं ।

1. गणेश दामोदर का दावा है कि ईसाई धर्म हिन्दू धर्म की एक शाखा है  
Ganesh Damodar claims that Christianity is a sect of Hinduism.

2. आज का फिलिस्तीन और अरब के इलाके हिन्दू भूमि थी।
The present day Palestinian and Arab territories were a Hindu land.

3. वे यह भी कहते हैं कि ईसा ने भारत की यात्रा की और उन्होंने योग की शिक्षा की ।
( वैसे यह बात कई पाश्चात्य विद्वानो ने भी कहा है कि ईसा ने लम्बे समय तक भारत मे रहे हैं । )
He went on to say that Christ traveled to India and learnt yoga.

4. ईसा का मूल नाम केशव, कृष्णा था। वे सांवले थे और उनकी मातृभाषा तमिल थी।
Christ's real name was Keshao Krishna, according to the author. He even had a dark complexion and his mother tongue was Tamil.

5. ईसा का यग्योपवीत संस्कार जनेऊ भी जब वे 12 साल के थे तो ब्राह्मण कर्मकांड के अनुसार सम्पन्न हुआ था और वे यग्योपवीत पहनते थे ।
Christ's sacred thread ceremony (janeyu) was held when he was 12, according to Brahmin tradition. He even wore a sacred thread.

6. ईसाई धर्म कभी भी एक स्वतंत्र और अलग धर्म नहीं रहा है। यह एक हिन्दू धर्म की ही एक उपासना पद्धति है जिसे ईसा ने शुरू किया था ।
Apparently, Christianity was never a separate religion and it was a Hindu cult and doctrine introduced by Christ.

7. ईसा को जब सूली पर चढ़ाया गया तो उन्हें मृत्यु से एस्सेन तन्त्र द्वारा बचाया गया था जो मूलतः तंत्र और आध्यात्म विज्ञान की ही एक विधा थी।
Christ was saved after his crucifixion by people from the Essene's cult, who practiced Yoga and spiritual science.

8. उन्हें म्रत्यु से बचाने के लिये औषधीय वनस्पतियों की दवा दी गयी थी। उन्हें कश्मीर ला कर उनकी चिकित्सा की गई थी।
He was given medicinal herbs and plants for his recovery from the 'deathbed'. Christ also was taken to Kashmir.

9. कश्मीर में ही उन्होंने शिव की आराधना की और उनके अंतिम समय कश्मीर में ही बीते ।
It was in Kashmir that Christ prayed to Lord Shiva and he spent the last days of his life in the Himalayas.

10. दामोदर का यह भी दावा है कि, ईसा के परिवार के लोग भारतीय परिधान पहनते थे और उनके शरीर पर हिन्दू चिह्न भी थे ।
Damodar claims that Christ's family dressed in an 'Indian' way and had Hindu signs on their bodies.

रंजीत सावरकर जो इस संस्थान के प्रमुख हैं और लेखक के पौत्र हैं  का कहना है कि-
'इस पुस्तक का 70 सालों के बाद दोबारा विमोचन करने के पीछे कोई दुर्भावना नहीं है. ये मेरे दादा जी की लिखी कुछ पुस्तकों में से एक है. ये पुस्तकें अब उपलब्ध नहीं हैं इसलिए पाठकों के हित के लिए दोबारा इनका विमोचन किया जा रहा है. हमें पता है कि इसपर सवाल उठाए जाएंगे. लेकिन गणेश सावरकर ने किताब में जो भी लिखा वो नया नहीं है. इसे लिखने से पहले काफी रिसर्च की गई थी.'

जब सभी मूलतः हिन्दू ही हैं तो विवाद किस बात का। यही मान कर कम से कम चैन से रहिये और सबका साथ लीजिये और सबका विकास कीजिये ।

