Monday, 29 January 2018

कासगंज की तिरंगा यात्रा और राष्ट्रीय ध्वज अधिनियम की अवहेलना - एक प्रतिक्रिया / विजय शंकर सिंह

15 अगस्त, 2 अक्टूबर और 26 जनवरी देश के तीन राष्ट्रीय पर्व हैं। 15 अगस्त स्वाधीनता दिवस को मुख्य उत्सव लाल किले पर पीएम द्वारा ध्वजारोहण के रूप में, 2 अक्टूबर , गांधी जयंती को राजघाट के गांधी समाधि स्थल पर पुष्पचक्र अर्पित कर और 26 जनवरी गणतंत्र दिवस को राजपथ पर राष्ट्रपति द्वारा ध्वजारोहण और एक भव्य परेड की सलामी के साथ मनाया जाता है।

राष्ट्रीय ध्वज कब कैसे और किन किन औपचारिकताओं के साथ फहराना चाहिये इसका भी एक संहिताबद्ध नियम क़ायदा है और इसकी एक लिखित ड्रिल है। राष्ट्रीय ध्वज का अपमान एक संज्ञेय अपराध है और यह फ्लैग कोड ऑफ इंडिया या ध्वज संहिता में लिखा है। सबसे नवीनतम ध्वज संहिता 2002 में सरकार ने जारी किया हैं।

भारतीय ध्वज संहिता भारतीय ध्वज को फहराने व प्रयोग करने के बारे में दिये गए दिशा निर्देश हैं। भारत का राष्ट्रीय झंडा, भारत के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिरूप है। यह राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। सभी के मार्गदर्शन और हित के लिए भारतीय ध्वज संहिता 2002 में सभी नियमों, रिवाजों, औपचारिकताओं और निर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। ध्वज संहिता-भारत के स्थान पर भारतीय ध्वज संहिता 2002 को 26 जनवरी 2002 से लागू किया गया है।

संक्षेप में दिए गए दिशा निर्देश इस प्रकार है ~

* जब भी झंडा फहराया जाए तो उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए। उसे ऐसी जगह लगाया जाए, जहाँ से वह स्पष्ट रूप से दिखाई दे।

* सरकारी भवन पर झंडा रविवार और अन्य छुट्‍टियों के दिनों में भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाता है, विशेष अवसरों पर इसे रात को भी फहराया जा सकता है।

* झंडे को सदा स्फूर्ति से फहराया जाए और धीरे-धीरे आदर के साथ उतारा जाए। फहराते और उतारते समय बिगुल बजाया जाता है तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।

* जब झंडा किसी भवन की खिड़की, बालकनी या अगले हिस्से से आड़ा या तिरछा फहराया जाए तो झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।

* झंडे का प्रदर्शन सभा मंच पर किया जाता है तो उसे इस प्रकार फहराया जाएगा कि जब वक्ता का मुँह श्रोताओं की ओर हो तो झंडा उनके दाहिने ओर हो।

* झंडा किसी अधिकारी की गाड़ी पर लगाया जाए तो उसे सामने की ओर बीचोंबीच या कार के दाईं ओर लगाया जाए।

* फटा या मैला झंडा नहीं फहराया जाता है।

* झंडा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ही आधा झुका रहता है।

* राष्ट्रीय ध्वज को केवल राजकीय शोक से घोषित  और सेना या अर्धसैनिक बलों के शवों के अंतिम संस्कार के लिये उन पर ही ओढाया जा सकता है। अन्य किसी पर भी नहीं।  वह भी जैसे ही अंतिम सैल्यूट समाप्त हो तभी उसे सम्मान पूर्वक शव से उठा लिया जाना चाहिए और उज़के तुरन्त बाद ही अंतिम संस्कार की कार्यवाही होगी। शव से ध्वज उठाने की भी ड्रिल होती है। ऐसा बिल्कुल ही नहीं कि चादर की तरह उसे खींच लिया जाय ।
( Section (d) of Explanation 4 of PART II of the code forbids )

* किसी भी परिस्थिति में कोई भी अन्य ध्वज राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचा नही रखा जाएगा और न ही उसके अगल बगल रखा या फहराया जाएगा । यह अकेले ही फहराया जाएगा। यह ध्वज सभी ध्वजों से अलग, महत्वपूर्ण और विशिष्ट है।
( A section (VIII) of 3.2 of the code says that NO OTHER FLAG or bunting should be placed higher than or above or side by side with the National Flag )

