दिल्ली के मुख्य सचिव की पिटाई बेहद निंदनीय है और शर्मनाक भी। जो भी इस घटना में शामिल हों, उन्हें तत्काल हिरासत में ले कर उनके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिये। दिल्ली पुलिस ने कुछ गिरफ्तारियाँ की भी है। यह घटना दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति में हुयी है। यह और भी शर्मनाक है। अगर उनकी भी सहमति मुख्य सचिव से मार पीट करने में रही है तो उनके खिलाफ भी कार्यवाही की जाय।
लेकिन ऐसी स्थिति आयी ही क्यों ? यह भी पहलीं बार है कि चीफ सेक्रेटरी स्तर का कोई बड़ा अफसर पहली बार बदतमीज और गुंडे विधायकों के हांथो पिटा हो। लेकिन देश भर में अक्सर कहीं न कहीं, कभी न कभी, कोई न कोई, सरकारी विभागों के छोटे अफसर इन विधायकों के हांथो पिटते रहते हैं। यहां तक कि पुलिस भी। इस अराजक स्थिति पर कभी भी बड़े अधिकारियों के संगठन या संघो ने सरकार से मिल कर एतराज़ नहीं जताया है। फिरोजाबाद में एक पुलिस कप्तान को तत्कालीन सत्ताधारी दल के रसूखदार गुंडो ने पीटा, एक भी आवाज़ विरोध की नहीं उठी थी तब । जब राजनीतिक दलों में पार्टी के प्रमुख पर जिलाबदर और हत्याकांड में संदेही जैसे फ़र्ज़ी नेता काबिज़ होते रहेंगे तो यह स्थिति आनी ही है। अभी औऱ भयावह परिणामों के लिये तैयार रहिये।
अशोक खेमका हरियाणा कैडर के आईएएस अफसर हैं। उनका यह ट्वीट पढें,
IAS associations' support for Delhi Chief Secretary is an appreciable digression from usual stony silence. They should also speak up on more pressing national issues which affect general populace directly.
#AshokKhemka
अशोक जी का यह ट्वीट आईएएस एसोशिएसन की उस प्रतिक्रिया पर है जो इसने दिल्ली चीफ सेक्रेटरी की पिटाई पर , पिटाई के विरोध पर की गयी थी। अशोसिएसन की प्रतिक्रिया गलत नहीं है और हम सब उनकी प्रतिक्रिया के साथ हैं। पर क्या कभी आईएएस संघ ने अपनी अंतरात्मा नौकरशाही की हो रही दुर्गति पर भी टटोली है ? विभिन्न विभागों के अफसर सरकारी काम काज के दौरान नेताओं और गुर्गों के हांथो पिटते रहे हैं पर कभी यह व्यथा सरकार तक इस शीर्ष नौकरशाही के संघ ने पहुंचायी है ? नौकरशाही संविधान और नियम कानूनों के प्रति प्रतिबद्ध है न कि किसी व्यक्ति के प्रति। आभिजात्य परम्परा और स्टील फ्रेम के अतीत मोह की पिनक में पड़े पड़े नौकरशाही का यह सिरमौर तन्त्र कब जंग से कबाड़ की ओर अग्रसर हो गया पता ही नहीं चला। कभी किसी भी सरकारी सेवा संघ ( में ट्रेड यूनियन की बात नहीं कर रहा हूँ ) ने अपने कैडर के उन अफसरों का मुद्दा उठाया है जो केवल अपनी नियमों के प्रति प्रतिबद्धता के कारण राजनीतिक आकाओं को रास नहीं आते हैं और उनका उत्पीड़न झेलते हुए अस्पृश्य हो जाते हैं ? महीनों नहीं सालों तक निलंबित या उपेक्षित जिसे हम पनिशमेंट पोस्टिंग के नाम से जानते हैं , पर पड़े हुये समय काटते रहते हैं। यह बात केवल आईएएस संघ की ही नहीं है बल्कि पुलिस में तो और भी हैं। जहां तक अधीनस्थ पुलिस सेवा की बात है वहां तो स्थिति भयावह है। आईएएस सेवा संघ को देश की नौकरशाही का सिरमौर होने के कारण, नौकरशाही में घुस रही बेमतलब की राजनीतिक दखलंदाज़ी और राजनीतिक व्यक्तियों की गुंडागर्दी के खिलाफ खुल कर आवाज़ उठानी चाहिये और सरकार को यह व्यथा बतानी भी चाहिये। नहीं तो नौकरशाही का काम करना मुश्किल हो जाएगा।
इस लघुलेख के फेसबुक पर पोस्ट होने के बाद जो कमेंट्स प्राप्त हुये, उनमें मेरे मित्र और पूर्व आईएएस अधिकारी हरिकांत त्रिपाठी जी का यह कमेंट प्राप्त हुआ। मैं इस अच्छी टिप्पणी को इस लेख के साथ जोड़ रहा हूँ। हरिकांत जी ने कम शब्दों और बेहद प्रभावोत्पादक शैली में नौकरशाही के रोग की पहचान कर ली है ।
" व्यवस्था टूटकर ध्वस्त हो जाने के कगार पर पहुँच रही है और मुख्य सचिव का पिटना और वह भी मुख्य मंत्री के घर पर उनकी उपस्थिति में पिट जाना व्यवस्था के पतनोन्मुख होने के अनेक लक्षणों में से मात्र एक लक्षण है |
राजनीतिज्ञों का सरकारी सेवकों से संविधानेत्तर अपेक्षायें रखना और सरकारी सेवकों का तुच्छ फायदे के लिए झुकने की अपेक्षा पर साष्टांग दण्डवत् मुद्रा में आने को तैयार रहना इस बीमारी का मूल कारण है | जो स्वभावतः व्यवस्था विरोधी हैं या ध्वस्तमान व्यवस्था में अपना स्वार्थी मक़सद हासिल करना आसान पाते हैं उन्हें इससे खुश होना स्वाभाविक है और वे अपने मूढ़तापूर्ण तर्क से इसे नजरअंदाज करने अखवा सही साबित करने की कोशिश करेंगे ही पर आमजन जो देश में सफल और जनहित वाली लोक व्यवस्था को बचाना /बनाना चाहते हैं उन्हें निरन्तर संघर्ष कर इस पतनशीलता का मुँह मोड़ देना होगा | "
मैं हरिकांत जी के इस टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ।
© विजय शंकर सिंह
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