Wednesday, 7 February 2018

केदारनाथ सिंह की एक कविता - बसंत / विजय शंकर सिंह

बसंत पर केदारनाथ सिंह की एक कविता पढें ~
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बसंत 

और बसंत फिर आ रहा है
शाकुंतल का एक पन्ना
मेरी अलमारी से निकलकर
हवा में फरफरा रहा है
फरफरा रहा है कि मैं उठूँ
और आस-पास फैली हुई चीजों के कानों में
कह दूँ 'ना'
एक दृढ़
और छोटी-सी 'ना'
जो सारी आवाजों के विरुद्ध
मेरी छाती में सुरक्षित है

मैं उठता हूँ
दरवाजे तक जाता हूँ
शहर को देखता हूँ
हिलाता हूँ हाथ
और जोर से चिल्लाता हूँ-
ना...ना...ना

मैं हैरान हूँ
मैंने कितने बरस गँवा दिए
पटरी से चलते हुए
और दुनिया से कहते हुए
हाँ हाँ हाँ...

( केदारनाथ सिंह  )
***
#vss

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