© विजय शंकर सिंह

स्पेन से अलग हो कर कैटोलेनिया अलग देश बना / विजय शंकर सिंह

स्पेन से टूट कर एक नया राज्य बना है कैटोलेनिया । इस शिशु राष्ट्र का जन्म दुनिया भर में ढिंढोरा पीट रहे पूंजीवाद जन्य उत्पन्न आर्थिक संकट का परिणाम है । कातालोन्या या कॅटालोनिया 17 स्वायत्त समुदायों में से एक है। स्वायत्त समुदाय स्पेन का सबसे उच्च-स्तरीय प्रशासनिक विभाग होता है। कातालोन्या देश के उत्तर-पूर्व में स्थित है व उत्तर में इसकी सीमा फ्रांस और अण्डोरा से छूती है। पूर्व में इसके भूमध्य सागर, पश्चिम में आरागोन और दक्षिण में वैलेंसियाई समुदाय है। इसकी राजधानी और सबसे बड़ा नगर बार्सिलोना है, जो स्पेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर व यूरोप के सबसे बड़े महानगरीय क्षेत्रों में से एक है। इसकी आधिकारिक भाषाओं में स्पेनी, कैटलन और ऑक्सिटन की उपभाषा आरानेस है ।

कैटेलोनिया लंबे समय से स्पेन से अलग होने की मांग कर रहा था।  कैटेलोनिया का वित्तीय दबदबा अधिक था और वहां के लोगों का आरोप था कि उन्हें इसका फायदा नहीं मिल रहा है. हाल ही में इस विवाद को लेकर हिंसा भी बढ़ी और कैटेलोनिया में हिंसा के बीच एक जनमत संग्रह करवाया गया, जिसमें भाग लेने वाले 90 फीसदी लोगों ने स्पेन से अलग होने की मांग रखी. यह जनमत संग्रह 1 अक्टूबर को करवाया गया था, जिसे स्पेन ने अवैध बताया है. प्रधानमंत्री मारियानो रहोई ने कहा है कि जनमत संग्रह हुआ ही नहीं है. स्पेन में साल 2015 के चुनाव में कैटेलोनिया अलगाववादियों को जीत मिली थी. इस चुनाव के दौरान ही इन्होंने कैटेलोनिया को आजाद कराने के लिए जनमत संग्रह कराने का वादा किया था. साल 1977 में तानाशाही से उबरने के बाद से यह स्पेन में सबसे बड़ा राजनीतिक संकट माना जा रहा था ।

विश्व राजनीति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा यह देखना दिलचस्प होगा। कैटालोनिया के अलग और स्वाधीन होने के बाद अभी तक दुनिया के बड़े देशों, अमेरिका, कैनाडा, मैक्सिको और यूरोपीय यूनियन ने मान्यता नहीं दी है ।

कैटालोनिया की धर्मिक स्थिति इस प्रकार है ।
कैथोलिक चर्च - 52.4%
नास्तिकवाद - 18.2%)
अज्ञेयवाद ( Agnosticism ) - 12%
इस्लाम - 7.3%
प्रोटेस्टेंट - 2.5%
अन्य धार्मिक विश्वास - 2.3%
बौद्ध धर्म - 1.3%
रूढ़िवादी चर्च ( Orthodox Church - 1.2%
जेहोवा को मानने वाले ( Jehovah's Witnesses ) - 0.4℅
जिन्हें अपना धर्म नहीं पता है - 2.4%

इस हलचल पर मुकेश असीम की फेसबुक पर लिखा गया यह अंश यह अंश पढ़ें।
" कैटालोनिया की आजादी की ऐलान
कुछ साल के गंभीर आर्थिक संकट ने ही यूरोप में जनतंत्र और समानता की कलई पूरी तरह खोल दी है| पूंजीवाद के असमाधेय संकट के असर में अर्थव्यवस्था के इलाकाई, भाषाई फर्क सामने आ गए हैं और पूंजीवाद विरोधी शक्तियों की कमजोरी के कारण यह असंतोष अब पूरे यूरोप में राष्ट्रीयताओं के दबे पड़े द्वंद्वों, टकरावों को तेजी से उभार रहा है - स्पेन के साथ कैटालोनिया, ब्रिटेन के साथ स्कॉटलैंड/आयरलैंड/वेल्स,  इटली में लोम्बार्डी/वेनेटिआ, बेल्जियम में फ्लेमिश, फ़्रांस/स्पेन में बास्क, कनाडा में क्यूबेक, अमेरिका में उत्तर-दक्षिण-मिड वेस्ट पहले ही खबरों में हैं पर दूसरे देशों में भी ऐसी ही स्थितियां जल्दी ही उभार ले सकती हैं| इन सभी के मूल में शिकायतें आर्थिक हैं - संसाधनों का बंटवारा, क्षेत्रीय विकास की समस्याएं, आदि - जो पूंजीवादी आर्थिक व्यवस्था के असमतल / अव्यवस्थित विकास का नतीजा हैं|

