Monday 22 July 2019

कश्मीर - क्या भारत ने कश्मीर नीति में कोई बदलाव किया है / विजय शंकर सिंह

1971 में बांग्लादेश के उदय के बाद शिमला में  इंदिरा गांधी और ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो के बीच जो समझौता हुआ था, उसमे यह अहम शर्त थी कि भारत पाक के आपसी विवादों में कोई भी दूसरा देश दखल नहीं देगा और जो भी विवाद होगा उसे उभय देश, भारत और पाक आपस मे ही मिलकर तय करेंगे। यही बात लाहौर घोषणापत्र जो अटल बिहारी बाजपेयी और नवाज़ शरीफ़ के बीच शिखर वार्ता के बाद 1999 मे जारी हुआ था तब भी कही गयी थी।

1971 के युद्ध के बाद पाकिस्तान सैनिक, आत्मिक, मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक रूप से टूट चुका था। पाकिस्तान दो भागों में बंट गया था। अमेरिका की दादागिरी को इंदिरा गांधी ने ठंडा कर दिया था। पाकिस्तान के नब्बे हज़ार सैनिक हमारे युद्धबंदी थे। उसके पास सौदेबाजी करने के लिये न तो कुछ बचा था और न ही वह कुछ कर पाया। कश्मीर मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण न हो इसे बचाना उस समय बहुत ज़रूरी था। तभी शिमला समझौते में यह शर्त रखी गयी कि दोनों ही देश बिना किसी तीसरे देश की मध्यस्थता के यह विवाद हल करेंगे।

तब से अब तक भारत के दौरे पर आने वाले हर राष्ट्राध्यक्ष का यही स्टैंड रहता था कि यह दोनों देशों के बीच का मामला है और इसे दोनों ही मिल कर तय करेंगे। यही स्टैंड आज तक भारत का भी बना रहा । पर आज ट्रम्प का जो बयान आया है उससे तो स्थिति कुछ अलग लगती है।  रायटर के इस खबर से कि अमेरिका भारत पाक विवाद के हल करने में दखल दे सकता है, यह एक बड़ा कूटनीतिक बदलाव है । इस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अमेरिका के दौरे पर हैं। उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति से भारत और पाकिस्तान के आपसी विवाद सुलझाने के लिये दखल देने की गुजारिश की है।

इसी अनुरोध पर अमेरिकी न्यूज़ एजेंसी रायटर के अनुसार, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा है कि अमेरिका तनाव कम करने के लिये भारत पाक मामले में दखल दे सकता है। ट्रंप ने तो ट्वीट करते हुये कहा है कि दखल देने और विवाद हल करने में सहायता देने के लिये तो खुद भारत के प्रधानमंत्री ने उनसे अनुरोध किया था। हालांकि इकोनॉमिक टाइम्स की एक ताजा खबर के अनुसार, अभी भारत इसका खंडन करते हुये कहा है कि ऐसा कोई अनुरोध भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प से नहीं किया था।  अब  अगर ट्रम्प झूठ बोल रहे हैं तो इसका कड़ा प्रतिवाद किया जाना चाहिये।

उम्मीद है, भारत ट्रंप के इस बयान को नहीं मानेगा और इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर, शिमला समझौता और लाहौर घोषणा के शर्तो पर कायम रहेगा। भारत को हर दशा में किसी भी तीसरे देश की मध्यस्थता से इनकार कर देना चाहिये । आज अमेरिका अगर इस मामले में विवाद सुलझाने के बहाने घुसेगा तो फिर चीन भी कोई न कोई कूटनीतिक खेल खेलेगा । फिर हो सकता है और भी बड़ी ताकतें इस मामले में पंच बन कर कूद जांय। फिर कश्मीर दुनिया के लिये कूटनीति की प्रयोगशाला बन जायेगा।

एक बात तो लगभग तय है कि, पाकिस्तान को कश्मीर वैसे भी नहीं मिलना है। इस बात को वह अच्छी तरह से जानता है। यहां तक की वहां की सुप्रीम कोर्ट ने भी पाक अधिकृत कश्मीर जिसे वे आज़ाद कश्मीर कहते हैं, पर भी पाकिस्तान का कानूनी अधिकार नहीं माना है। जब कि हमारे पास जो कश्मीर है वह पूरे कानूनी तौर पर हमारा है। जो भाग नहीं है वह पाकिस्तान के कब्जे में है। जम्मू कश्मीर के संविधान के अनुसार उसका भी प्रतिनिधित्व जम्मू कश्मीर की विधानसभा में है । यह अलग बात है कि वे स्थान रिक्त हैं।

कश्मीर पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान से भारत के विदेशनीति के नीति नियंताओं के समक्ष एक नयी चुनौती खड़ी हो गयी है। उधर इमरान खान का आपसी विवाद के हल के लिये ट्रम्प से अनुरोध करना और इधर ट्रम्प का उसे स्वीकार करने की बात कहते हुये यह कह देना कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने भी उनसे ऐसी ही इच्छा व्यक्त की है, कह देना विदेश नीति में एक बदलाव का संकेत देता है। अब हमारे प्रधानमंत्री ने ट्रम्प से क्या कहा और ट्रम्प ने क्या सुना यह तो केवल यही दो महानुभाव बता सकते हैं। ट्रम्प कोई बहुत विश्वनीय नहीं है। वे अक्सर गैर जिम्मेदारी भरे बयान देते रहते हैं और कई बार उन्होंने राजनयिक मर्यादाओं का भी उल्लंघन किया है। उनके इस बयान पर भी अमेरिका में लोग विश्वास नहीं कर पा रहे हैं। भारत मे लगभग सभी दलों की सरकारें रही हैं और विदेशनीति और विशेषकर कश्मीर पर सभी का स्टैंड एक सा ही रहा है और वह है शिमला समझौता । नरेन्द्र मोदी की यह सरकार भी उसी स्टैंड पर कायम है। हमारे प्रधानमंत्री या विदेशमंत्री को इन सब मामलों में संसद में बयान देकर विश्व जनमत और राजनयिक जगत को स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिये।

इस बेहद संवेदनशील मामले में भारत को शिमला समझौता और लाहौर घोषणा के अनुसार इसी बात पर दृढ़ रहना चाहिये कि भारत पाक आपसी विवाद आपस मे ही बिना किसी अन्य देश की मध्यस्थता या दखल या सहायता के दोनों देश मिल कर  हल करेंगे। पाकिस्तान बहुत पहले से शिमला समझौते की गिरफ्त से निकलना चाहता है। उसे यह मौका बिल्कुल भी नहीं देना चाहिये। यह आत्मघाती होगा।

© विजय शंकर सिंह

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