Sunday 21 July 2019

20 जुलाई - बटुकेश्वर दत्त की पुण्यतिथि पर उनको याद करते हुये / विजय शंकर सिंह

भारत सरकार ने बंगाल के रेलवे स्टेशन बर्धमान जंक्शन का नाम शहीद ए आज़म भगत सिंह के अनन्य सहयोगी और लाहौर तथा अंडमान जेल में लंबे समय तक भूख हड़ताल करने वाले बटुकेश्वर दत्त के नाम पर रखने का निर्णय किया है। इस निर्णय का स्वागत है। सरकार को साधुवाद।

देश मे स्वाधीनता संग्राम की अनेक धाराये थी। गांधी और कांग्रेस के नेतृत्व में आंदोलन की मुख्य धारा तो थी ही, लेकिन क्रांतिकारी आंदोलन जो मुख्यतया भूमिगत आंदोलन था उसकी भूमिका को भी कम कर के नहीं आंका जा सकता है। भगत सिंह, आज़ाद, अनुशीलन समिति, हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट पार्टी, तथा अनेक छोटे मोटे संघटन थे, जिन पर बहुत काम नही हुआ है। मन्मथनाथ गुप्त की एक किताब क्रांतिकारी आंदोलन का इतिहास ज़रूर है पर शायद ही किसी विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने आज़ादी के आंदोलन की इस धारा पर अकादमिक रूप से काम किया हो।

भगत सिंह, चन्द्रशेखर आज़ाद, जैसे महान क्रांतिकारी आज़ादी से कहीं अधिक ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ लड़ रहे थे। अगर यह आप सोच रहे हैं कि यह युवा जोश और आक्रोश की हिंसक अभिव्यक्ति थी तो शायद आप गलत हैं। यह एक सोची समझी वैचारिक धरातल पर टिकी एक क्रांति की पीठिका थी । क्रांतिकारी  युवा थे। उनकी आंखों में सपने थे। और वे सपने, आज़ादी के इतने दिनों के बाद भी साकार नही हो पाए। वे आज़ाद होना चाहते थे। पर सिर्फ ब्रिटिश हुक़ूमत से ही नहीं, बल्कि आज़ाद होकर एक शोषणमुक्त समाज की स्थापना करना चाहते थे।

बटुकेश्वर दत्त का जन्म 18 नवम्बर 1910 को  ग्राम-औरी, जिला - नानी बेदवान, बंगाल में हुआ था। इनका बचपन अपने जन्म स्थान के अतिरिक्त बंगाल प्रांत के वर्धमान जिला अंतर्गत खण्डा और मौसु में बीता। इनकी स्नातक स्तरीय शिक्षा पीपीएन कॉलेज कानपुर में सम्पन्न हुई। कानपुर में ही इनकी मुलाकात भगत सिंह से हुयी और इसके बाद ही इन्होंने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के लिए कानपुर में कार्य करना प्रारंभ किया।

8 अप्रैल 1929 को दिल्ली स्थित केंद्रीय असेंबली जो आज की संसद के समकक्ष है, में भगत सिंह के साथ बम विस्फोट कर ब्रिटिश राज्य की तानाशाही के विरुद्ध अपना प्रतिरोध दर्ज करा दिया था। यह बम विस्फोट बिना किसी को नुकसान पहुँचाए सिर्फ पर्चों के माध्यम से अपनी बात को प्रचारित करने के लिए किया गया था। उस दिन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया।

इस घटना के बाद बटुकेश्वर दत्त और भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 जून 1929 को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद इन लोगों को लाहौर फोर्ट जेल में डाल दिया गया। यहाँ पर भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त पर लाहौर षड़यंत्र केस चलाया गया। उल्लेखनीय है कि साइमन कमीशन के विरोध-प्रदर्शन करते हुए लाहौर में लाला लाजपत राय को अंग्रेजों के इशारे पर अंग्रेजी राज के सिपाहियों द्वारा इतना पीटा गया कि उनकी मृत्यु हो गई। इस मृत्यु का बदला अंग्रेजी राज के जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को मारकर चुकाने का निर्णय क्रांतिकारियों द्वारा लिया गया था।

इस कार्रवाई के परिणामस्वरूप लाहौर षड़यंत्र केस चला, जिसमें भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा दी गई थी। बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास काटने के लिए अंडमान जेल भेज दिया गया। जेल में ही उन्होंने 1933 और 1937 में ऐतिहासिक भूख हड़ताल की। सेल्यूलर जेल से 1937 में बांकीपुर केन्द्रीय कारागार, पटना में लाए गए और 1938 में रिहा कर दिए गए। काला पानी से गंभीर बीमारी लेकर लौटे दत्त फिर गिरफ्तार कर लिए गए और चार वर्षों के बाद 1945 में रिहा किए गए।

आजादी के बाद नवम्बर, 1947 में अंजली दत्त से शादी करने के बाद वे पटना में रहने लगे। बटुकेश्वर दत्त को अपना सदस्य बनाने का गौरव बिहार विधान परिषद ने 1963 में प्राप्त किया। दत्त की मृत्यु 20 जुलाई 1965 को नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हुई। मृत्यु के बाद इनका दाह संस्कार इनके अन्य क्रांतिकारी साथियों- भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव की समाधि स्थल पंजाब के हुसैनी वाला में किया गया।

भगत सिंह पर शोध करने वाले जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर, चमन लाल अपनी पुस्तक अपनी पुस्तक अंडरस्टैंडिंग भगत सिंह ' Understanding Bhagat Singh' में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के बीच मित्रता का जो भाव था उसके बारे में वे एक घटना का उल्लेख करते हैं। घटना इस प्रकार है,

" जब भगत सिंह के दोस्त जयदेव गुप्त ने उनको जेल में पहनने के लिये कुछ कपडे भेजे तो, भगत सिंह ने उनसे बटुकेश्वर दत्त के लिये भी कपड़े भेजने के लिए कहा। यह भी कहा कि जब तक वह बटुकेश्वर के लिये कपडे नहीं भेजता तब तक वह उसके भेजे कपड़े नहीं पहनेंगे। "

भगत सिंह की माता विद्यावती देवी आज़ादी के बाद भी काफी समय तक जीवित रहीं। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की मित्रता को उनकी माँ ने अंतिम समय तक निभाया। जब बटुकेश्वर दत्त बीमार हो कर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली में भर्ती थे तो अस्पताल में उनकी देखभाल करने  विद्यावती जी गयीं थीं। आज भी दोनों परिवारों में यह अपनापा और लगाव है।

© बिजय शंकर सिंह

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