साथ ही जनतंत्र की रक्षा, जनता की इच्छा के सम्मान और मानवाधिकारों के रक्षक अमेरिका-यूरोप के पूंजीवादी देशों का ढोंग-कपट भी नग्न रूप में प्रस्तुत हो रहा है - अब जनता द्वारा चुनी हुई सरकार की बात कोई नहीं कर रहा, संसद-चुनाव-प्रतिनिधित्व सबको पुलिस-फ़ौज के बूटों तले कुचलने से जनतंत्र को कोई खतरा इन्हें नजर नहीं आ रहा! जिसके लिए ये देश दुनिया भर के गरीब मुल्कों में बम बरसाते रहे, करोड़ों का क़त्ल किया अब उस पर किसी जनतंत्र-मानवाधिकार प्रेमी को कोई ऐतराज नहीं! "

© विजय शंकर सिंह

असग़र वजाहत की एक कहानी - भगवान की आरामगाह / विजय शंकर सिंह

भगवान का कोई भी नाम हो सकता है, लेकिन उनका नाम भगवान है । तो भगवान जज के सामने खड़े हैं।
जज - तुम पर आरोप है कि तुम लोगों का भेजा खा गए हो ।
भगवान -  भेजा खाना कोई अपराध नहीं है।
जज - भेजा  खाना तो सबसे बड़ा अपराध है ।
भगवान -  क्यों? कैसे कैसे?
जज - मैं  तुम्हें बताता हूँ.....
भगवान-  मैं भगवान.... मैं भगवान हूं कुछ भी कर सकता हूं।
जज -  मैं जज हूँ, मैं सब कुछ नहीं कर सकता, लेकिन तुम्हें सज़ा दे सकता हूं क्योंकि तुम अपराधी हो।
भगवान-  मैं अपराधी नहीं  हूँ, भेजा खाना अपराध नहीं है
जज -  यह बहुत बड़ा अपराध है, तुमने करोड़ों लोगों का भेजा खाया है।उनकी बुद्धि हर ली है।उनका दिमाग़ खा गए हो।
भगवान-  तो उससे क्या होता है ।
जज - करोड़ों लोगों को तुमने अपना दास बना लिया है। दास बना कर तुम उनका जीवन खा गए हो। और जीवन को खाने से बड़ा अपराध क्या हो सकता है । मैं तुम्हें आजन्म कारावास की सज़ा देता हूं।
भगवान - नहीं नहीं यह मत करो। मतलब मैं जब तक जीवित हूं, अनंत काल तक मैं जेल में बंद रहूंगा ।
जज- हाँ तुम  इसी योग्य हो। तुम  जीवन भर एक ऐसी काल कोठरी में बंद रहोगे जिसमें  न कोई दरवाजा होगा, न कोई खिड़की, न कोई रौशनदान। उसके अंदर से हवा न बाहर आएगी और  न  बाहर की हवा अंदर जाएगी....
भगवान के कोठरी में  बन्द होते ही मेरी अक़ल,बुद्धि , दिमाग़ अपनी जगह  वापस आ गया।
****
#vss

Thursday 26 October 2017

26 अक्टूबर , गणेशशंकर विद्यार्थी के जन्मदिन पर उनका एक लेख - धर्म की आड़ / विजय शंकर सिंह