* झंडे पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए। और न ही लिखना चाहिये। आप को याद होगा एक बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान भूल से राष्ट्रीय ध्वज पर उन्होंने हस्ताक्षर कर किसी को ध्वज दे दिया था पर जैसे ही भारतीय विदेश विभाग के चीफ ऑफ प्रोटोकॉल को यह भूल ज्ञात हुई वह हस्ताक्षरित ध्वज वापस ले लिया गया। यह बात मीडिया में भी आ गयी थी।

* जब झंडा फट जाए या मैला हो जाए तो उसे एकांत में पूरा नष्ट किया जाए । सार्वजनिक रूप से उसे नष्ट न किया जाय और जला कर तो बिल्कुल ही नहीं।

अब जरा कासगंज में 26 जनवरी को निकाली गयी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की तिरंगा रैली की फोटोज देखें। इन फोटों में जो सोशल मीडिया, टीवी चैनलों और विभिन्न अखबारों में जो चित्र छपे हैं उनमें तिरंगा तो है पर उसके साथ साथ भारी संख्या में भगवा झंडा भी है। एक चित्र में तिरंगा लिटा कर उसे एक चादर की तरह पकड़ कर ले जाये जाता दिखाया गया है। और अगल बगल भगवे ध्वज हैं। ध्वज के सम्मान पूर्वक ले जाने के लिये एम्ब्लेम्स एंड नेम्स ( प्रिवेंशन ऑफ इम्प्रोपर यूज़ ) एक्ट 1950 और नेशनल ऑनर एक्ट 1971 दो कानून है। इन कानूनों और झंडे से जुड़े सम्मान की जानकारी सभी को होनी चाहिये। केवल नारे बाज़ी ही राष्ट्रभक्ति नहीं है। बल्कि राष्ट्र के प्रतीकों का सम्मान और आदर भी नागरिक का एक कर्तव्य है। कासगंज में जो भी तिरंगा यात्रा निकाली गयी थी उसमें राष्ट्रीय ध्वज का कोई भी सम्मान नहीं किया गया था, बल्कि वह कानूनी प्राविधानों का उल्लंघ भी है। पुलिस ने भी इस संबंध में राष्ट्रीय ध्वज के अपमान को मानते हुये धारा 3 राष्ट्रीय ध्वज अधिनियम के अंतर्गत मुक़दमा कायम ही नहीं किया है बल्कि इस संबंध में कुल नामजद 20 अभियुक्तो में से 3 को गिरफ्तार भी किया है। यह मुक़दमा पुलिस ने खुद ही कायम किया है।

एक बचकाना सवाल पूछा जा रहा है कि, क्या हमें राष्ट्रीय पर्व पर तिरंगा फहराने का अधिकार नहीं है और क्या इसके लिये भी किसी की अनुमति लेनी होगी ?
इस पर सुप्रीम कोर्ट में नवीन जिंदल ने एक याचिका दायर कर के यह सवाल उठाया था कि उन्हें भी राष्ट्रीय पर्व पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का अधिकार एक नागरिक के रूप में है ।
सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका स्वीकार की और उनके इस अधिकार को माना। पर ध्वज फहराने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि उसे अपनी मनमर्जी से जहां चाहे वहां फहरा दिया जाय। कासगंज की तिरंगा यात्रा के आयोजकों ने ध्वज के सम्मान की चाहे या अनचाहे, जाने या अनजाने अवहेलना ही की है। यह मनोवृत्ति दरअसल कानून को ठेंगे पर रखने की बढ़ती मानसिकता का ही एक परिणाम है।

अनुमति का जहाँ तक प्रश्न है यह कोई वैधानिक प्राविधान नहीं बल्कि एक प्रशासनिक प्राविधान या परम्परा है। इसी घटना के संदर्भ में सोचें यदि इसकी प्रशासनिक अनुमति जिला प्रशासन से ली गयी होती या यह यात्रा और इसका रूट थाने और जिला प्रशासन के संज्ञान में होता तो निश्चय ही कुछ न कुछ पुलिस बंदोबस्त जुलूस या यात्रा के साथ किया गया होता और तब यह यात्रा भी शांति से निकल गयी होती और चंदन गुप्ता जैसे एक युवक की जान भी बच जाती। यह दायित्व यात्रा के आयोजकों का था कि वे पुलिस को सूचित कर के यह कार्यक्रम पूरा किये होते। मैंने इसे एक व्यवहारिक उपचार के रूप में लिखा है ।

© विजय शंकर सिंह

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