Wednesday 31 July 2019

सीएनएन बिजनेस में जोमैटो और पं अमित शुक्ल / विजय शंकर सिंह

अमित शुक्ल द्वारा मुस्लिम डिलीवरी मैन से भोजन भेजे जाने पर धर्म के नाम पर इनकार कर देना, और फिर जोमैटो के मालिक दीपेंदर गोयल द्वारा भोजन का कोई धर्म नहीं होता, कह कर अपने स्पष्ट पक्ष रखना अब एक वैश्विक खबर बन गयी है। सीएनएन बिजनेस ने इसे छाप पर पूरी दुनिया मे फैला दिया है।

अब अमित शुक्ल के बचाव में आये लोग यह तर्क दे रहे हैं कि, हलाल और हराम मांस भी तो मांगा जाता है। चूंकि मुस्लिम हलाल और हिंदू या सिख झटका मीट खाने की बात करते हैं तो इस तर्क से अमित शुक्ल की बात को जायज ठहराने की कोशिश कर रहे हैं।

झटका और हलाल जानवर को मारने की अलग अलग विधि है और यह भी एक प्रकार का मूर्खतापूर्ण कर्मकांड है। मैंने भी कई होटलों या ढाबा में देखा है वहां यह लिखा रहता है कि यहाँ हलाल मीट बिकता है। यह वैसे ही है जैसे शुद्ध शाकाहारी भोजनालय, या जैन भोजनालय या ऐसे मारवाड़ी भोजनालय जिसमें बिना लहसुन प्याज का खाना मिलता है, आदि बंदिशें लिखी मिलती हैं ।

यहां अमित शुक्ल का ऐतराज, खाने को लेकर नही, खाना बनाने वाले रसोइया के धर्म और जाति को लेकर नहीं, बल्कि खाने वाले के धर्म को लेकर है, और यह अस्पृश्यता का मामला है जो संविधान में एक अपराध है। अगर खाना पहुंचाने वाला अनुसूचित जाति का व्यक्ति होता और अमित शुक्ल यह आचरण करते तो वे कानूनन दंड के भागी होते।

ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि अमित शुक्ल मासूम हैं और वह यह नहीं जानते कि जो ट्वीट वह करने जा रहे हैं, उसकीं क्या प्रतिक्रिया होगी। उन्हें यह पता है कि वे रातोंरात सोशल मीडिया पर छा जाएंगे। ऑफ उन्हें यह भी पता है कि मीडिया या लोग इस मुद्दे पर एक दूसरे के विरोध में खड़े हो जाएंगे। उन्हें यह भी पता है कि उनकी पीठ ठोंकने वाले लोग उनके पीछे खड़े हो जाएंगे औऱ यह भी वह जानते हैं उनकी निंदा और उन्हें कोसने वाले लोग भी उनके पीछे पड़ जाएंगे।

ऐसा बिलकुल भी नही है धर्मगत और जातिगत अस्पृश्यता पूरी तरह से समाप्त हो गयी हैं। शुचिता और संस्कारों के नाम पर यह अब भी अभी है। पर सत्तर सालों में एक बदलाव ज़रूर यह आया है कि लोग इस मानसिकता से उबर रहे थे, और अब सार्वजनिक स्थानों पर ऐसी मानसिकता के दर्शन नहीं होते थे। घरों के निजी किचेन में यह हर व्यक्ति का अधिकार है कि वह क्या, कैसे, और किस प्रकार से खाता है। पर निजी जीवन मे भी अगर वह धर्म और जति के आधार पर अस्पृश्यता का आचरण करता है तो यह भी कानून और संविधान का उल्लंघन है।

सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि, मुस्लिम के हाथ खाना मत भेजो, मुस्लिम दुकान से सामान न खरीदो, हिंदू दुकानों से खरीददारी न करो, मुस्लिम की बनाई कांवर न खरीदो, इस मानसिकता का विकास 2014 ई के बाद ही क्यों हुआ है ? वे कारण हैं कि हम अचानक आगे बढ़ते बढ़ते प्रतिगामी हो गए हैं कि हम 1937 से 47 के युग मे पहुंच गए हैं जहां स्टेशनो पर खुलकर हिंदू पानी मुस्लिम पानी बोला जाता था ?

सोचिएगा, इसका उत्तर आप को ज़रूर मिलेगा। मुझे लगता है कभी कभी कि हम जाने या अनजाने एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय साज़िश की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं जहां देश की अर्थव्यवस्था तो चौपट और परमुखोपेक्षी होती जा रही है, और सामजिक स्थिति भेदभाव तथा साम्प्रदायिक वातावरण तनावपूर्ण होता जा रहा है, और यह सब जानबूझकर किया जा रहा है।

© विजय शंकर सिंह

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