इस समय, देश में धर्म की धूम है। उत्‍पात किये जाते हैं, तो धर्म और ईमान के नाम पर और जिद की जाती है, तो धर्म और ईमान के नाम पर। रमुआ पासी और बुद्धू मियाँ धर्म और ईमान को जानें, या न जानें, परंतु उसके नाम पर उबल पड़ते हैं और जान लेने और जान देने के लिए तैयार हो जाते हैं। देश के सभी शहरों का यही हाल है। उबल पड़ने वाले साधारण आदमी का इसमें केवल इतना ही दोष है कि वह कुछ भी नहीं समझता-बुझता और दूसरे लोग उसे जिधर जोत देते हैं उधर जुत जाता है। यथार्थ दोष है, कुछ चलते-पुरजे, पढ़े-लिखे लोगों का जो मूर्ख लोगों की शक्तियों और उत्‍साह का दुरुपयोग इसलिए कर रहे हैं कि इस प्रकार, जाहिलों के बल के आधार पर उनका नेतृत्‍व और बड़प्‍पन कायम रहे। इसके लिए धर्म और ईमान की बुराइयों से काम लेना उन्‍हें सबसे सुगम मालूम पड़ता है। सुगम है भी। साधारण-से-साधारण आदमी तक के दिल में यह बात अच्‍छी तरह बैठी हुई कि धर्म और ईमान की रक्षा के लिए प्राण तक दे देना वाजिब है। बेचारा साधारण आदमी धर्म के तत्‍वों को क्‍या जाने? लकीर पीटते रहना ही वह अपना धर्म समझता है। उसकी इस अवस्‍था से चालाक लोग इस समय बहुत बेजा फायदा उठा रहे हैं। पाश्‍चात्‍य देशों में, धनी लोग गरीब मजदूरों के परिश्रम बेजा लाभ उठाते हैं। उसी परिश्रम की बदौलत गरीब मजदूर की झोंपड़ी का मजाक उड़ाती हुई उनकी अट्टालिकाएँ आकाश से बातें करती है! गरीबों की कमाई ही से वे मोटे पड़ते हैं और उसी के बल से वे सदा इस बात का प्रयत्‍न करते हैं कि गरीब सदा चूसे जाते रहे। यह भयंकर अवस्‍था है! इसी के कारण, साम्‍यवाद, बोल्‍शेविज्म आदि का जन्‍म हुआ। हमारे देश में इस समय, धनपतियों का इतना जोर नहीं है। यहाँ, धर्म के नाम पर, कुछ इने-गिने आदमी अपने हीन स्‍वार्थों की सिद्धि के लिए, करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं। गरीबों का धनाढ्यों द्वारा चूसा जाना इतना बुरा नहीं हैं, जितना बुरा यह है कि वह है धन की मार, यह है बुद्धि पर मार। वहाँ धन दिखाकर करोड़ों को वश में किया जाता है और फिर मनमाना धन पैदा करने के लिए जोत दिया जाता है। यहाँ है बुद्धि पर परदा डालकर पहले ईश्‍वर और आत्‍मा का स्‍थान अपने लिए लेना और फिर, धर्म, ईमान, ईश्‍वर और आत्‍मा के नाम पर अपनी स्‍वार्थ सिद्धि के लिए लोगों को लड़ाना-भिड़ाना। मूर्ख बेचारे धर्म की दुहाइयाँ देते और दीन-दीन चिल्‍लाते हैं, अपने प्राणों की बाजियाँ खेते और थोड़े-से अनियंत्रित और धूर्त आदमियों का आसन ऊँचा करते और उनका बल बढ़ाते हैं। धर्म और ईमान के नाम पर किये जाने वाले इस भीषण व्‍यापार को रोकने के लिए साहस और दृढ़ता के साथ उद्योग होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक भारतवर्ष में नित्‍य-प्रति बढ़ते जाने वाले झगड़े कम न होंगे। धर्म की उपासना के मार्ग में कोई भी रुकावट न हो। जिसका मन जिस प्रकार चाहे, उसी प्रकार धर्म की भावना को अपने मन में जगावे। धर्म और ईमान, मन का सौदा हो, ईश्‍वर और आत्‍मा के बीच का संबंध हो, आत्‍मा को शुद्ध करने और ऊँचे उठाने का साधन हो। वह किसी दशा में भी, किसी दूसरे व्‍यक्ति की स्‍वाधीनता के छीनने या कुचलने का साधन न बने। आपका मन चाहे, उस तरह का धर्म आप मानें और दूसरे का मन चाहे, उस प्रकार का धर्म वह माने। दो भिन्‍न धर्मों के मानने वालों के टकरा जाने के लिए कोई भी स्‍थान न हो। यदि किसी धर्म के मानने वाले कहीं जबरदस्‍ती टाँग अड़ाते हों, तो उनका इस प्रकार का कार्य देश की स्‍वाधीनता के विरुद्ध समझा जाय। देश की स्‍वाधीनता के लिए जो उद्योग किया जा रहा था, उसका वह दिन नि:संदेह, अत्‍यंत बुरा था, जिस दिन, स्‍वाधीनता के क्षेत्र में, खिलाफत, मुल्‍ला, मौलवियों और धर्माचार्यों को स्‍थान दिया जाना आवश्‍यक समझा गया। एक प्रकार से उस दिन हमने स्‍वाधीनता के क्षेत्र में, एक कदम पीछे हटकर रखा था। अपने उसी पाप का फल आज हमें भोगना पड़ रहा है। देश की स्‍वाधीनता के संग्राम ही ने मौलाना अब्‍दुल बारी और शंकराचार्य को देश के सामने दूसरे रूप में पेश किया, उन्‍हें अधिक शक्तिशाली बना दिया और हमारे इस काम का फल यह हुआ है कि इस समय, हमारे हाथों ही से बढ़ाई इनकी और इनके-से लोगों की शक्तियाँ हमारी जड़ उखाड़ने में लगी हैं और देश में मजहबी पागलपन, प्रपंच और उत्‍पात का राज्‍य स्‍थापित कर रही हैं। महात्‍मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्‍थान देते हैं। वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं। परंतु उनकी बात ले उड़ने के पहले, प्रत्‍येक आदमी का कर्तव्‍य यह है कि वह भली-भाँति समझ ले कि महात्‍मा जी के धर्म का स्‍वरूप क्‍या है? धर्म से महात्‍मा जी का मतलब धर्म के ऊँचे और उदार तत्‍वों ही का हुआ करता है। उनके मानने में किसे एतराज हो सकता है। अजाँ देने, शंख बजाने, नाक दाबने और नमाज पढ़ने का नाम धर्म नहीं है। शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्‍पष्‍ट चिन्‍ह हैं। दो घंटे तक बैठकर पूजा कीजिए और पंच-वक्‍ता नमाज भी अदा कीजिए, परंतु ईश्‍वर को इस प्रकार की रिश्‍वत के दे चुकने के पश्‍चात्, यदि आप अपने को दिन-भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आजाद समझते हैं तो, इस धर्म को, अब आगे आने वाला समय कदापि नहीं टिकने देगा। अब तो, आपका पूजा-पाठ न देखा जायेगा, आपकी भलमसाहत की कसौटी केवल आपका आचरण होगा। सबके कल्‍याण की दृष्टि से, आपको अपने आचरण को सुधारना पड़ेगा और यदि आप अपने आचरण को नहीं सुधारेंगे तो नमाज और रोजे, पूजा और गायत्री आपको देश के अन्‍य लोगों की आजादी को रौंदने और देश-भर में उत्‍पातों का कीचड़ उठालने के लिए आजाद न छोड़ सकेगी। ऐसे धार्मिक और दीनदार आदमियों से तो, वे ला-मजहब और नास्तिक आदमी कहीं अधिक अच्‍छे और ऊँचे हैं, जिनका आचरण अच्‍छा है, जो दूसरों के सुख-दु:ख का ख्याल रखते हैं और जो मूर्खों को किसी स्‍वार्थ-सिद्धि के लिए उकसाना बहुत बुरा समझते हैं। ईश्‍वर इन नास्तिकों और ला-मजहब लोगों को अधिक प्‍यार करेगा और वह अपने पवित्र नाम पर अपवित्र काम करने वालों से यही कहना पसंद करेगा, 'मुझे मानो या न मानो, तुम्‍हारे मानने ही से मेरा ईश्‍वरत्‍व कायम नहीं रहेगा। दया करके, मनुष्‍यत्‍व को मानो, पशु बनना छोड़ो और आदमी बनो।'
****

गणेशशंकर विद्यार्थी ( 26 अक्टूबर, 1890, से 25 मार्च, 1931) , एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार तो थे ही, इसके साथ ही वे एक समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। भारत के 'स्वाधीनता संग्राम' में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा था। अपनी बेबाकी और अलग अंदाज से दूसरों के मुँह पर ताला लगाना एक बेहद मुश्किल काम होता है। कलम की ताकत हमेशा से ही तलवार से अधिक रही है और ऐसे कई पत्रकार हैं, जिन्होंने अपनी कलम से सत्ता तक की राह बदल दी। गणेशशंकर विद्यार्थी भी ऐसे ही पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी कलम की ताकत से अंग्रेज़ी शासन की नींव हिला दी थी। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, जो कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसक समर्थकों और क्रांतिकारियों को समान रूप से देश की आज़ादी में सक्रिय सहयोग प्रदान करते रहे। आज उनके जन्मदिवस पर उनका विनम्र स्मरण !!

© विजय शंकर सिंह